देश में सत्ता हस्तांतरण जिसे लोग आजादी कहते है के बाद हिन्दू राजाओं द्वारा दलित वर्ग के शोषण का कांग्रेस सहित सेकुलर गैंग ने खूब दुष्प्रचार किया| इस गैंग ने सामन्तवाद नाम का एक शब्द घड़ा और राजाओं की सत्ता से जुड़े हर छोटे-बड़े अंग को सामंत की संज्ञा देकर उनके खिलाफ दुष्प्रचार किया| जबकि वर्तमान में भी कई हिन्दू राजपूत राजा और सामंत लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं| मजे की बात है कि जिन दलितों के शोषण का आरोप सामंतों पर लगाया जाता है, वे दलित ही सामंतों को अपना भगवान समझकर लोक देवता के रूप में पूजते हैं|
राजस्थान में रामदेव तंवर, मल्लीनाथ राठौड़, पाबूजी राठौड़, जाम्भो जी पंवार, हड्बूजी सांखला आदि सभी लोक देवता जाति से राजपूत है और उनमें श्रद्धा रखने वालों की संख्या दलितों की ज्यादा है| अब सवाल यह उठता है कि आखिर इन सामंतों को दलित अपना ईष्टदेव क्यों मानते है? इसका उत्तर समझने के लिए हम बात करते है नायक नाम की दलित जाति द्वारा पाबूजी राठौड़ को ईष्टदेव मानने की| आप देश में कहीं भी नायक जाति के मुहल्ले में चले जाइये आपको पाबूजी राठौड़ का छोटा-मोटा मंदिर अवश्य दृष्टिगोचर होगा|
14 वीं सदी में नायक जाति की थोरी शाखा के नायकों के हाथों उस क्षेत्र के सामंत आना बाघेला का पुत्र मारा गया| दरअसल अकाल की स्थिति में थोरियों ने पशुओं को मार खाना शुरू कर दिया| शिकायत मिलने पर आना के पुत्र ने उनके साथ डांट-डपट की, विवाद बढ़ा और थोरियों के हाथों कुंवर मारा गया| आना बाघेला के डर के मारे थोरी वहां से पलायन कर गए, पर उन्हें किसी सामंत ने अपने राज्य में आना बाघेला के डर से शरण नहीं दी| तब पाबूजी राठौड़ की जागीर में पहुंचे, पाबूजी राठौड़ ने उन्हें शरण दी, गले लगाया और पूरा संरक्षण दिया| नतीजा थोरी भी पाबूजी राठौड़ के चाकर बने, उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर युद्धों में भाग लिया, चारण जाति की महिला के गौधन की रक्षा के लिए जब पाबूजी राठौड़ का जिन्दराव खिंची से युद्ध हुआ तब थोरियों ने भी तलवार के जौहर दिखलाए और पाबूजी राठौड़ के साथ अपने प्राणों का उत्सर्ग किया| आज थोरी नायक है नहीं पूरी नायक जाति पाबूजी राठौड़ को ईष्टदेव मानते है, जहाँ जहाँ नायक जाति के लोग रहते है वहां वहां उन्होंने पाबूजी राठौड़ का मंदिर बना रखा है| आज दलितों को संरक्षण देने वाला व गौरक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाला वह सामंत पाबूजी राठौड़ देशभर में लोक देवता के रूप में पूजा जाता है और उसकी याद में लोकगीतों के स्वर गूंजते हैं|
थोरियों संरक्षण देने वाली घटना का राजस्थान के प्रथम इतिहास मुंहता नैणसी ने अपनी ख्यात में विस्तार से जिक्र किया है|