कुछ खास नहीं हैं मेरे पास करने को ,
क्यों न ये बिखरा जहाँ समेट लू ……..
कुछ गम बुहार लू ,
फेकूं वहां जहाँ से वो फिर न उड़े ………
तन्हाई की फेली चादर लपेट लू ,…..
रखु ऐसे की वो फिर न खुले ……..
खोल दो तुम भी अपने मन के मेले चोले,
मैं इन्हें निचोड़ दू ………..
खिलने वाली हैं उमंगो की धुप ,
तुम अपना द्वार ढक ना लेना ………
पड़ने दो इन किरणों को अपने पर
अपने कच्चे मन को पकने दो ……..
बरसेगी अब खुशियों की बूंदाबांदी,
तुम अपना छाता पसार ना देना …….
बस पलके झुका कर खुद को ,धुलने दो ,…………………………………
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