ताऊ बुझागर जी गाँव के बुजुर्ग व्यक्ति थे और गांव वालों की नजर में सबसे बुद्धिमान और हर विषय के जानकर | गांव में चाहे कोई महामारी फैले , किसी में भुत-प्रेत की छाया आये , कोई बीमार हो या किसी और समस्या से पीड़ित | सबका इलाज और आसरा ताऊ बुझागर जी ही थे |
किसानो के आग्रह पर ताऊ बुझागर जी खेतो में वे बड़े-बड़े पदचिन्ह देखने गए लेकिन ऐसे पदचिन्ह तो ताऊ बुझागर जी ने भी पहली बार देखे थे लेकिन बुझागर जी ठहरे पक्के ताऊ सो बुझागर जी ने अपने दिमाग का इस्तेमाल करते हुए किसानो से कहा –
ताऊ बुझागर जी :- अरे भाई गांव वालो ! जिस दिन हूँ मर ज्यासूं जद थारौ कांई हुसी ! अरे बावली बुचौ तुम इन पदचिन्हों को भी नहीं पहचान सके | तुम्हारा तो भगवान् ही मालिक है | अरे बिना अक्ल वालो यह तो घटियों के पदचिन्ह है | तुम्हारे गाँव की घटियां रात को चरने के लिए खेतों में आने लग गयी है आज रात उन्हें रस्सों से कस कर बाँध देना |
(घटियां पत्थर से बनी छोटी छोटी हाथ से चलने वाली चक्कियों को कहा जाता है गांवों में छोटी चक्कियां अभी भी दलिया वगैरह दलने के लिए इस्तेमाल की जाती है |)
ताऊ बुझागर जी की सलाह पर गाँव वालों ने अपने अपने घरों में रखी घटियों को रस्सों से बाँध दिया लेकिन जब दुसरे दिन खेतों में गए तब फिर अपनी उजड़ी फसल देख हैरान हो गए | ताऊ बुझागर जी ने फिर कह दिया – कि तुम्हारी घटियां जादुई हो गयी है अतः अपने आप रस्सों से खुलकर खेतो में पहुँच जाती है अतः आज रात अपनी अपनी घटियों पर पहरा रखो |
गांव वाले ताऊ की बात मान रात भर घटियों की पहरेदारी करते रहे और उधर वह बड़ा जानवर उनके खेतो में खड़ी फसल तबाह करता रहा | आखिर परेशान हो गांव के किसानो ने खेतों में पहरा देने का निश्चय किया |
ताऊ बुझागर जी :- अरे बावली बुचौ ! कभी अपना दिमाग भी इस्तेमाल करना सीख जावो वरना ‘ जिस दिन हूँ मर ज्या सूं जद थारौ कांई हुसी |
अरे बावलों ! यो या तो चाँद रौ चन्द्रोल्यों हुसी नहीं तो बैतो(चलता हुआ) सूरजी तुय गयो हुसी |
9 Responses to "हूँ मर ज्या सूं जद थारौ कांई हुसी : ताऊ बुझागर"