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Thursday, June 8, 2023

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एलोवेरा (ग्वार पाठे) के नाम पर

आज से कोई तीन साल पहले जोधपुर के सोजती गेट पर स्थित दूध मंदिर में एक एलोवेरा रस के विज्ञापन का बेनर लगा देखा जिसमे एलोवेरा रस के फायदे सहित विभिन्न बिमारियों की सूची लिखी हुई थी जिनमे ये चमत्कारी रस फायदा पहुंचाता है | इस विज्ञापन को देखने के बाद कि एलोवेरा का रस बाजार में उपलब्ध है मुझे पहली बार पता चला|
धीरे धीरे कई लोगों से इस रस के बारे में व रोगों में इसके प्रभाव के बारे में सुना,हालाँकि गांव में लगभग सभी बुजुर्गों को एलोवेरा के गुणों के बारे में जानकारी थी और वे इसके लड्डू आदि बनवाकर इस्तेमाल करने के साथ ही कई रोगों के उपचार में इसके पत्तों का इस्तेमाल करते थे पर जबसे एलोपेथी दवाओं का प्रचलन बढ़ा है तब से गांवों में भी लोग छोटी-छोटी बिमारियों में भी उन देशी नुस्खों को इस्तेमाल करने के बजाय डाक्टर की ही शरण में जाते है| दरअसल अब देशी नुस्खों का प्रयोग पिछड़ेपन की निशानी माना जाने लगा है |
खैर ..एलोवेरा रस के स्वास्थ्यप्रद फायदे सुनने के बाद इसे आजमाने का मन किया और बाजार में पता करने पर पता चला कि बाबा रामदेव की दिव्य फार्मेसी के साथ साथ कई कम्पनियां इसका उत्पादन कर विपणन कर रही है| मैं दिव्य फार्मेसी का एलोवेरा रस का सेवन कर ही रहा था कि एक दिन हमारे एक मित्र रामबाबू सिंह किसी कार्यवश घर आये जब उनसे एलोवेरा के बारे में चर्चा चली तो पता कि वे भी फॉरएवर लिविंग प्रोडक्ट नाम की एक विदेशी कम्पनी के एलोवेरा से बने ढेरों पोष्टिक पूरक उत्पाद बेचते है जिनका सेवन कर रोगी व्यक्ति रोग से मुक्ति पा सकता है और निरोग व्यक्ति इन पोष्टिक पूरकों का सेवन कर अपने शरीर को और अधिक स्वस्थ रख अपनी आयु बढाने के साथ चुस्त-दुरुस्त रह सकता है| पर उनका एलोवेरा रस भारतीय उत्पादकों द्वारा बेचे जा रहे एलोवेरा रस से महंगा था |
रामबाबू सिंह के समझाने के बावजूद मुझे यही लग रहा था कि रामबाबू जी सिर्फ अपने उत्पादों के विपणन के चक्कर में उन्हें सबसे बढ़िया बता रहे है जबकि मुझे लग रहा था कि रस तो रस है कोई भी निकाले और बेचे क्या फर्क पड़ता है| पर इस फर्क का पता तब चला जब रामबाबू सिंह जी के साथ मैं राजस्थान एक वैध जी के पास गया | वैध जी ने रामबाबू को एलोवेरा रस पर विचार-विमर्श के बुलाया था उस दिन कोई पांच घंटे तक रामबाबू जी और वैध जी के बीच एलोवेरा रस बनाने वाली कम्पनियों के उत्पादों की गुणवत्ता पर बातचीत चलती रही|वैध जी खुद अपने ब्रांड नाम से विभिन्न उत्पादकों से एलोवेरा रस बनवाकर अपने मरीजो के देते है शुरू की बातचीत में तो वैध जी ने अपना उत्पाद बहुत बढ़िया बताया पर रामबाबू सिंह जी ने वैध जी को दोनों एलोवेरा उत्पादों पर कुछ रासायनिक प्रयोग कर दिखाए और प्रमाणित किया कि फॉरएवर लिविंग प्रोडक्ट द्वारा उत्पादित रस ही गुणवत्ता के मामले में उत्तम है आखिर वैध जी ने भी अपने ग्वार पाठे के रस के बारे में हकीकत बता ही दी वे बोले मैंने कोई दस विभिन्न उत्पादों से ये उत्पाद बनवाया और देखा पर सब बेकार है जिन रोगियों को जोड़ों के दर्द को ठीक करने के लिए रस दिया उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा| वैध जी ने माना कि रस तो कोई भी बना ले पर रस स्थिरीकरण करने की विधि जब तक सही नहीं हो उत्पाद में गुणवत्ता नहीं आ सकती| साथ ही पौधे की उम्र का भी गुणवत्ता पर बहुत असर होता है अच्छी गुणवत्ता वाला उत्पाद बनाने के लिए पौधे की उम्र जिसके पत्तों का रस निकाला जाना कम से कम तीन वर्ष होनी चाहिए,जबकि हमारें यहाँ यूरिया आदि रासायनिक खाद डालकर साल छ: महीने के पौधे काट कर सीधे रस उत्पादकों के पास पहुंचा दिए जाते है|
उस बैठक के बाद मुझे अहसास हुआ कि भारतीय बाजार में बिकने वाला ज्यादातर एलोवेरा रस सही स्थिरीकरण विधि के चलता अच्छा गुणवत्ता वाला नहीं है जबकि फॉरएवर लिविंग प्रोडक्ट का उत्पाद सही विधि के चलते उत्तम है| उस दिन मुझे पहली बार अहसास हुआ कि एलोवेरा रस कोई गन्ने का रस तो है नहीं जो हर किसी ने निकाला और बेचना शुरू कर दिया पर बाजार में बिकने वाले ज्यादातर एलोवेरा रस ऐसे ही है और एलोवेरा का नाम देखकर लोग उनका सेवन कर रहे है,इसी तरह का निम्न गुणवत्ता वाला रस सेवन करने के बाद यदि किसी को कोई फायदा नहीं मिला तो वो दिन भी दूर नहीं जब इस दिव्य औषधि से लोगों का भरोसा उठ जायेगा | फ़िलहाल तो एलोवेरा के नाम पर बिना सही स्थिरीकरण विधि अपनाये व कम उम्र के एलोवेरा पौधों का रस बाजार में बेचकर उन्हें बनाने वाले उत्पादक चाँदी काट ही रहे है |

