सतनामी विद्रोह | मार्च 1672 : आज बादशाह औरंगजेब नारनोल से भाग आई अपनी सेना का मनोबल बढ़ा रहा था पर उसके मुग़ल सैनिक 5000 हजार सतनामी सम्प्रदाय के विद्रोही लोगों का सामना करने से डर रहे थे वे मानकर चल रहे थे कि सतनामी सम्प्रदाय के लोगों को अमरता का वरदान प्राप्त है और उन्हें मार कर हराना ना मुमकिन है , बादशाह अपने सैनिकों के मन से यही डर निकालने का यत्न कर रहा था और उसने अपने सैनिकों के मन से डर निकालने को कुरान की आयतें लिखवाकर अपने झंडों पर चिपकवा रहा था और सैनिकों के हथियारों पर ताबीज बंधवा रहा था ताकि वे बिना डर के सतनामियों का सामना कर उनका विद्रोह दबा सके |
15 मार्च 1672 को नारनोल में सतनामी सम्प्रदाय से दीक्षित लोगों ने औरंगजेब की धर्म विरोधी नीतियों के चलते विद्रोह कर दिया था ये लोग कोई पेशेवर सैनिक नहीं थे ये साधारण कार्य करने वाले विभिन्न जातियों यथा – खाती, सुनार, रैगर आदि मेहनतकश हिन्दू जाति के लोग थे जो इस सम्प्रदाय से दीक्षित थे | इसी समुदाय के 5000 हजार लोगों ने नारनोल में इकठ्ठा होकर विद्रोह कर मारकाट मचा दी नारनोल कस्बे को लुट लिया और मस्जिदे ढहा दी इनके विद्रोह व मारकाट से घबराकर नारनोल का शाही फौजदार कारतलखान अपनी जान बचाकर भाग निकला | बाद में पड़ोसी जागीरदारों को लेकर फिर उसने सतनामियों पर हमला किया पर सतनामियों ने उसे भगा दिया और वे नारनोल पर कब्ज़ा कर दिल्ली के 17 किलोमीटर पास तक लूटपाट करते पहुँच गए | इसी दौरान इस अराजकता का लाभ उठा पड़ोसी जमींदारों ने भी शाही कर देना बंद कर दिया | बादशाह ने ताहिरखां को उनका दमन करने भेजा पर वह नाकामयाब रहा क्योंकि सतनामियों को सभी लोग अमर मानते थे सो इसी बात को लेकर मुग़ल सैनिक उनसे भयभीत थे और वे सतनामियों के आगे भाग खड़े होते |
आखिर बादशाह ने अपने झंडो पर कुरान की आयते लिखकर चिपकवाई व सैनिकों के हथियारों पर ताबीज बंधवा एक लड़ाकू दस्ता भेजा जिसकी मदद के लिए नजीबखां, रूमीखां, फिरोजखां मेवाती का पुत्र पुरदिलखां, दिलेरखां आदि योद्धाओं को साथ भेजा | इन योद्धाओं ने सतनामी विद्रोहियों पर भीषण आक्रमण किया सभी सतनामी विद्रोही बड़ी बहादुरी से लड़ते हुए मारे गए और इस तरह बादशाह औरंगजेब ने अन्धविश्वास की आड़ लेकर अपने सैनिकों का हौसला पस्त होने से बचा उस विद्रोह पर काबू पाया |सतनामी विद्रोह, सतनामी विद्रोह,
वाह ! अन्धविश्वास की काट अन्धविश्वास से !!
एतिहासिक जानकारी है।
औरंगजेब सतनामियों के विद्रोह से भीतर तक हिल गया था।
उसकी सेना भाग खड़ी हुई थी कि सतनामियों को जादु टोना करना आता है।
सेना ने लड़ने से इंकार कर दिया तब औरंगजेब ने यह युक्ति अपनाई।
यानि अन्धविश्वास भी कारगर होता है
प्रणाम
इतिहास की यह एक दुखद घटना है.
सतनामियों को नमन..
अन्धविश्वास भी कभी कभी कारगर हो जाता हे, धन्यवाद
aise anant vidroh bhare pade hai bharat me.
har ek kee apni kahani hai.
सतनामियों को नमन !
जय सतनाम जय सतनामी
सतनामी विद्रोह जैसा कोई विद्रोह नही है नारनोल के सतनामी केवल सत्य, अहिंसा के मानने वाले और स्वयं मेहनत मजदूरी कर जीवन यापन करते थे , उनके पास युद्ध करने के लिए किसी भी प्रकार का हथियार नही थे , फिर भी सतनामी अपने आन बान शान , और अपने हक के लिए सतनाम के प्रति आस्था रखते हुए युद्ध के मैदान में कूद पडे।।
पूर्वज सतनामी को सत सत नमन
सभी सतनामी नहीं मरे थे उस विद्रोह में। माना जाता है कि इस युद्ध के बाद जो सतनामी अपनी जान बचाने में कामयाब रहे वे जंगल की ओर चले आये और अपनी पहचान छुपा कर रहने लगे। छत्तीसगढ़ में परमपूज्य गुरु घासीदास जी के पूर्वज नारनोल से आये थे। उन्होंने सतनाम को यहाँ आंदोलन के रूप में प्रारम्भ किया था। गुरु घासीदास जी के अनुयायी आज भी पराक्रमी व सहशी हैं।
सभी सतनामी नहीं मरे थे उस विद्रोह में। माना जाता है कि इस युद्ध के बाद जो सतनामी अपनी जान बचाने में कामयाब रहे वे जंगल की ओर चले आये और अपनी पहचान छुपा कर रहने लगे। छत्तीसगढ़ में परमपूज्य गुरु घासीदास जी के पूर्वज नारनोल से आये थे। उन्होंने सतनाम को यहाँ आंदोलन के रूप में प्रारम्भ किया था। गुरु घासीदास जी के अनुयायी आज भी पराक्रमी व सहशी हैं। जय सतनाम ।।।
jai guru jai satnam
हमारे सतनामी पूर्वजो को सत सत नमन
जय सतनाम