—हिन्दी साहित्य के लेखक कौशल किशोर रिछारिया की कलम से——–
सूखी रोटी -दीपक की रोशनी से दिखाया प्रगति का मार्ग
कर्म को द्वारा भाग्य को बदलने में संतोष गंगेले ने मेहनत का लिया सहारा
बुन्देलखण्ड की धरती का अपना एक इतिहास है, भारत भूमि के मध्य बुन्देलखण्ड राज्य की मांग भी अपनी चरम सीमा पर चल रही है, बुन्देलखण्ड की राजधानी कहा जाने बाला कस्बा नौगाॅव छावनी के नाम से जाना जाता है, नौगांव छावना से पश्चिम दिशा में बसा छोटा सा ग्राम बीरपुरा है जो उत्तर प्रदेश की सीमा से लगा हुआ है, इस ग्राम की सरहद से बना धवर्रा सरकार का एक विशाल मंदिर ने अपना धार्मिक स्थान बना लिया है, बुन्देलखण्ड मोर्टस ट्रान्स्पोर्टट कं. के मालिक साकेतवासी स्व. श्री नारायण दास जी अग्रवाल ने इस मंदिर के लिए अपना तन-मन-धन ही समर्पित किया है, इस मंदिर में ऐसा भी एक आयोजन हो चुका है जिसमें तीन पीठ के स्वामी शंकरार्चाय के प्रवचन एक मंच से हो चुके है । इस स्थान को त्रिवेणी का स्थान की संज्ञा दी जा सकती है ।
ग्राम बीरपुरा का अपना एक इतिहास रहा है, यह ग्राम किसान खेतीहल मजदूरों का ग्राम था लेकिन देश की आजादी के बाद इस ग्राम में शिक्षा का विकास किया गया जिससे ग्राम में शिक्षण संस्था खुल जाने से ग्राम के बच्चों को पढ़ने के लिए छावना न जाकर अपने ग्राम में ही अध्ययन का अवसर मिला । ग्राम बीरपुरा में क्षत्रिय खॅगार जाति की संख्या अधिक रही कुछ ही परिवार राजपूत कुशवाहा, ढीमर के थें दो ही ब्राम्हण परिवार जिसमें प्रागनारायण नायक व बूचे गंगेले का परिवार था, इस ग्राम की एक अजव गजब कहानी भी है कि प्रागनारायण नायक व हरदास खॅगार (राय) आपस में परममित्र थें तथा उनकी मित्रता भी एक मिशाल थी दो मित्रों का विवाह भी एक ही साल में हुआ , प्रकृति की देन कहे कि प्रागनारायण नायक के छ: पुत्र व तीन पुत्रियाॅ थाी, इस प्रकार हरदास राय के भी छ: पुत्र व तीन पुत्रियाॅ हुई । दोनो मित्रों का जिस दिन निधन हुआ वह तिथि भी 27 सितम्बर 1977 का दिन था कि सुबह हरदास राय का निधन हुआ जिसका पता चलते ही दोपहर 3 बजे श्री प्रागनारायण नायक का भी निधन हो गया ।
इस प्रकार का संयोग भरा इतिहास बीरपुरा के साथ हम ऐसे एक युवक के जीवन से जुड़े उन तमाम घटनााओं को दर किनार करते हुये प्रमुख अंश लेते हुये लिखते है कि ग्राम बीरपुरा में एक गृहस्थ संत (साधु) हरिहर बाबा के नाम से जाने जाते थें, उनके यहां चार संतान होने के बाद भी संतान का जीवित न रह पाने के कारण संत ने अपनी धर्म पत्नि श्रीमती सुमित्रा देवी के साथ भगवान श्री राम के वनवास की स्थली चित्रकूट धाम की परिक्रमा करते हुये यह संकल्प लिया कि प्रभु हमे अब जो संतान दे वह जीवित रहे तथा समाज के कार्य में काम आने बाली देना । ईश्वरीय कृपा की वह संतान का जन्म 11 दिसम्बर 1956 को हुआ जिसका नाम उनकी दादी ने नाम संस्करण संतोष