Home Personality भारत के रत्न डॉ. हरि सिंह गौड़

भारत के रत्न डॉ. हरि सिंह गौड़

3
एक बहुत बड़ी विडंबना है कि जिन डॉ. हरीसिंह गौड़ (Dr.Hari Singh Gaur) पर राजपूत समाज को गर्व होना चाहिये उनके बारे में अधिकांश लोग अनभिज्ञ है। यह कहना कतई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि डॉ. हरीसिंह गौड़ ब्रिटिश भारत के सबसे अधिक शिक्षित एवँ ज्ञानवान व्यक्तित्व थे। उनकी उपलब्धियां असाधारण हैं। संविधान सभा में शामिल लोगों में डॉ. गौड़ ही एकमात्र राजपूत थे। डॉ. हरीसिंह गौड़ एक प्रख्यात वकील, न्यायविद, शिक्षाविद, समाज सुधारक एवं एक उत्कृष्ट कवि एवं उपन्यासकार थे। यह कम ही लोगों को विदित है कि देश की सबसे प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रथम कुलपति डॉ. गौड़ ही थे। इसके अलावा डॉ. गौड़ दो बार 1928 एवं 1936 में नागपुर विश्वविधालय के कुलपति रहे तथा सागर विश्वविधालय जो अब डॉ. हरीसिंह गौड़ विश्वविधालय कहलाता है, के संस्थापक कुलपति थे। डॉ. हरीसिंह गौड़ को उनकी असाधारण प्रतिभा के कारण अंग्रेजों ने सर की उपाधि से विभूषित किया था। हमारे लिए ये अत्यंत गर्व की बात है कि इतना अधिक शिक्षित एवं ज्ञानवान व्यक्ति क्षत्रिय समाज में पैदा हुआ जिसकी बराबरी तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग का कोई व्यक्ति नहीं कर सकता । डॉ गौड़ देश के अनमोल रत्न थे जिन्हें भारत रत्न दिया जाना चाहिये।

बाल्यकाल

डॉ. हरीसिंह गौड़ का जन्म 26 नवम्बर 1870 को मध्य प्रदेश के सागर जिले में हुआ था। इनके दादा मान सिंह एक सैनिक थे जो अवध प्राँत से सागर आये थे। उनके रंग रुप के कारण उन्हेँ भूरासिंह भी कहा जाता था। उन्होने बुंदेला विद्रोह के समय मुगलों से लड़ाइयां लड़ी थीं। वृद्धावस्था में सैनिक वृति त्याग कर ये खेती करने लगे। इनके पिता पुलिस में थे। डॉ. गौड़ बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। प्राइमरी के बाद इन्होनें दो वर्ष मेँ ही आठवीं की परीक्षा पास कर ली जिसके कारण इन्हेँ सरकार से 2रुपये की छात्र वृति मिली जिसके बल पर ये जबलपुर के शासकीय हाई स्कूल गये। लेकिन मैट्रिक में ये फेल हो गये जिसका कारण था एक अनावश्यक मुकदमा। इस कारण इन्हें वापिस सागर आना पड़ा दो साल तक काम के लिये भटकते रहे फिर जबलपुर अपने भाई के पास गये जिन्होने इन्हें फिर से पढ़ने के लिये प्रेरित किया। डॉ. गौड़ फिर मैट्रिक की परीक्षा में बैठे और इस बार ना केवल स्कूल मेँ बल्कि पूरे प्रान्त में प्रथम आये। इन्हें 50 रुपये नगद एक चांदी की घड़ी एवं बीस रूपये की छात्रवृति मिली। आगे की शिक्षा के लिये वे हिलसप कॉलेज मेँ भर्ती हुये। पूरे कॉलेज में अंग्रेजी एव इतिहास मेँ ऑनर्स करने वाले ये एकमात्र छात्र थे।