"एलोवेरा " ब्लॉग ट्रैफिक के लिए भी है खुराक |

मेरी शेखावाटी: गलोबल वार्मिंग की चपेट में आयी शेखावटी की ओरगेनिक सब्जीया
ताऊ डाट इन: ताऊ पहेली – 81 (बेकल दुर्ग ,कासरगोड, केरल)
उड़न तश्तरी ….: चिन्नी- मंत्री पद की दावेदारी

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14 COMMENTS

  1. @ सूर्यकान्त गुप्ता जी
    इसे घृतकुमारी के नाम से भी जाना जाता है

    @ प्रवीण जी
    यदि प्रिजर्वेशन का तरीका सही हो इसे कई दिन तक संरक्षित रखने पर गुणवत्ता ठीक रहती है |

  2. ग्वारपाठा कोइ दुर्लभ वनस्पते नहीं है | थोड़ी सी जगह में कही भी पैदा की जा सकती है | सबसे अच्छा तो यही है की इसे ताजा ही काम में लिया जाए प्रिजर्वेशन का झंझट ही नहीं करे | जानकारी का आभार |

  3. नरेश जी
    यदि घर मे उगाकर ताजा पत्तों का इस्तेमाल किया जाये तो इसका मुकाबला ही नही ,पर शहरो मे प्रदूषण के चलते घर मे उगाना व्यवहारिक नही है

  4. भाई हम तो राम बाबु जी से भी मिल लिए थे।
    अब ग्वारपाठे से भी मिल लिए, इसकी सब्जी भी बनाई जाती है।

    राम राम

  5. बहुत अच्छी तरह से समझाने का प्रयास किया है | सही मायने में यह विडंबना है हमारी की सस्ते के वजह से हम अच्छी चीज के बारे में जान ही नहीं पाते है |
    वैसे प्रस्तुति बहुत ही अच्छी और सार्थक है |
    धन्यबाद

  6. रोचक जानकारी । और ऐसी ही नई जानकारीयो का इंतजार रहेगा । आभार

    पर ग्यान दर्पण के पाठको के लिये एक संदेश

    आपको जानकर अत्यन्त खुशी होगी कि आपके अपने तकनीकी ब्लाँग ईटिप्स अगले माह कि 30 तारीख को को ब्लाँग जगत मे एक साल का हो जायेगा । इसी अवसर पर हमने आप सब ब्लाँगर साथियो से विचार आमंत्रित कर रहे है । आपको ईटिप्स ब्लाँग कैसा लगता है ? क्या बदलाव होने चाहिये । कुछ शिकवा और सिकायत हो तो अवश्य लिखे ।

    आपकी अपनी
    ईटिप्स ब्लाग टीम
    http://etips-blog.blogspot.com

  7. रोचक जानकारी । और ऐसी ही नई जानकारीयो का इंतजार रहेगा । आभार

    पर ग्यान दर्पण के पाठको के लिये एक संदेश

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  8. हमारे घर पर भी पापा जी इसका उपयोग करते है ! अक्सर लोग कहते है हल्दी और एलोविरा बड़े काम की चीज़ है जो दर्द को मार देती है ! मै भी कभी डॉक्टर के पास नही जाता हूँ ! ज्यादातर घरेलू नुस्खे ही अपनाता हूँ !! आँखों को छोडकर ,,, वेसे हुकुम रतन सिंह जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद !! इस जानकारी को एक आम आदमी तक पहुचने के लिए ……"जय करणी"

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