के नाम से दिया । जिस समय संतोष का जन्म हुआ उस समय परिवार की मालीहालत बहुत ही नाजुक व खराब थी । पिता के संत होने पर परिवार की भूमि को ही करने बाला कोई नही था परिवार के अन्य लोग ही भूमि में जो कुछ कर लेते उसी का अंश देते था, माता सुमित्रा देवी एक गृहस्थ जीवन जीने की अच्छी कला जानती थी भले ही वह अषिक्षित रही । संत हरिहर वावा जी की पाॅच संतानों में संतोष बड़ी संतान के रूपमें हुए । अपने होष संभालते ही उन्होने घर परिवार व समाज केलिए कार्य किये है अपने माता-पिता की सेवा व सम्मान करने में कभी पीछे नही रहे है । संतोष कुमार सबसे बड़ी संतान है उनके तीन भाई कैलाश, राजेन््रद कुमार , सुरेश कुमार व एक बहन गीता है । राजेन्द्र कुमार अधिबक्ता के साथ साथ उर्दू के जानकार है सुरेश एक लेखक व साहित्यकार है|
कठिनाईयों में ग्रहण की शिक्षा
संतोष ने अपना अध्ययन एक कठिनाई भरे जीवन से शुरू की , बचपन से ही चंचल व तेज स्वभाव के कारण शिक्षण संस्था के प्रमुख ने हमेशा स्लेट, पेंसिल, पुस्तके उपलव्ध कराई तथा कक्षा में आगे बैठा कर अध्ययापन कराया सन् 1965 में कक्षा 5 वी उत्तीण्र करने के बाद बालक हायर सेकेण्ड्री नौगाॅव में कक्षा 6 वी का अध्ययन शुरू किया ,गाॅव से शहर की ओर आते ही कुछ दुर्जनों की संगति से शिक्षा अध्ययन में परेशानी गई तो पिता जी शिक्षा को बंद कराकर नौगाॅव नगर में व्यापारियों के यहां मजदूरी कार्य में लगा दिया । जब व्यापारियों व महाजन लोगों की संगति का असर हुआ तो पुनः शिक्षण संस्थान में प्रवेश दिलाया गया ।
नगर के व्यापारी श्री लक्षमी चन्द्र जैन ने इस बालक को पढ़ने के लिए समय दिया जिससे सुबह 7 से दोपहर 12 बजे तक स्कूल , दोपहर 12 बजे से रात्रि 8 बजे तक व्यपारी के यहाँ ही कार्य करना होता था , रात्रि 9 बजे घर पहुँचने के बाद भोजन करने के बाद एक से दो घंटे दीपक की रोशनी में अध्ययन करने की ललक ने उसे अंधेरे से प्रकाश की ओर आकर्षित कर दिया , सुबह 4 बजे से उठना, नित्य क्रिया करने के बाद स्कूल जाना , घर परिवार के कार्य करना, अपने कर्तव्यों का ज्ञान न होने के बाद भी खेल खेल में भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों का ज्ञान अर्जित कर लिया । सन् 1977 में घर-परिवार में भीषण संकट आ जाने के बाद कक्षा 8 वी से पुनः शिक्षा छोड़कर जिला रोजगार कार्यालय छतरपुर में नाम लिखा कर रोजगार की तलाश की, भाग्य ही कहे कि आर्मी आई.टी.वी.पी. पुलिस ने नोगाॅव छावनी से अपना डेरा उठाया तो एम.ई.