इंग्लैंड में

बेरिस्ट्री करने के लिये इनके भाई ने इन्हें इंग्लैंड की केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी भेजा। गणित इनका प्रिय विषय था और ये अक्सर गणित प्रतियोगिताओं में भाग लेते थे|

लेकिन कभी भी किसी प्रतियोगिता का परिणाम घोषित नहीं हुआ। बहुत समय बाद जब ये डी लिट् कर रहे थे तब एक भोज में शामिल हुये जहाँ इन्हें पता चला की ये सभी प्रतियोगिताओँ मेँ अव्वल आते थे और अंग्रेजों को किसी अश्वेत भरतीय को विजेता घोषित करना अपमानजनक लगता था। इसी प्रकार इन्होनें कुलपति पुरस्कार के लिये अपनी कविता भेजी जो सर्वश्रेष्ठ थी अतरू इसका भी परीणाम घोषित नहीं किया गया यधपि बाद मेँ इन्हेँ रॉयल सोसायटी का सदस्य चुना गया। 1891 में ऑक्सफोर्ड विश्वविधालय ने कैंब्रिज मेँ एक प्रतिनिधि मंडल भेजा और दोनों विश्वविधालयों के सभी वक्ताओं मेँ डॉ. गौड को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया। इसी समय इंग्लैंड में आम चुनाव भी चल रहे थे। उदार दल के जॉन मार्ले ने नगर मेँ धन्यवाद प्रस्ताव के लिये डॉ. गौड़ को चुना जहाँ इन्होनें एक ओजस्वी भाषण दिया। इंग्लैंड के अखबारों ने लिखा डॉ. गौड जेसे वक्ता शासको के लिये उपहार हैं एक अखबार ने उन्हें अपना केम्ब्रिज संवाददाता नियुक्त किया। उदार दल के दादा भाई नेरोजी भी इस भाषण से काफी प्रभावित हुये और डॉ. गौड़ को दादा भाई नेरोजी ने अपने चुनाव प्रचार के लिये आमन्त्रित किया

दादा भाई नेरोजी चाहते थे डॉ. गौड चुनाव भी लडें पर कम उम्र होने की वजह से वे चुनाव नहीं लड़ सके लेकिन उन्होनें दादा भाई नेरोजी के प्रचार मेँ बहुत मेहनत की। 1891 में उन्होंने दर्शन और अर्थशास्त्र मेँ ऑनर्स की उपाधि ली और 1892 में कानून की उपाधि अर्जित की। 1905 में उन्होंने ट्रिनिटी कोलेज से ओर बाद मेँ डब्लिन कॉलेज से डी लिट् की उपाधि प्राप्त की।

वकील के रुप में

इंग्लैंड से आने पर उन्हें जबलपुर में स्थानीय न्यायलय में राजस्व अधिकारी का पद उन्हेँ सोपा गया जहां उन्होनें एक वर्ष मेँ काफी समय से उलझे 300 मुकदमे निबटा दिये जिससे उनको बहुत ख्याति प्राप्त हुई। उनकी ख्याति सुनकर हत्या के अभियोग मेँ बन्द चार अभियुक्तों की माँ ने उनसे संपर्क किया और उन्हें 2000 रुपये पेशगी प्रस्तुत की। 2000 रुपये नगद और इतने ही केस जीतने के बाद। उस समय डॉ. गौड़ को पैसों की सख्त आवश्यकता थी इसलिए उन्होंने अपनी 229 रुपये मासिक की सरकारी नौकरी छोड़ दी। यह मुकदमा वो जीत गये। इससे उनके उत्साह में वृद्धि हुई। विल्क्षण प्रतिभा के धनी डॉ हरी सिंह गौड़ ने रायपुर , नागपुर , कलकत्ता लाहौर एवं रंगून आदि में भी वकालत की तथा आशातीत सफलता पाई। उन्होंने इंग्लैंड के प्रिवी काउन्सिल मेँ भी 4 साल वकालत की। अपने केस को वह बेहद तल्लीनता एवं गहनता से लड़ते थे। 1902 में एक जमींदार का दीवानी का मुकदमा लड़ने के लिये उन्होंने सम्बंधित विषय का इतना गहन अध्य्यन किया की श्लॉ ऑफ प्रॉपर्टी ट्रांसफर एक्ट नामक पुस्तक दी जिसके बाद उन्हें कानून का पंडित कहा जाने लगा जल्द ही वकील के तौर पर देश के अधिकांश राजाओं एवम बड़े जमींदारो की पहली पसन्द डॉ. गौड थे|

