38.3 C
Rajasthan
Sunday, June 4, 2023

Buy now

spot_img

सज -धज बैठी गोरड़ी

सज-धज बैठी गोरड़ी, कर सोल्हा सिणगार ।
त र सै घट रो मोर मन, सोच -सोच भरतार ।|

नैण कटारी हिरणी, बाजूबंद री लूम ।
पतली कमर में खणक रही, झालर झम-झम झूम ।|
माथे सोहे राखड़ी, दमके ज्यों रोहिड़ा रो फूल।
कानां बाटा झूल रह्या , सिर सोहे शीशफूल। ||

झीणी-झीणी ओढ़णी,पायल खणका दार ।
बलखाती चोटी कमर, गर्दन सुराहीदार ||
पण पिया बिना न हो सके पूरण यो सिणगार |
पधारोला कद मारुसा , था बिन अधूरी नार ।|

सखी- साथिन में ना आवडे., ना भावे कोई कोर ।
सासरिये में भी ना लगे, यो मन अलबेलो चोर ||
अपणो दुःख किण सूं कहूँ , कुण जाण म्हारी पीर ।
अरज सुण नै बेगा आवो, छोट की नणंद का बीर ||

मरवण था बिन सुख गयी, पिला पड़ ग्याँ गात ।
दिन तो फेर भी बितज्या, या साल्ल बेरण रात ।|

लेखक : गजेन्द्र सिंह ककराना

शब्दार्थ :-1साल्ल = दर्द देना,2. गात = गाल,3. आवडे = चित नहीं लगना,4. अर्ज- पुकार
5.गोरड़ी = गौरी

Related Articles

6 COMMENTS

  1. इंतजार और श्रंगार रस राजस्थानी में पढ़कर मजा आ गया

    आपके ब्लॉग पर आकर बहुत अच्छा लगा ..अगर आपको भी अच्छा लगे तो मेरे ब्लॉग से भी जुड़े।

    आभार!!

  2. राजस्थानी भाषा का अपना अलग ही मज़ा है…! समझने में ज़रा दिक़्क़त हुई… लेकिन आपने अर्थ लिखकर अछा किया !:)
    ~सादर !!!

  3. नारनौल (हरयाना )में नौसाला प्रवास ने राजस्थानी लोग गीतों से रु -ब-रु करवाया .आधा अधूरा यह भी समझ लिया आपका ढोला मारू -रा ….कुछ और लफ्जों के मायने देते ,व्याख्या भी तो क्या कहने हम तो गाने लगते इन जन गीतों को आपके …..

    सज-धज बैठी गोरड़ी, कर सोल्हा सिणगार ।
    त र सै घट रो मोर मन, सोच -सोच भरतार ।|

    नैण कटारी हिरणी, बाजूबंद री लूम ।
    पतली कमर में खणक रही, झालर झम-झम झूम ।|

    माथे सोहे राखड़ी, दमके ज्यों रोहिड़ा रो फूल।
    कानां बाटा झूल रह्या , सिर सोहे शीशफूल। ||

    झीणी-झीणी ओढ़णी,पायल खणका दार ।
    बलखाती चोटी कमर, गर्दन सुराहीदार ||

    पण पिया बिना न हो सके पूरण यो सिणगार |
    पधारोला कद मारुसा , था बिन अधूरी नार ।|

    सखी- साथिन में ना आवडे., ना भावे कोई कोर ।
    सासरिये में भी ना लगे, यो मन अलबेलो चोर ||

    अपणो दुःख किण सूं कहूँ , कुण जाण म्हारी पीर ।
    अरज सुण नै बेगा आवो, छोट की नणंद का बीर ||

    मरवण था बिन सुख गयी, पिला पड़ ग्याँ गात ।
    दिन तो फेर भी बितज्या, या साल्ल बेरण रात ।|

    लेखक : गजेन्द्र सिंह ककराना

    शब्दार्थ :-1साल्ल = दर्द देना,2. गात = गाल,3. आवडे = चित नहीं लगना,4. अर्ज- पुकार
    5.गोरड़ी = गौरी

    Read more: https://www.gyandarpan.com/2012/12/blog-post.html#ixzz2E0kfq0Kc

    Read more: https://www.gyandarpan.com/2012/12/blog-post.html#ixzz2E0kYlhhE

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Stay Connected

0FansLike
3,798FollowersFollow
20,800SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles