सुरजल माता मंदिर : सुदरासन गांव नागौर जिले में सीकर डीडवाना सड़क मार्ग पर स्थित है | यह गांव सीकर से लगभग 42 किलोमीटर व डीडवाना से लगभग 30 किलोमीटर दूर है | पुरातत्वविदों के अनुसार यह गांव बहुत प्राचीन है, यहाँ कुषाण कालीन सिक्के मिले हैं, यहाँ प्रतिहार कालीन कई मंदिरों का समूह व बावड़ियाँ आदि थी, जिसमें एक बावड़ी और एक मंदिर आज भी विद्यमान है | प्रतिहार कालीन सूर्य मंदिर के अब सिर्फ अवशेष बचे हैं | गांव में खुदाई में बहुतायत से मिली जैन प्रतिमाओं को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह गांव कभी जैन धर्म की धार्मिक नगरी के रूप में विख्यात रहा है | आज भी गांव वालों को मिटटी की खुदाई में जैन प्रतिमाएं अक्सर मिलती रहती है | यहाँ मिली कई महत्त्वपूर्ण जैन प्रतिमाएं वर्तमान में लाडनू में रखी हुई है |
प्राचीन व्यापारिक रूट पर पड़ने वाला यह गांव आजादी से पूर्व मारवाड़ के राठौड़ साम्राज्य का अंग था | आस पास के कई गांवों की प्रशासनिक व्यवस्था गांव में बने छोटे से गढ़ से चलती थी | इस गढ़ में इस क्षेत्र के जागीरदार ठाकुर का परिवार निवास करता था और आज भी उनके वंशज इसी गढ़ में निवास करते हैं | गांव के प्राचीन मंदिरों में बचा एक मंदिर आज सुरजल माता मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है जहाँ दूर दराज के लोग पूजा अर्चना व आराधना करने आते हैं | सुरजल माता को जाटों के कई गोत्र के लोग अपनी कुलदेवी मानते है और विभिन्न अवसरों पर यहाँ अपनी कुलदेवी की पूजा आराधना करने आते हैं | मंदिर के अधीन गौचर के लिए एक हजार बीघा से भी ज्यादा बड़ा बीहड़ है जहाँ ग्रामीणों द्वारा संचालित गौशाला की गायें चरती है |
जनश्रुतियों के अनुसार यह मंदिर पांडवकालीन है और यह गांव माद्री का पीहर था | यहाँ के पंडित जी ने इस जनश्रुति के बारे में हमें बताया महाभारत की रानी माद्री से यहाँ का इतिहास जुड़ा है और यह देवी शायद उनकी कुलदेवी रही हो | पंडित जी ने मंदिर से जुड़ी जानकारी किसी इतिहास पुस्तक में नहीं मिलने के बारे में भी हमें बताया | स्थानीय जनश्रुतियों में यह मंदिर पांडवकालीन बताया जाता है पर पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार यह मंदिर सातवीं आठवीं शताब्दी का है और तब इस मंदिर में देवी की पूजा नहीं होती थी | पुरातत्वविद इसे किसी अन्य देवता का मंदिर होने की बात कहते हैं | पुरातत्व विशेषज्ञ ललित शर्मा के अनुसार किसी भी मंदिर के गर्भगृह के दरवाजे की ऊपरी चौखट पर मंदिर के मुख्य देवता की छोटी प्रतिमा लगी होती है | ललित शर्मा जी की बात को ध्यान में रखते हुए हमने के गर्भगृह के दरवाजे की ऊपरी चौखट पर बनी प्रतिमा व मंदिर में रखी सुरजल माता की प्रतिमा से मिलान किया, हमें दोनों प्रतिमाओं में फर्क साफ़ नजर आया | फर्क को देखते हुए हम इस निष्कर्ष पर तो पहुँच गये कि प्राचीन काल में यह मंदिर किसी अन्य देवता का रहा है | हमारी बात की पुष्टि करते हुए पुरातत्वविद गणेश जी बेरवाल ने प्राचीन काल में सुरजल माता मंदिर विष्णु देवता का होने के प्रमाणिक तथ्यों का हवाला देते हुए हमें बताया – प्रतिहार काल में विष्णु प्रधान देवता थे | मंदिर के चारों ओर चार दिग्पाल बने हैं जिनमें पीछे की तरफ महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा है यदि यह मंदिर देवी का होता तो देवी की प्रतिमा पीछे नहीं, मुख्य द्वार पर भी होती |
मंदिर के गर्भगृह के दरवाजे की ऊपरी चौखट पर समुद्र मंथन दृश्य की प्रतिमा बनी है और उसके नीचे बनी को पुरातत्वविद गणेश जी बेरवाल विष्णु की प्रतिमा बताते हुए दावा करते हैं कि सातवीं आठवी सदी में बना यह मंदिर विष्णु का था और उस काल यहाँ विष्णु की पूजा आराधना होती थी, पर आज इस मंदिर में सुरजल माता की प्रतिमा स्थापित है | सुरजल माता आस-पास ही नहीं दूर दराज के लोगों की जन आस्था की केंद्र है |
नोट : विष्णु की जगह देवी की प्रतिमा कब रखी गयी, क्यों रखी गयी, हमें इससे कोई सरोकार नहीं है | हमने सिर्फ इसके ऐतिहासिक तथ्यों की जानकारी देने की कोशिश है | जय सुरजल माता ||