1909 में उनकी भारतीय दंड संहिता की तुलनात्मक विवेचना प्रकाशित हुई जो 3000 पृष्ठ की दो भागों में विभाजित पुस्तक थी। अंग्रेजी भाषा में इस विषय पर लिखी ये सर्वप्रथम पुस्तक आज भी नवयुवक वकीलों के लिये कारगर है। 1919 में उन्होंने हिन्दू लॉ पर एक पुस्तक लिखी। इसके लिए उन्होंने तीन साल तक हिन्दु लॉ का गहन अध्ययन किया। उन्होंने लगभग 15000 पुस्तकें एवं 7000 केसों का अध्ययन किया। डॉ. गौड़ चाहते थे की ये पुस्तक वकीलों, न्यायधीशों,कानून के छात्रों एवम शिक्षकोँ सभी के लिये उपयोगी हो। भारतीय विधि शास्त्रों में आज भी ये पुस्तक एक विशेष स्थान रखती है।

साहित्यकार

साहित्यकार के रुप में भी डॉ. हरीसिंह गौड़ की उपलब्धियॉं अद्वितीय हैँ। वह एक कुशल उपन्यासकार, कवि निबंधकार आत्मकथाकार थे तथा उन्होंने साहित्य की हर विधा में महारत हासिल की उन्होंने तीन उपन्यास लिखे जिनमें श्हिज ओनली लव श् विशिष्ट है। बौद्ध दर्शन पर उन्होंने बेहद महत्वपूर्ण पुस्तक श्स्पिरिट ऑफ बौद्धिज्मश् लिखी जिसको बौद्ध देशों में बहुत पसन्द किया गया। डॉ. गोड़ का जापान बुलाकर एक धर्मगुरु के तौर पर ही स्वागत भी किया गया। उन्होंने श्रेण्डम राइम्सश् के नाम से एक कविता संग्रह भी प्रकाशित किया। उन्होंने अनेक निबंध एवं सँस्मरण भी लिखे। उनकी अंतिम रचना उनकी आत्मकथा थी।

शिक्षाविद

1921 में जब दिल्ली विश्वविधालय की स्थापना हुई तो डॉ. गौड इसके प्रथम कुलपति बने 1924 तक वो इस पद पर रहे। 1928 एवं 1936 में वह नागपुर विश्वविधालय के कुलपति रहे। इंग्लैंड में ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत आने वाले 27 विश्वविधालयों का महाधिवेशन भी उनकी अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ। 1946 में उन्होंने बिना सरकारी सहायता के अपने बीस लाख रुपयों से सागर विश्वविधालय की नींव रखी। डॉ. गौड़ सागर विश्वविधालय के संस्थापक कुलपति बने। डॉ. गौड़ एक सच्चे दानवीर थे उन्होने अपनी सम्पति का दो तिहाइ जो लगभग 2 करोड़ था को सागर विश्वविधालय को सुचारू रुप से चलाने के लिये दान कर दिया।

