28.2 C
Rajasthan
Saturday, September 23, 2023

Buy now

spot_img

स्वतंत्रता समर के योद्धा : महाराज पृथ्वी सिंह कोटा

स्वदेश की स्वंत्रता के लिए आत्मोसर्ग करने में महाराज पृथ्वी सिंह हाडा का भी उर्जस्वी स्थान है | पृथ्वी सिंह कोटा के महाराव उम्मेद सिंह का लघु पुत्र और महाराव किशोर सिंह द्वितीय का लघु भ्राता था | ब्रिटिश सरकार की दृष्टि में समस्त भारतवर्ष पर अपना आधिपत्य स्थापित करने में अब पंजाब और राजस्थान ही शेष बच रहे थे | राजस्थान में अंग्रेजों का कोटा क्षेत्र में तब नानता का स्वामी और तदन्तर झालावाड राज्य वालों का पूर्वज महाराज राणा जालम सिंह झाला प्रमुख सहयोगी था | वह भी अंग्रेजों के माध्यम से कोटा पर अपना राजनैतिक प्रभुत्व जमाये रखना चाहता था | महाराज पृथ्वी सिंह अंग्रेजों तथा जालिम सिंह की राजनैतिक कूटनीतियों के दूरगामी परिणामों को समझता था | जालिम सिंह ने महाराव किशोर सिंह कोटा , कोयला के स्वामी राज सिंह हाडा , गैता के कुमार बलभद्र सिंह व् सलामत सिंह तथा उसके चाचा दयानाथ हाडा ,अनुज दुर्जनशाल , राजगढ़ के देव सिंह प्र्भ्रती हाडा व चन्द्रावत वीरों को अंग्रेजों के पारतंत्र्य से मातृभूमि को मुक्त करने के लिए उद्दत किया |
स्वातंत्र्य संघर्षियों के विरुद्ध काली सिन्ध नदी पर अंग्रेज अधिकारी कर्नल जेम्स टाड, लेफ्टीनेंट कर्नल जैरिज.लेफ्टीनेंट कलार्क , लेफ्टीनेंट रीड के सेनानायाक्त्व में दस पलटन और पच्चासों तोपों के साथ आक्रमण किया | उधर स्वंत्रता के रक्षक महाराज पृथ्वी सिंह के आव्हान पर आठ हजार हाडा वीर अपनी ढालें ,पुराणी देशी बंदूकें ,भाले,तीर -कमान ,तलवारें और बरछे लिए सामने आ डटे | दोनों और से झुझाऊ वाध्यों के स्वर वीरों को प्रोत्साहित करने लगे | घोड़ों की हिनहिनाहटों ,वीरों की ललकारों ,अपने अपने अराध्य देवों के जयकारों से धरा आकाश में तुमुलनाद फ़ैल गया | युद्ध के वीर यात्री ,स्वतंत्रता स्नेह के नाती ,यमराज के भ्राता से दृढ हाडा वीर अंगद के समान ,अपने पैरों को रणभूमि में स्थिर कर लोह लाट की तरह जम गए | अंग्रेजों के धधकते अंगारे बरसाते तोपखानों पर पतंगवत अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले वीर बाँकुरे हाडा टूट पड़े | शत्रुओं की रक्षा पंक्तियों को क्षण मात्र में छिन्न-विछिन्न कर ठाकुर देवी सिंह राजगढ़ ने लेफ्टिनेंट क्लार्क और कुमार बलभद्र सिंह गैंता ने लेफ्टिनेंट रीड को मारकर मैदान साफ़ कर दिया | लेफ्टिनेंट जैरिज युद्ध क्षेत्र में घावों से आपूर्ण होकर गिर पड़ा | पृथ्वी सिंह की विजय का घोष चारों ओर गूंजने लगा | किन्तु तब भी महाराज पृथ्वी सिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ | वह ठाकुर देवी सिंह राजगढ़ सहित अपने चुने हुए पच्चीस हाडा वीरों के साथ महाराज राणा जालिम सिंह की सेना पर टूट पड़े | युद्ध की भयानकता से जालिम सिंह की सेन्य पंक्ति में कोहराम मच गया | सैकड़ों प्रतिभटों के मस्तक रण स्थल पर लुढ़कने लगे | मुंड विहीन धड़ भंभाभोली खाकर (चक्राकार , घूमकर ) पृथ्वी पर गिरने लगे |
अंत में महाराज पृथ्वी सिंह और ठाकुर देवी सिंह राजगढ़ भी तिल-तिल घावों से छक कर रणभूमि पर सो गए | कर्नल टाड ने उन्हें पालखी में उठवाकर चिकित्सार्थ शिविर में पहुँचाया , जहाँ वे दुसरे दिन वीरगति को प्राप्त हुए | संवत 1871 वि . को मांगारोल स्थान के उस युद्ध में स्वातन्त्र्य समर के उर्जस्वी योद्धा महाराज पृथ्वी सिंह ने यों आजादी के समर यज्ञ में अपने प्राणों की समिधा डालकर उसे प्रज्ज्वलित किया |
यद्दपि भारतीय इतिहासकारों ने ब्रिटिश सत्ता के प्रकोप से उक्त वीरों को अपने इतिहासों में महत्व नहीं दिया है | ब्रिटिश दासता की विगत सवा शताब्दी में उस वीर के बलिदान के प्रति सभी ओर से उपेक्षा बरती गयी तथापि सम-सामयिक राजस्थानी कवियों ने अपने कवि धर्म का पालन किया | महाराज पृथ्वी सिंह द्वारा अंग्रेजों की आधुनिक युद्ध सज्जा से युक्त एवं रण कला से प्रशिक्षित शत्रु सेना से घमासान युद्ध कर वीरगति प्राप्त करने का जो वर्णन किया है वह स्वातन्त्र्य स्वर के उद्बोधक कविवर जसदान आढ़ा ने महाराज पृथ्वी सिंह की रण क्रीडा को होली के पर्व पर रमी जाने वाली फाग क्रीडा से तुलना करते हुए कहा है –