एस. में चोकीदारी के पद पर अस्थाई मस्टर पर काम मिल गया, मस्टर के माध्यम से 2 साल तक सेन्टर की नोकरी करने के बाद सन् 1779 में चैकीदारी पद से हट जाने के बाद दिल्ली रवाना हो गये । दिल्ली में मजदूरी मेहनत के काम को अंजाम देते हुये परिवार का संचालन किया । भगवान में आस्था रखने के कारण , ईष्वरी प्रेरणा से दिल्ली से पुनः नौगाॅव आकर एक चाय पान की गुमटी लगाकर कार्य शुरू किया । इसी बीच कुछ मित्रों से चर्चा के बाद हायर सेकेण्ड्री की परीक्षा की चर्चाएं होने पर फार्म डाल दिया । चॅूकि इसी दुकान में छोटे भाई भी साथ देने लगे थें इस कारण समय मिलने पर स्वंय पुनः अध्ययन किया और अपने भाई बहनों को साथ में पढ़ाया । लगन व मेहनत के कारण हायर सेकेण्ड्री स्कूल की परीक्षा उत्र्तीण कर ली, हायर सेकेण्ड्री हो जाने के बाद , बापू महावि़द्यालय नौगाॅव में बी0ए0 में प्रवेष लिया , दुकान के साथ साथ बी0ए0 की परीक्षाओं की तैयार की ।
इसी बीच छात्र नेताओं के साथ रहने के कारण राजनैतिक ज्ञान हो गया तथा पत्रकारिता समाचार पत्रों का अध्ययन किया । सन् 1981 में छतरपुर से प्रकाशित दैनिक राष्ट्र-भ्रमण में संवाददाता की जगह निकलने पर संपादक श्री सुरेन्द्र अग्रवाल से मिलने पर उन्होने समाचार भेजने के तौर तरीके समझा दिया । यह संतोष के जीवन का पहला दिन था जब समाज सेवा करने केलिए कलम के पुजारी बने । समय के साथ छतरपुर से प्रकाशित दैनिक सीक्रेट बुलेटिन, कर्तव्य, दैनिक कृष्ण क्रांति, साप्ताहिक ओरछा बुलेटिन में समाचार लिखना शुरू किया । सहयोगियों के साथ टाईपिंग परीक्षा भी दी जिसमें मध्य प्रदेष भोपाल वोर्ड से उत्र्तीण कर दिखाई । परीक्षा उत्तीर्ण होने के बाद नौगाॅव न्यायालय में पं0 गोविन्द तिवारी अधिबक्ता के साथ टाईपिस्ट के रूपमें कार्य किया । भारतीय संस्कृति व संस्कार प्राप्त होने के कारण समाज सेवा करने का मन हुआ इसी के साथ छतरपुर जिला कलेक्टर श्री होशीयार सिंह ने तहसील कार्यालय में लेखक के रूप में कार्य करने की अनुमति दी जिससे विकास की गति जुड़ती चली गई , अच्छे संस्कारों के साथ उत्तम विचार वालों का साथ मिला , लगातार प्रगति के पथ पर बढ़ते चले आ रहे है ।
पत्रकारिता को एक मिशन के रूपमें स्वीकार किया
संतोष गंगेले ने पत्रकारिता को एक मिशन के रूप में स्वीकार करते हुये छतरपुर से प्रकाशित समाचार पत्रों के साथ साथ दैनिक जागरण झाँसी, दैनिक जागरण रीवा, दैनिक आलोक रीवा, देनिक बान्ध्वीय समाचार रीवा, साप्ताहिक दमोह संदेश, दैनिक नव भारत भोपाल, रीवा ,दैनिक भास्कर सतना, दैनिक आचरण ग्वालियर, सागर, जबलपुर, कानपुर आदि के समाचार पत्रों में धुॅआधार पत्रकारिता करते हुये नौगाॅव का नाम गौरवान्ति किया । सन् 1986 में हिन्दुस्तान के इतिहास में पहली वार किसी पत्रकार संगठन ने जिला जज एवं सत्र न्यायाधीश श्री एम0एसत्र कुरैषी छतरपुर से शपथ ग्रहण कर समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने का साहस किया । लगातार 14 सालों पर नोगाॅव तहसील ईकाई के अध्यक्ष पद पर रहते हुये अनेक जिला एवं सभाग स्तर के पत्रकार सम्मेलन कराने का अवसर किया । आज उन्होने शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी के जीवन को पढ़कर उनके आदर्श को स्वीकार