भारत में NGO (स्वयंसेवी संगठन) बनाकर राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा विभिन्न सरकारी योजनाओं के नाम पर धन उठाकर घपले करने के बारे में तो आप जानते ही है, जैसे अभी कुछ माह पहले ही देश के एक केन्द्रीय मंत्री के NGO ने विकलांगों के कल्याण के नाम पर सरकारी बजट उठा घपला किया था| पर क्या आप जानते है ? इन एनजीओ वीरों की तरह ही हमारे महान लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ जो लोकतंत्र के प्रहरी कहे जाते है, प्रेस वाले भी फर्जी Newspaper निकाल सरकारी विज्ञापन के नाम पर सरकार से धन प्राप्त कर सरकारी खजाने को चुना लगाने में पीछे नहीं है|अभी तक प्रेस द्वारा भ्रष्ट तरीके अपनाकर धन कमाने के मामले में लोगों की नजर पेड न्यूज और पत्रकारों, संपादकों, अख़बार मालिकों द्वारा काले धंधे करने वाले, भ्रष्ट अधिकारीयों को धमकाकर धन वसूलने पर ही रही है जिसका ताजा उदाहरण पीछे हमने जी टीवी व जिंदल प्रकरण में देखा था|पर फर्जी अखबार छपने व उनमें सरकारी विज्ञापनों के नाम पर सरकारी खजाने को चुना लगाने की बात कम ही लोग जानते है| आईये आज चर्चा करते है इस तरीके पर जिसे प्रयोग कर हमारे लोकतंत्र के कथित प्रहरी हमारी गाढ़ी कमाई पर अधिकारीयों, राजनेताओं से मिलकर डाका डालते है….
कैसे पंजीकृत होता है अख़बार How to register a news paper : भारत में कोई भी व्यक्ति RNI नामक सरकारी विभाग में आवेदन कर अपना अख़बार निकाल सकता है इसके लिए उसे किसी अनुभव आदि की कोई आवश्यकता नहीं| इसके लिए RNI की वेब साईट पर यहाँ क्लिक कर फॉर्म डाउनलोड कर उसे भरकर अपने जिले के डीएम से सत्यापित कर आवेदन भेज अख़बार पंजीकृत कराया जाता है, इस आवेदन में आवेदन कर्ता को तीन चार नाम देने होते है जिनमें पहले से पंजीकृत नहीं हुआ नाम RNI आवेदनकर्ता के नाम पंजीकृत कर देती है उसके बाद आवेदनकर्ता को एक और आवेदन यहाँ से डाउनलोड कर भेजना होता है| यह प्रक्रिया पूरी कर भारत का कोई भी नागरिक RNI द्वारा जारी नियमावली (गाइडलाइन) का पालन करते हुए अपना अख़बार निकाल सकता है|
फिर फर्जी कैसे हुआ अख़बार : जैसा कि मैंने ऊपर लिखा RNI द्वारा जारी नियमावली का पालन हर अख़बार के संपादक को करना पड़ता है, अख़बार भी नियमानुसार पंजीकृत होता है तो प्रश्न उठता है कि फिर अख़बार फर्जी कैसे हुआ ? चूँकि RNI ने अख़बारों के लिए गाइडलाइन बना रखी है जिसे तोड़ना कोई मुद्दा नहीं है बल्कि RNI की इसी गाइड लाइन की आड़ में सिर्फ अख़बारों की प्रसार संख्या बढ़ा-चढ़ा कर झूंठी दर्शाकर इस फर्जीवाड़े को अंजाम दिया जाता है| चूँकि किसी भी अख़बार की प्रसार संख्या की निगरानी का कोई ऐसा सिस्टम नहीं है कि जिसके माध्यम से अख़बार की प्रसार संख्या प्रमाणित की जा सके| अत: ज्यादातर अख़बार फाइलों में निकलते है और बिना छपे ही या सिर्फ फाइल कॉपी छप कर सरकारी विज्ञापन रूपी मलाई पर हाथ साफ़ कर सरकारी खजाने को चुना लगाते है|
पंजीकृत अख़बारों की संख्या पर एक नजर : दिल्ली में कुल 14607 अख़बार पंजीकृत है, 974 ऐसे है जिन्हें टाइटल मिल चुका है और वे पंजीकरण की लाइन में है जिनमें से इस वर्ष 604 अख़बार पंजीकृत को लाइन में है| राजस्थान में 6448 अख़बार पंजीकृत है, 966 लाइन में लगे है जिनमें अख़बार इस वर्ष 458 पंजीकृत होने को लाइन में है जिन्हें अख़बार का नाम मिल चुका है| निम्न लिंक पर क्लिक कर अन्य राज्यों में भी अख़बारों की संख्या, कौन सा अख़बार कब पंजीकृत हुआ, संपादक कौन है आदि की जानकारी ली जा सकती है| RNI की वेब साईट पर पंजीकृत अख़बारों की संख्या देखकर आप इस गोरखधंधे की गहराई भांप सकते है| बड़े अख़बार राष्ट्रीय अंक के साथ हर शहर में कई कई छोटे बड़े अख़बार निकालते है जो सब विज्ञापन रूपी मलाई के औजार है|
कैसे मिलते है सरकारी विज्ञापन : सरकारी विज्ञापन हासिल करने के लिए किसी भी अख़बार का भारत सरकार के DAVP विभाग में पंजीकृत होना आवश्यक है DAVP विभाग अख़बार निकलना शुरू होने के अट्ठारह महीने बाद पंजीकृत होने का आवेदन स्वीकार करता है इस आवेदन के साथ अट्ठारह महीने की अख़बार की प्रतियाँ भी लगती है, साथ ही पंजीकृत होने के बाद भी अख़बार की प्रकाशित ८०% प्रतियाँ व पीडीऍफ़ फाइल्स नियमित रूप से इस विभाग में जमा होना आवश्यक है, जो हर अख़बार वाला नियमित डाक से या एक साथ कई प्रतियाँ जमा करा आता है| किसी भी अख़बार की प्रति के पृष्ठ का आकार, पृष्ठ संख्या, प्रसार संख्या आदि के आधार पर DAVP सरकारी विज्ञापन की दर निर्धारित करता है| जो भविष्य में अख़बार को मिले सरकारी विज्ञापन के बदले मिलती है|