राजनीतिज्ञ

डॉ हरीसिंह गौड़ 1920 से 1935 तक विधान परिषद के सदस्य रहे उनके पास किये हुये कई बिल कानून बने। 1921 के कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन मेँ मतभेदों के कारण उन्होने कांग्रेस को छोड़ दिया। उस समय स्टाम्प और टिकिट इंग्लैन्ड से छपकर आती थीं उन्होंने योजना बनाकर नासिक में एक प्रेस शुरु करवाई। दक्षिण में प्रचलित देवदासी प्रथा जिसमे कम उम्र कि लड़कियों को मन्दिर मेँ देवदासी बनाकर रखा जाता था एवं उनका शोषण किया जाता था का डॉ. गौड़ ने विरोध किया एवं इसे बन्द करवाया। उनके ही कारण इस प्रथा को धारा 372 एवं 373 के तहत अवैध एवं दंडनीय घोषित किया गया। भारतीय महिलाओं को वकालत करने का अधिकार भी उन्हीं के प्रयासों से मिला। इसके अलावा चिल्ड्रन प्रोटेक्शन एक्ट भी उन्होने ही कानून बनवाया। छुआछूत के खिलाफ पहला बिल 1921 में डॉ. हरी सिंह गौड़ ने ही पेश किया था, 1946 में गठित संविधान सभा के भी डॉ. गौड एक प्रमुख सदस्य थे। 26 नवम्बर 1976 को भारतीय डाक विभाग ने डॉ गोड़ पर एक डाक टिकट जारी किया डॉ गौड़ का विवाह डॉ. कमिलिनी चैहान से हुआ था जो की देश की कुछ सर्वप्रथम महिला डॉक्टर्स में से एक थीं

डा. विवेकानंद जैन उप ग़्रंथालयी, केन्द्रीय ग़्रंथालय, काशी हिंदू विश्व विद्यालय के अनुसार डॉ॰ “हरिसिंह गौर सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, महान शिक्षाशास्त्री, ख्यातिप्राप्त विधिवेत्ता, न्यायविद्, समाज सुधारक, साहित्यकार (कवि, उपन्यासकार) तथा महान दानी एवं देशभक्त थे।
वह बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मनीषियों में से थे। डा. गौर दिल्ली विश्वविद्यालय तथा नागपुर विश्वविद्यालय तथा सागर वि.वि. के कुलपति रहे। डा. गौर भारतीय संविधान सभा के उपसभापति, साइमन कमीशन के सदस्य तथा रायल सोसायटी फार लिटरेचर के फेलो भी रहे थे।
सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, कुलपति आजीवन इसके विकास व सहेजने के प्रति संकल्पित रहे। उनका स्वप्न था कि सागर विश्वविद्यालय कैम्ब्रिज तथा ऑक्सफोर्ड जैसी मान्यता हासिल करें। इस वि.वि. को सागर में एक पहाड़ी पर स्थापित किया गया। जहां का वातावरण प्रदूषण रहित बहुत ही सुंदर, रमणीय है। शिक्षा तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से अनुकूल है।

डॉ॰ सर हरीसिंह गौर एक ऐसा विश्व स्तरीय अनूठा विश्वविद्यालय है, जिसकी स्थापना एक शिक्षाविद् के द्वारा दान स्वरूप की गई थी। उन्होने शिक्षा के द्वारा सामाजिक उत्थान का कार्य किया। सागर तथा पूरे बुंदेलखण्ड के विकास पर सागर वि.वि. की छाप पड़ी। उनके इस महान कार्य का लाभ हम सभी को मिला। हम सब उनके ऋणी हैं। आज हम उन्हें नतमस्तक होकर प्रणाम करते हैं।

महान राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त ने इस महान व्यक्तित्व के बारे में लिखा है
सरस्वती लक्ष्मी दोनों ने दिया तुम्हें सादर जयपत्र
साक्षी है हरीसिंह! तुम्हारे ज्ञानदान का अक्षयसत्र

लेखक : सचिन सिंह गौड़

3 COMMENTS

    • gound nahi gaur हरिसिंह जी गौंड नहीं गौड़ है | दोनों में फर्क है |

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Exit mobile version