करते हुये उनके नाम से प्रान्तीय प्रेस क्लब का गठन कर सम्पूर्ण प्रान्त में पत्रकारिता के क्षेत्र में व्याप्त बुराईयों को दूर करने केलिए नया संगठन तैयार किया है । अनेक ऐसे उदाहरण दिये जा सकते है लेकिन एक कर्मयोगी के जो गुण होना चाहिये वह संतोष गंगेले में पाये जाते है । इंटरनेट सेवाओं का लाभ लेकर भोपाल के श्री पवन देवलिया जी से संपर्क होने पर एमपी मिरर समाचार सेवा भोपाल का छतरपुर जिला का व्यूरोचीफ नियुक्त किया गया तथा अजमेर नामा के संचालक श्री गिरधर तेजवानी से ने उन्हे बहुत बड़ा योगदान किया । आज इंटरनेट पोर्टल में सर्वाधिक समाचार भेजने का काम किया है । यदि आप उनकी बारे में जानकारी चाहे तो गूॅगल में संतोष गंगेले लिखकर उनकी जीवनी व लेखनी का पता लगा सकते है। पिछले माह शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी प्रेस क्लब संस्था का गठन कर सम्पूर्ण मध्य प्रदेश में इसका कार्य क्षेत्र तय किया है । इस संस्था के माध्यम से प्रदेश के प्रत्येक जिला व ग्राम तक इस संस्था के सदस्य बनाने का संकल्प है ।
भारतीय संस्कृति-संस्कारों की अलख जगाने निकले है
बर्तमान समय में भारतीय संस्कृति एंव संस्कारों का पतन हो रहा है उसे बचाने केलिए समाज मे ऐसे लोगों को ही आने होगा जो समाज के लिए कुछ त्याग कर सके, अपनी भारतीय संस्कृति संस्कारों , परम्परों को बचाकर पौराणिक कथाओं के आधार पर मानव जीवन जीने की कला दे सकते है । भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों को बचाने केलिए बच्चों में ही संस्कार डाले जाना चाहिये । प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक ग्रन्थों से अध्यात्मिकता को पाठ सीखना ही अति आवष्यक हो गया है संतोष गंगेले अब एक ऐसा नाम है जो नौगाॅव के साथ साथ छतरपुर एवं टीकमगढ़ जिला की जनता जानती है, उत्तर प्रदेष के सीमावर्ती ग्रामों में उनकी अपनी एक ख्याती है । अपराध व अपराधिओं से दूर रह कर ही वह अभी तक अपना जीवन व्यतीत करते आ रहे है । उनके पास जीवन जीने की ऐसी कला चली आ रही है कि अपने नियम व संयम से चलने के कारण अपनी जीवन को समय बध्द किये हुये है । राजनीति में विश्वासघात व धोखे की राजनीति आ जाने के कारण वह नेताओं से परहेज करते है लेकिन जो जन प्रतिनिधि, राजनेतिक नेता, समाजसेवी, कर्मचारी योग्य कुशल व त्याग करने बाले है उनका सम्मान करने में कभी पीछे नही रहते है । मुॅह पर सच्ची बात बोलने के कारण वह कुछ लोग्रों की आॅच केलिए मिर्च हो सकते है लेकिन सामाजिक एवं समाज की सुरक्षा करने बाले केलिए वह एक नजीर बन कर सामने आ गये है । स्वंय आत्म निर्भर बनना, अपने भाईयों को आत्म निर्भन बनाने में उन्होने अपना जीवन लगाकर परिवार की इज्जत को बचाकर रखा|
