पिछले दिनों हुए खुलासों के बाद अब देश के आम नागरिक को शंका होने लगी है कि पता नहीं इस तरह के गठबंधन ने देश के संसाधनों को कितना लूटा होगा ? और लूट रहें है| राज्य सत्ता पर व्यापारियों (महाजनों) का प्रभाव कोई नई बात नहीं है| देश की स्वतंत्रता से पहले भी महाजनों का देश के सभी छोटे-बड़े राजाओं, नबाबों और बादशाहों पर अपने अकूत धन दौलत की वजह से प्रभाव रहा है| किसी भी सरकार को चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती है यह धन जितना किसी भी राज्य को व्यवसायी कमा कर दे सकते है उतना कभी भी आम-जनता नहीं दे सकती| राजाओं के जमाने में भी राज्य के बड़े बड़े सेठ राजा को आर्थिक मदद देकर राज्य में अपने व्यवसाय के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ और सुरक्षा प्राप्त करते थे| साथ ही राजा के दरबार में उपाधियाँ पाकर सम्मान भी पाते थे|
पर अपने अकूत धन के माध्यम से उस समय के महाजन सिर्फ राजा को ही प्रभावित नहीं रखते थे बल्कि अपना धन सामाजिक कार्यों व जन-कल्याण की योजनाओं में खर्च कर आमजन से भी आदर, सम्मान पाते थे| पुरानी चलती आ रही किसी भी जनश्रुति में कभी किसी पुराने समय के सेठ के बारे में कोई गलत बात अब तक नहीं सुनी|
राजस्थान के छोटे बड़े कस्बों व शहरों में आज भी सेठों द्वारा बनाये गए बड़े बड़े विद्यालय भवन, कालेज,धर्मशालाएं,कुँए,पक्के तालाब व बावड़ियाँ जगह जगह देखी जा सकती है| सैकड़ों वर्ष पहले सेठों द्वारा जन-कल्याण के लिए भवन व निर्माण आज भी देखकर लोग उनके प्रति श्रद्धा भाव दर्शाते हुए नतमस्तक हो जाते है| राजस्थान के सेठों ने तो दूर दूर जाकर दूसरे राज्यों में व्यापार कर धन कमाया और अपनी गाढ़ी कमाई का हिस्सा राजस्थान में लाकर जन-कल्याण में खर्च किया|
व्यवसायी तब भी सता को प्रभावित करते थे और आज भी पर उस वक्त के व्यवसायियों व वर्तमान व्यवसायियों की नैतिकता में रात दिन का फर्क है| पुराने समय के व्यवसायियों द्वारा जहाँ जन-कल्याण के लिए खर्च करने के कारण उनके प्रति आम-जन के मन आदर, सम्मान व श्रद्धाभाव होता था वहीं आज के व्यवसायियों द्वारा राजनीतिज्ञों व अफसरों से गठजोड़ कर देश के संसाधनों को लूटने की वजह से आम जन इनसे घृणा व नफरत करता है|
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