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Wednesday, June 7, 2023

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हमारी साझा संस्कृति में दलित सम्मान

दलित उत्पीडन की ख़बरें अक्सर अख़बारों में सुर्खियाँ बनती है फिल्मो में भी अक्सर दिखाया जाता रहा है कि एक गांव का ठाकुर कैसे गांव के दलितों का उत्पीडन कर शोषण करता है | राजनेता भी अपने चुनावी भाषणों में दलितों को उन पर होने वाला या पूर्व में हुआ कथित उत्पीड़न याद दिलाते रहते है पर सब जगह ऐसा नहीं है गांवों में उच्च जातियों के लोग पहले भी दलितों को सम्मान के साथ संबोधित करते थे और अब भी करते है साथ ही अपने बच्चों को भी संस्कारों में अपने से बड़ी उम्र के लोगों को सम्मान देना सिखाते है चाहे बड़ी उम्र का व्यक्ति दलित हो या उच्च जाति का |

मैंने भी एक उच्च (राजपूत)जाति में जन्म लिया है, राजस्थान के लगभग क्षेत्र में आजादी से पूर्व राजपूत शासकों व जागीरदारों का ही शासन था इसलिए ज्यादातर राजनैतिक पार्टियाँ दलितों के उत्पीड़न का आरोप इस शासक जाति पर ही लगाते रहती है | हमारे गांव में जनसँख्या की दृष्टि से राजपूत ही बहुसंख्यक है | बचपन में हमें बुजुर्गों द्वारा यही समझाया व सिखाया जाता था कि अपने से बड़े चाहे वे दलित हो या अन्य जातियों के लोग तुम्हारे लिए सभी सम्मानीय है अतः हम गांव के किसी भी दलित को जो हमारे पिताजी से बड़ा होता था को बाबा व जो पिताजी से छोटा होता था को काका कहकर ही पुकारते थे | गांव में सबसे नीची जाति मेहतरों की मानी जाति है पर हम तो सोनाराम मेहतर को सोना बाबा ही कहकर पुकारते थे और घर पर झाड़ू के लिए आने वाली मेहतरानी को मेहतरानी जी ही कहकर पुकारा जाता था और अब भी इन्ही संबोधन से पुकारा जाता है |यही नहीं बुजुर्ग मेहतरानी के राजपूत घरों में आने पर उससे सभी छोटी राजपूत महिलाये उसके आगे झुककर हाथ जोड़कर प्रणाम कर आशीर्वाद लेती है | गांव में किसी भी दलित बेटी की शादी के अवसर पर उच्च जाति की महिलाये उसके सुहाग की कामनाओं व सलामती के लिए व्रत रखती है | यही नहीं इस तरह की परम्पराओं का कठोरता से पालन होता रहे इसके लिए बुजुर्ग लोग हमेशा ध्यान रखते है | बच्चो द्वारा किसी दलित के साथ अबे तबे करने की शिकायत पर बुजुर्ग तुरंत संज्ञान लेकर अपने बच्चों को दण्डित भी करते है |

साँझा संस्कृति में दलितों के साथ इस तरह का व्यवहार सिर्फ हमारे गांव में अकेले ही नहीं वरन राजस्थान में हमारे क्षेत्र के सभी गांवों में एक समान है | जब बचपन से ही कोई किसी का सम्मान करता आया हो क्या वो उसका उत्पीड़न कर सकता है ? या जो बुजुर्ग अपने बच्चों में ये संस्कार डालते है क्या वे उन्हें दलितों के उत्पीड़न की छुट दे सकते है ?

फिर भी अक्सर दलित उत्पीड़न की खबरे अख़बारों में पढने को मिल जाया करती है | दरअसल किसी उच्च जाति के व्यक्ति के साथ किसी दलित के व्यक्तिगत झगड़ों को आजकल जातिय रूप दे दिया जाता है | इस तरह के व्यक्तिगत झगड़ों में राजनैतिक लोग अपनी राजनैतिक रोटियां सेकने के चक्कर में कूद पड़ते है और वह झगड़ा बढ़ जाता है | कई बार राजनैतिक लोग आपसी प्रतिद्वन्दता के चलते किसी को सबक सिखाने के लिए अपने समर्थक किसी दलित को इस्तेमाल कर अपने विरोधी पर उससे मुकदमा ठुकवा देते है और फिर उसकी अख़बारों में ख़बरें छपवाकर मामले को तूल दे देते है | इस तरह के मामले अक्सर पंचायत चुनावो के दौरान अधिक देखने को मिलते है | जो इस साँझा संस्कृति में जहर घोलने का कार्य कर रहें है |

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15 COMMENTS

  1. आप की बात से सहमत हुं, यह सिर्फ़ फ़िल्मो मै या फ़िर राज नीति मै ही दलित को इस उत्पीडन रुप मै दिखाया जाता है. आम जीवन मै हम सभी को यह संस्कार दिये जाते है कि अपनो से बढो का सम्मान करो

  2. राजनीति ने सभी को बांट कर रख दिया
    अब काका-ताऊ भी लो्गों ने कहना बंद दिया।
    वो जमाना लद गया।
    जातिवादी जहर का तूफ़ान उफ़ान पर है।

    राम राम सा

  3. आप की बात से सहमत हुं,"दरअसल किसी उच्च जाति के व्यक्ति के साथ किसी दलित के व्यक्तिगत झगड़ों को आजकल जातिय रूप दे दिया जाता है"

    मेरी आंखो देखी बात है,एक स्वर्ण होटल वाले ने दलित व्यक्ति को मुफ़्त कचोरियां खिलाने से मना क्या किया,उसने जाति वाचक अपमान का मुक़दमा ठोक दिया। यह 15 वर्ष पुरनी घटना है।
    दुखद है हमारे देश में सुधारों के क़ानूनो का उपयोग कम दुरपयोग ज्यादा होता है।

  4. "अपने समर्थक किसी दलित को इस्तेमाल कर अपने विरोधी पर उससे मुकदमा ठुकवा देते है और फिर उसकी अख़बारों में ख़बरें छपवाकर मामले को तूल दे देते है" ऐसा हमने भी पाया है. परन्तु आजकल जातिवाद पर रोटी सेंकी जा रही है.