DAVP से पंजीकृत होने के बाद प्रत्येक अख़बार को केंद्र सरकार से वर्ष में चार विज्ञापन बिना किसी प्रतिस्पर्धा या भेदभाव के मिलने तय है जैसे २ अक्टूबर, स्वतंत्रता दिवस आदि आदि| इनके अलावा राज्य सरकार से विज्ञापन प्राप्त करने के लिए अख़बार को सम्बंधित राज्य सरकार के सूचना और जन सम्पर्क निदेशालय से पंजीकृत करवा लिए जा सकते है| दोनों जगहों पंजीकृत होने के अलावा विभिन्न सरकारी विभागों में भी पंजीकृत करा विज्ञापन लिए जाते है| विभिन्न सरकारी विभागों, राज्य सरकारों, मंत्रालयों आदि में विज्ञापन हासिल करने के लिए जिसकी जितनी पैठ, सेटिंग होगी वह विज्ञापन लाने में उतना ही सफल होगा|
कैसे छपती है अख़बारों की फाइल कॉपी : इस तरह के फाइल कॉपी अख़बार ज्यादातर साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक निकाले जाते है, जिन्हें छापने की हर शहर में सुविधा उपलब्ध है, अख़बारों में काम करने वाले कंप्यूटर ऑपरेटर थोड़ा सा शुल्क लेकर इंटरनेट से जरुरत की खबरे कॉपी कर अख़बार की पीडीऍफ़ फाइल बना देते है जिसके द्वारा किसी भी प्रिंटिंग प्रेस से अख़बार की छपाई करवाई जा सकती है| फाइल कॉपी के लिए विभिन्न सरकारी कार्यालयों में जमा कराने हेतु प्रति अंक १० प्रति छापी जाती है जो अमूमन 300 से 500 रूपये तक में छप जाती है, इस तरह की फाइल कॉपी छापने वाले एक ही पीडीऍफ़ फाइल में सिर्फ हेडर पर अख़बार का नाम आदि बदल कई अखबार छाप देते है जिससे उनका प्रिंटिंग खर्च कम आने के साथ साथ पीडीऍफ़ बनवाने का खर्च भी बच जाता है| इस तरह एक साप्ताहिक अखबार निकालने के लिए लगभग 2000रु. मासिक खर्च, पाक्षिक लगभग 1000रु. या कम खर्च में अख़बार निकल जाता है| जो सरकारी विज्ञापनों से प्राप्त होने वाली रकम का एक बहुत छोटा हिस्सा है|
प्रसार संख्या की प्रमाणिकता का आंकलन : RNI व राज्य के सूचना व जन सम्पर्क विभाग द्वारा किसी भी अख़बार की प्रसार संख्या की प्रमाणिकता जांचने के लिए अख़बार छपने में प्रयुक्त हुए कागज, प्रिंटिंग प्रेस का बिल और चार्टड अकाउंटेंट का प्रमाण पत्र आदि मांगे जाते है जो इस तरह का काम करने वाले लगभग लोग फर्जी बनवाकर दे देते है|
कौन करते है ऐसे फर्जीवाड़े ? और क्या फायदा है इस फर्जीवाड़े का : इस तरह के फर्जीवाड़े ज्यादातर विभिन्न अख़बारों से जुड़े पत्रकार व पत्रकारिता से जुड़े लोग करते है| किसी भी पत्रकार को सरकारी सुविधाएँ तभी मिलती है जब वह सरकार द्वारा अधिस्वीकृत पत्रकार हो| और हर अख़बार में अधिस्वीकृत करने वाले पत्रकारों हेतु संख्या बहुत सीमित होती है, जिस संख्या का फायदा अख़बार मालिक अपने खास लोगों या खास पत्रकारों के नाम पर ही उठाते है, अत: ज्यादातर पत्रकार सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं होते और उन्हें सरकारी सुविधाएँ नहीं मिलती| अत: जानकर पत्रकार अपने नाम से साप्ताहिक, पाक्षिक अख़बार पंजीकृत करा प्रत्येक अंक की दस फाइल प्रतियाँ छपवा अपने व अपने परिजनों या खास लोगों को सरकारी मान्यता प्राप्त (अधिस्वीकृत) पत्रकार का दर्जा दिलवा सरकारी सुविधाओं, योजनाओ का लाभ उठाते रहते है| आखिर प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया के प्रधान जस्टिस काटजू के अनुसार अधिस्वीकृत पत्रकार को सरकार की और से विभिन्न तरह की ३७ सुविधाएँ मिलती है जिनमें सस्ते आवास, भूखण्ड, बसों में मुफ्त यात्रा तक शामिल है|
आपको भी पत्रकार बनकर रौब गांठना हो, सरकारी बसों में मुफ्त सफ़र करना हो, सस्ते भूखंड या आवास हथियाने हो, रेल, हवाई जहाज आदि में कम खर्च में यात्राएं करनी हो तो आप भी आज ही अपना एक अख़बार पंजीकृत करायें और ऊपर लिखे फार्मूले से मुफ्त का चन्दन घिस फायदा उठायें|
8 Responses to "अख़बारों में विज्ञापन के नाम पर ऐसे होती है लूट"