अंतरजाल पर विचरण करते हुए कल यु-ट्यूब पर १९६५ में बनी हिंदी फिल्म “नई उमर की नई फसल” में मन्ना डे द्वारा राजस्थान के सलुम्बर ठिकाने के रावत रतन सिंह चुण्डावत की हाड़ी रानी पर गायी गई एक कविता का वीडियो मिला , इस फिल्म में गायी गई इस कविता के बारे में हाड़ी रानी पर ज्ञान दर्पण पर पिछले वर्ष प्रकाशित लेख पर भी किसी राम नाम के व्यक्ति ने अपनी टिप्पणी में जिक्र किया था | तो आइये आज देखते है मेवाड़ के सलुम्बर ठिकाने की उस वीरांगना रानी
जिसने युद्ध में जाते अपने पति के द्वारा निशानी मांगे जाने पर अपना शीश काटकर भेज दिया था पर पर वीडियो –
थी शुभ सुहाग की रात मधुर
मधु छलक रहा था कण कण में
सपने जगते थे नैनों में
अरमान मचलते थे मन में
सरदार मगन मन झूम रहा
पल पल हर अंग फड़कता था
होठों पर प्यास महकती थी
प्राणों में प्यार धड़कता था
तब ही घूँघट में मुस्काती
पग पायल छम छम छमकाती
रानी अन्तःअपुर में आयी
कुछ सकुचाती कुछ शरमाती
मेंहदी से हाथ रचे दोनों
माथे पर कुमकुम का टीका
गोरा मुखड़ा मुस्का दे तो
पूनम का चाँद लगे फ़ीका
धीरे से बढ़ चूड़ावत ने २
रानी का घूँघट पट खोला
नस नस में कौंध गई बिजली
पीपल पत्ते सा तन डोला
अधरों से अधर मिले जब तक
लज्जा के टूटे छंद बंध
रण बिगुल द्वार पर गूँज उठा २
शहनाई का स्वर हुआ मंद
भुजबंधन भूला आलिंगन
आलिंगन भूल गया चुम्बन
चुम्बन को भूल गई साँसें
साँसों को भूल गई धड़कन
सजकर सुहाग की सेज सजी २
बोला न युद्ध को जाऊँगा
तेरी कजरारी अलकों में
मन मोती आज बिठाऊँगा
पहले तो रानी रही मौन
फिर ज्वाल ज्वाल सी भड़क उठी
बिन बदाल बिन बरखा मानो
क्या बिजली कोई तड़प उठी
घायल नागन सी भौंह तान
घूँघट उठाकर यूँ बोली
तलवार मुझे दे दो अपनी
तुम पहन रहो चूड़ी चोली
पिंजड़े में कोई बंद शेर २
सहसा सोते से जाग उठे
या आँधी अंदर लिये हुए(?)
जैसे पहाड़ से आग उठे
हो गया खड़ा तन कर राणा
हाथों में भाला उठा लिया
हर हर बम बम बम महादेव २
कह कर रण को प्रस्थान किया
देखा
जब(?) पति का वीर वेष
पहले तो रानी हर्षाई
फिर सहमी झिझकी अकुलाई
आँखों में बदली घिर आई
बादल सी गई झरोखे पर २
परकटी हंसिनी थी अधीर
घोड़े पर चढ़ा दिखा राणा
जैसे कमान पर चढ़ा तीर
दोनों की आँखें हुई चार
चुड़ावत फिर सुधबुध खोई
संदेश पठाकर रानी को
मँगवाया प्रेमचिह्न कोई
सेवक जा पहुँचा महलों में
रानी से माँगी सैणानी
रानी झिझकी फिर चीख उठी
बोली कह दे मर गैइ रानी
ले खड्ग हाथ फिर कहा ठहर
ले सैणानी ले सैणानी
अम्बर बोला ले सैणानि
धरती बोली ले सैणानी
रख कर चाँदी की थाली में
सेवक भागा ले सैणानि
राणा अधीर बोला बढ़कर
ला ला ला ला ला सैणानी
कपड़ा जब मगर उठाया तो
रह गया खड़ा मूरत बनकर
लहूलुहान रानी का सिर
हँसता था रखा थाली पर
सरदार देख कर चीख उठा
हा हा रानी मेरी रानी
अद्भुत है तेरी कुर्बानी
तू सचमुच ही है क्षत्राणी
फिर एड़ लगाई घोड़े पर
धरती बोली जय हो जय हो
हाड़ी रानी तेरी जय हो
ओ भारत माँ तेरी जय हो ४
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शत-शत नमन वीरांगना हाड़ी रानी को |
हाडी रानी के बारे में एक जगह और भी पढ़ा था. ऐसे ही वीरों की वजह से सनातनियों का अस्तित्व बचा है..
achche sahsik bol or rajputaana ki aan baan shaan kaa prtik hen . akhtar khan akela kota rajsthan
6/10
वीर-रस से ओत-प्रोत प्रेरक पोस्ट.
भूली-बिसरी बहुत ही अनोखी चीज आपने प्रस्तुत की है.
वीडिओ देखकर-सुनकर मेरी तो भुजाएं फड़क उठीं.
कहाँ है चोट्टा पाकिस्तान ~~~~ निकालो बाहर
आज फैसला हो ही जाए
वीरांगना हाड़ी रानी के बार पढ कर ओर सुन कर बहुत अच्छा लगा, आप का धन्यवाद
शत-शत नमन वीरांगना हाड़ी रानी को |
वीरांगना को नमन।
आपका शुक्रिया इतनी महान वीरांगना से मिलाने के लिए !
आपके पोस्ट की चर्चा यहां की गयी है
बहुत बढ़िया गीत है | वीरता से ओत प्रोत पुराना गीत सुनवाने हेतु आभार |
आपने एक नायाब ऐतिहासिक सच और इतनी खूबसूरत रचना को यहां पुनर्जिवीत करने का काम किया है. इतनी सुंदर रचनाएं ढूंढे से भी कहां मिलती है? बहुत आभार इस ओजस्वी रचना के विडियो को यहां लगाने के लिये.
रामराम.
बचपन में, यह रिकॉड मेरे पास था। इसे हम अक्सर सुनते। आज सुन कर फिर से अच्छा लगा।
बहुत ही अच्छा लगा.पहली बार सुना/देखा…आभार………..
बहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर/सुनकर!
मै इस गीत को कई बार सुन चुकी हूँ और आज वापस ढूंढ कर आई हूँ। बेहद ही मधुर और प्रेरणादायी गीत है।
बहुत अच्छा लगा पढकर सुनकर!
बहुत बहुत बहुत धन्यवाद! इस कविता से परिचित करवाने का.. मैने इसे गाने का प्रयास किया है यहां –
http://archanachaoji.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
बहुत अच्छा लगा इसे पढ़कर/सुनकर!
पढ़ना बहुत अच्छा लगा. आपका आभार.
रचना जी के स्वर में सुनने का अलग आनन्द आया, उसमें म्यूजिक का शोर न होने की वजह से शब्दों पर बेहतर ध्यान गया:
http://archanachaoji.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
बहुत ही अच्छा लगा.पहली बार सुना