  5. हमारे यहा भी गांव के हिसाब से रिश्ते चलते है मेरी ननिहाल मे उम्र के हिसाब से सब मेरे नाना, मामा ,मौसी ,मामी ,नानी ,भाभी चाहे वह दलित ही क्यो ना हो .
    कभी कही कोई उत्पीडन हुआ होगा उसका ढिंढोरा आज तक पीटा जा रहा है .

  6. एक बार की घटना है की एक बड़े ठाकुर साहब से उनकी मेहतरानी ने कुछ रूपये मांगे मना करने पर उस मेहतरानी ने अपने सामाज की दूसरी मेहतरानी से रूपये इस एवज में लिए की वो आज से ठाकुर साहब के यंहा झाड़ू का काम उसे दे देगी | इस बात का दूसरी मेहतरानी को गर्व हो गया | बाजार में बनिए की दूकान पर सयोग वश ठाकुर साहब उसी वक्त सौदा लेने पहुचे जब वो मेहतरानी सौदा ले रही थी | ठाकुर साहब ने उसे थोड़ा जगह देने की लिए कहा तो जवाब में उसने कहा " ठाकुर साहब ज्यादा बढ़ चढ कर मत बोलिए आप तो मेरे यंहा गिरवी रखे हुए हो |" जब ठाकुर साहब को पूरी बात का पता चला तो उन्होंने उसका कर्जा चुकाया | आपने जो लिखा है वो सौ प्रतिशत सत्य है उत्पीडन केवल राजनीति का हथियार है |

  7. जिस दलन के लिए निम्न वर्ग को दलित कहा गया वो दलन आज भी है… आज भी उच्च वर्ग (आर्थिक या सामाजिक) कहीं न कहीं निम्न वर्ग का शोषण करता है… इसको केवल जातियों के परिप्रेक्ष्य में नहीं देखा जा सकता … ऐसे बहुत से उदाहरण हैं जिनमे तथाकथित निम्न वर्णी ने उच्च वर्ग पर झूठे मुकदमे जड़ दिए …या जातिगत कानूनों की आड़ में तमाम अनीतियाँ हुईं .. ये भी उसी तरह का दलन है … मुझे कई व्यक्तिगत ऐसे अनुभव हैं अथवा दृष्टांत हैं, कि जो दलित उच्च पदों पर हैं वो सवर्णों पर अपने इतिहास का बदला लेने जैसी नियति रखते हैं … तो दलन हर युग में किसी न किसी रूप में विद्यमान रहा है और रहेगा … इसे केवल जाति अथवा वर्ण के दायरे में रख कर नहीं देख सकते हैं … और भारत की राजनीति ने इसे वो दिशा दे दी है कि निकट भविष्य में जातियों का समीकरण ही वर्चस्व तय करेंगी … अब तो दलित वही होगा जो संख्या में, धन में, अथवा सत्ता के दृष्टिकोण से कमज़ोर है

  8. आ गया है ब्लॉग संकलन का नया अवतार: हमारीवाणी.कॉम

    हिंदी ब्लॉग लिखने वाले लेखकों के लिए खुशखबरी!

    ब्लॉग जगत के लिए हमारीवाणी नाम से एकदम नया और अद्भुत ब्लॉग संकलक बनकर तैयार है। इस ब्लॉग संकलक के द्वारा हिंदी ब्लॉग लेखन को एक नई सोच के साथ प्रोत्साहित करने के योजना है। इसमें सबसे अहम् बात तो यह है की यह ब्लॉग लेखकों का अपना ब्लॉग संकलक होगा।

    अधिक पढने के लिए चटका लगाएँ:
    http://hamarivani.blogspot.com

  9. असल में दलित समस्‍या राजस्‍थान की है ही नहीं। मेवाड़ के राजचिन्‍ह में एक तरफ राजपूत है और दूसरी तरफ भील है। राजवंश की परम्‍परा के अनुसार भील ही प्रथम राज्‍याभिषेक करता रहा है। यह समस्‍या बिहार, यूपी आदि की हो सकती है। इसलिए सारे भारत की समस्‍या बताना और अनावश्‍यक भारतीयों को दोष देना उचित नहीं लगता है। वैसे भी जमीदारी प्रथा भारतीयों की नहीं अंग्रेजों की देन है। आपने बहुत सार्थक लेख लिखा इसके लिए आभार।

  10. हम भी दलितों के नाम के पिछे "जी" लगाकर ही बुलाते आयें है. यहां तक की उनकी जाती में भी जीकारा लगता था, मेहतारणीजी, भांभीजी, ढोलीजी. नाम के साथ भी सम्मान दिया जाता था.

    लोकतंत्र का तो मुलमंत्र ही यही है कि आपस में लडाओ और राज करो.

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