संतोष गंगेले बर्ष 2007 से नौगाॅव जनपद पंचायत क्षेत्र के सो से अधिक ग्रामों की शिक्षण संस्थाओं में बाल सभाओं के माध्यम से बच्चों को प्रोत्साहित करते है तथा उनकी प्रतिभाओं को निखाने का काम भी करते है । इस दौरान बच्चों को टाॅपी मिठाईयाॅ, उपहार स्वरूप पठन पाठन की सामग्री व साहित्य भी देते आ रहे है । हाल ही मे उन्होने ब्राहम्ण समाज की कन्याओं के विवाह में नगद धन राषि देना बंद करते हुये श्री राम चरित मानस ग्रन्थ देना शुरू किया है जिसका समाज के लोगों ने सम्मान किया है लेकिन कुछ लोगों ने इसकी उपयोगिता को व्यर्थ भी कहा है । अनेकों वार आकाशवाणी से भी वार्तायें प्रसारित हो चुकी है ।
जीवन में नशा को कभी हाथ नही लगाया
किसी व्यक्ति के गुण व दोष छुपते नही है, इंत्र लगाने से वह अपनी खुशबू छोड़ता है, प्यार मोहब्बत हो जाने पर उसे दूर नही किया जा सकता है, इसी प्रकार से यदि कोई व्यक्ति किसी भी तरह का नशा करता है तो वह पता चल जाता है , संतोष गंगेले ने अपने बचपन से इतनी लंबी उम्र पार करने तक कभी कोई नशा नही किया है, पान, बीड़ी, सिगरेट, गुटका, तम्बाखू कोई भी मादक पदार्थ का सेवन नही किया । जबकि उनकी संगत अच्छे व बुरे लोगों के बीच रही , उनका कहना है कि इन सभी कार्यो में भगवान की कृपा रही है जिस कारण दुर्जनों की संगत नही हो सकी । उन्होने अपने जीवन में हमेशा घृणा पाप से करते रहे पापी से नही, जल में पैदा होने बाली पुरैन के पत्ते पर पानी नही ठहता है, चंदन के बृक्षों में सर्प लिपटे रहते है लेकिन जहर का असर नही होता है । इसी कारण संतोष गंगेले को नगर नोगाॅव के साथ साथ टीकमकढ़ जिला में अनेक स्थानो पर सम्मान मिल चुका है लेकिन वह सम्मान प्राप्ता करने का नही सम्मान देने केलिए स्थान की खोज में लगे रहते है ।
सम्पूर्ण मध्य प्रदेश में अपने विचार भेजने का लिया संकल्प
संतोष गंगेले आज के बर्तमान युग के युवाओं को जहां प्रे्ररणा के स्त्रोत बन कर सामने आ रहे है वही वह आम जनता के अधिकारों को जाग्रत करने एवं उनके अधिकारों को प्रदान कराने के लिए हजारो रू. व्यय करके अपना संदेश पत्र जन जन तक पहुॅचाते है , शहीद गणेश शकर विद्यार्थी प्रेस क्लब का पंजीयन कराकर उन्होने अपने बिचार मध्य प्रदेश सरकार के प्रत्येक मंत्री, प्रदेश के समस्त जन सम्पर्क विभाग, प्रदेश के समस्त जिला कलेक्टरों , जिला पंचायत अध्यक्षों एवं अधिकारियों को डाक से पत्र भेजकर अपनी मन की बात का संदेष भेज दिया हे । संतोष गंगेले के परिवार में आज सभी तरह की सुख -सुविधाये व खुशियाँ होने के बाद भी वह समाज सेवा का रास्ता नही छोड़ पा रहे है उनका कहना है कि जो भी यह जीवन है वह भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों को बचाने के लिए समर्पित कर दिया है ।
लेखक : कौशल किशोर रिछारिया
धन्यवाद – आपने जो दिया था उसमे एक मिनिट भी अंतर नहीं आया . आपके मार्ग दर्शन का राही -संतोष गंगेले
बहुत विस्तृत जानकारी दी आपने। 🙂
अनुकरणीय व्यक्तित्व..
अति उत्तम