बौली चसम्मा मजीठ नखंगी घूप रै बागां
पैना तीर गोळी सांग लागा आर पार |
होळी फागां जेम खागां उनंगी पीथलै हाडै,
हिलोळी फिरंगा सेना पैंतीस हजार ||

वीरवर पृथ्वी सिंह , तीक्षण -बाणों , गोलियों ओर भालों के प्रहार से क्षत विक्षत हो जाने पर और क्रुद्ध होकर तलवार से प्रहार करने लगा | होलिकोत्सव की फाग क्रीडा के समान नग्न तलवारों के आघात कर उसने अंग्रेजो की पैतीस हजार सेना को आंदोलित कर दिया |
लेखक : ठाकुर सोभाग्य सिंह शेखावत

मेरी शेखावाटी: आइये मोबाईल द्वारा माइक्रो फोटोग्राफी करे
ताऊ डाट इन: टंकी अवरोहण का भंडाफोड़ : "ताऊ टीवी फ़ोड के न्यूज" द्वारा
कैल्सियम और आयरन का भंडार है बथुआ भाग-२

Related Articles

9 COMMENTS

  1. न जाने क्यों इस अंश को पढ़ कर मेरी रगों का खून गर्म हो उठा। शायद मेरे पैतृक ग्राम गैंता और वर्तमान आवास कोटा के रणबांकुरों के उल्लेख के कारण।
    जालिम सिंह वाकई जालिम था।

  2. डॉ रूप चन्द्र शास्त्री जी से पूर्ण रूप से सहमत " स्वतंत्रता समर के योद्धाओं की यह श्रंखला बहुत अच्छी चल रही है!
    इस क्रम को जारी रखें!" इस श्रंखला को एक किताब के रूप में उतारे तो और अच्छा रहेगा.

  3. बढ़िया।
    पहला पैराग्राफ दो तीन में कर देते तो शायद पोस्ट पर एकाग्र होना अधिक सरल होता।
    कोटा संग्रहालय में कुछ चित्र, अंग्रेजों के जमाने के हैं और एक चित्र तो अभी भी मन में है जो स्वातन्त्र्य युद्ध को हेय बताता था। आपकी हाड़ोती विषयक पोस्ट पढ़ी तो याद आ गया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Stay Connected

0FansLike
3,867FollowersFollow
21,200SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles