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समय : कल्पना जड़ेजा

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मोहब्बत में चिराग जलाने की क्यों बातें करते हो …
विज्ञान का जमाना है.. बिजली जला लो न ..
प्रदुषण फैलता है ..इतना भी नहीं जानते हो …
भावनाओं का स्थान नहीं है यहाँ ..
यहाँ दिल में दिल नहीं पत्थर है ..
क्यों अपनी भावनाओं को दुखाते हो …
गया वो जमाना भी जब सिने में दिल रहा करते थे .
एक दुसरे के दुःख सुख में रहा करते थे साथ साथ …

अपने लिए भी समय नहीं है अब कहाँ तुम दूसरों की बात करते हो ..
कभी समय निकाल कर तुम दिल से अपनी बात कर लिया करो ..
अपनी भावनाओं को तुम भी सजा लिया करो ..
और समय मिले तब उसे सजा लिया करो …

लोग हँसते है अब भावनाओं को दूर रखा करो ..
मोहब्बत में क्यों अब चिराग जलाने की बात करते हो …
गया वो जमान जब सिने में दिल रहा करता था..
पत्थर की इस नगरी में ..अब पत्थर ही रहा करते है ||

कल्पना जड़ेजा

12 COMMENTS

  1. ज्ञान दर्पण में आपका स्वागत 🙂
    अपने लिए भी समय नहीं है अब कहाँ तुम दूसरों की बात करते हो.. -बहुत ही बढिया पंक्ति ..
    सच को बयां करती आपकी यह रचना बहुत बढ़िया लगी |

  2. अच्‍छे भावों में वर्तनी की अशुध्दियॉं वैसा ही कष्‍ट देती हैं जैसे कि स्‍वादिष्‍ट, सुवासित बासमती भात में कंकर।

  3. @ विष्णु बैरागी जी
    इस रचना में कौनसी वर्तनी अशुद्ध है ? कृपया बताने की कृपा करें ताकि उसे सुधारा जा सके और आगे के लिए भी ध्यान रखा जा सके|

  4. विष्‍णु जी ने सिने को सीने, दुसरे को दूसरे, प्रदुषण को प्रदूषण, जमान को जमाना – जबकि जब संचार सफल है तो इतनी वर्तनी की अशुद्धियां चलती हैं। ठीक की जा सकती हैं लेकिन इनके बल पर फजीहत करना ठीक नहीं कहा जा सकता है। जब भावनाएं शुद्ध हैं तो वर्तनी चल सकती है। भावनाएं ही अशुद्ध हों तो शुद्ध वर्तनी से भी क्‍या हासिल होने वाला है।

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