दिन भर ढोवै सर पर काठड़ी,
मजदुर पिसा ल्यायो घाल आँटड़ी
घर आंवतो ही ठेके पर गियो
थांकेलो उतारण न छककर पियो
मजदूरी उठही पीण म सारी गवां दी
उधारी भी आती बेल्ल्यां लिखा दी
ढलती रात म आयो दारु की पीक में
नैना टाबर बैठ्या चुल्हौ तापै आटा री उडीक में
पेट कि भूख पर भारी पड़, कुजड़बो शौक
काल ओज्यूं ध्यानगी नै देगो दारु म झोंक
मजदुर पिसा ल्यायो घाल आँटड़ी
घर आंवतो ही ठेके पर गियो
थांकेलो उतारण न छककर पियो
मजदूरी उठही पीण म सारी गवां दी
उधारी भी आती बेल्ल्यां लिखा दी
ढलती रात म आयो दारु की पीक में
नैना टाबर बैठ्या चुल्हौ तापै आटा री उडीक में
पेट कि भूख पर भारी पड़, कुजड़बो शौक
काल ओज्यूं ध्यानगी नै देगो दारु म झोंक
घर आंवतो ही ठेके पर गियो
थांकेलो उतारण न छककर पियो
मजदूरी उठही पीण म सारी गवां दी
उधारी भी आती बेल्ल्यां लिखा दी
बहुत सटीक !!
हकीकत को बया करती सुन्दर राजस्थानी कविताराज विवेचना