क्षणों के कांटे सी हूँ मैं
हर क्षण धुरी पर परिक्रमा मेरी
वक़्त बदल देती हैं मेरी परिक्रमा
क्षण घंटे दिन बदले
साल सदियां गुजर गई
पर मेरी परिक्रमा का अंत नहीं
परिक्रमा नियति हैं मेरी
पर बदलना स्वभाव नहीं
तुम मुझ से बने हो मैं तुम से नहीं
तुम्हारा सम्पूर्ण होना मुझ पर निर्भर हैं
अगर क्षण भर भी रुक जाऊ तो
धकेल दूं तुम्हें उतने वक्त के लिए पीछे
तुम्हारा वजूद मुझ से हैं
और वजूद के बिना तुम कुछ नहीं
स्त्री हूँ परिक्रमा नियति हैं मेरी
बदलना मेरा स्वभाव नहीं.
उषा राठौड़
नारी स्वभाव का बढ़िया चित्रण
गहरी अभिव्यक्ति, नारी के बारे में बहुधा नर की समझ एक परिक्रमा हो कर ही रह जाती है।
तुम्हारा सम्पूर्ण होना मुझ पर निर्भर है !
नारी ही नर को सम्पूर्ण बनाती है …बढ़िया !
परिक्रमा नियति है मेरी 'यही है सार !
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति है.
बधाई उषा जी.
वाह ! क्या बात है उषा ..नारी से ही जनित यह संसार है ..नारी नहीं तो कुछ नहीं ..सारा संसार बेकार है ….तुम्हारे शब्द बहुत ही उम्दा है…..
बहुत अच्छी प्रस्तुति!
इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (04-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
्बेहद गहन प्रस्तुति
और परिक्रमा चलती रहेगी क्योंकि स्त्री ही वो शक्ति है जो सक्षम है परिक्रमा करने के लिए
खूबसूरत रचना…
दो-एक बार मैंने वर्तनी की अशुध्दियों की ओर संकेत किया था तो आपने वे अशुध्दियॉं जाननी चाही थीं। किन्तु तब मैं 'कॉपी-पेस्ट' नहीं कर पाया था। आज कर पाया हूँ तो बताने का साहस कर रहा हूँ –
वक़्त 'बदल देती हैं' मेरी परिक्रमा –
मेरे मतानुसार यह पंक्ति इस तरह होनी चाहिए थी –
वक्त बदल देता है मेरी परिक्रमा
(मूल पंक्ति में 'हैं' में अनुस्वार प्रयुक्त किया है जो उचित नहीं है।)
परिक्रमा नियति 'हैं' मेरी – इस पंक्ति में भी 'हैं' में अनुस्वार प्रयुक्त किया है जो उचित नहीं है।
तुम्हारा सम्पूर्ण होना मुझ पर निर्भर 'हैं' – इस पंक्ति में भी 'हैं' में अनुस्वार प्रयुक्त किया है जो उचित नहीं है।
अगर क्षण भर भी रुक 'जाऊ' तो – इस पंक्ति में 'जाऊ' पर अनुस्वाकर प्रयुक्त किया जाना चाहिए था – 'जाऊँ'
तुम्हारा वजूद मुझ से 'हैं' – इस पंक्ति में भी 'हैं' में अनुस्वार प्रयुक्त किया है जो उचित नहीं है।
स्त्री हूँ परिक्रमा नियति 'हैं' मेरी – इस पंक्ति में भी 'हैं' में अनुस्वार प्रयुक्त किया है जो उचित नहीं है।
आशा (और प्रार्थना) है – अन्यथा नहीं लेंगे। अच्छी रचनाओं में ऐसी अशुध्दियॉं, 'केसरिया भात में कंकर' जैसा कष्ट देती हैं।
अभिव्यक्ति जो दिल को छु गई