32 C
Rajasthan
Thursday, September 21, 2023

Buy now

spot_img

शेखावाटी में जनपद युग

अति प्राचीनकाल में भारत वर्ष अनेक जनपदों में विभाजित था। वैदिक युग में ‘जन’ की सत्ता प्रधान थी। एक ही पूर्वज की वंश परम्परा में उत्पन्न कुलों का समुदाय ‘जन’ कहलाता था। प्रारंभ में व घूमन्तू कबीले थे। उस युग में उनका भूमि से सम्बन्ध स्थापित नहीं हुआ था। शनैः – शनैः जन का घूमन्तू स्वरूप समाप्त हुआ और वे एक स्थान विशेष पर बसते चले गए। जन का वह पद या ठिकाना जनपद कहलाया 1। तब वे अपने जनपद की भूमि के साथ प्रगाढ़ अपनत्व की भावना से बंध गए। और उसे अपनी मातृ भूमि मानने लगे। ‘माता भूमिः पुत्रो अहम् पृथिव्याः’  के उदात्त भावों का तभी उनमें उदय हुआ था। बौद्धकाल में वे जनपद महाजनपद नाम से पुकारे जाते थे। तब उनकी संख्या सोलह थी 2। आचार्य पाणिनि की अष्टाध्यायी, बौद्ध जातकों और महाभारत में उन जनपदों के नामों और भौगोलिक सीमाओं के सम्बन्ध में यथेष्ठ जानकारी प्राप्त होती है। भारतीय इतिहास का 500 ईस्वी पूर्व तक का समय जनपद या महाजनपद युग कहलाता है। समस्त देश में एक छोर से दूसरे छोर तक जनपद फैले हुए थे। वे जन के राजनैतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक जीवन की इकाई थे। जिस जनपद के निवासी अधिक संगठित और सुसंस्कृत होते थे- वह श्रेष्ठ जनपद माना जाता था। वहां पर शांति सुव्यवस्था और नीति धर्म  का राज्य स्थापित था वहां पर अराजकता  नाम मात्र को भी नहीं पायी जाती थी 3। जनपदों की सीमाएं समय – समय पर अनेक कारणों से बदलती रहती थी। किन्तु उनके सांस्कृतिक जीवन का प्रवाह अटूट था 4।

उस काल का उत्तरी भारत प्राच्य और उदीच्य नाम से दो भागों में विभाजित था 5। शरावती नदी दोनों भागों की विभाजन रेखा मानी जाती थी। अमरकोष से भी इस तथ्य की पुष्टि होती है- ‘लोकोयं भारतं वर्ष शरावत्यास्तु योउवधेः। देशः प्राग्दक्षिणः प्राच्यः, उदीच्याः पश्चिमोत्तरः 6।।’ शरावती की पहिचान निश्चित नहीं है। पुरातत्वज्ञ उसे पंजाब की घग्घर और राजस्थान की हाकड़ा (सोत्तर) मानते हैं। पाणिनिकाल से गुप्त सम्राटों के शासनकाल तक शरावती नदी उपर्युक्त  दोनों भागों की सीमा रेखा मानी जाती रही है 7। शरावती नदी के उत्तर पश्चिम के अधिकांश जनपदों में गणतंत्री (संघ राज्य) शासन प्रणाली प्रचलित थी तो प्राच्य भाग वाले जनपदों में एक राज शासन प्रणाली प्रभावी थी। पाणिनि और महात्मा बुद्ध के समय मथुरा से असम तक फैले पांचाल, कौशल, काशी, मगध, कलिंग आदि जनपदों में राजा राज्य कर रहे थे। उदीच्य में काबुल से भी उत्तर-पश्चिम कम्बोज से शुरू होकर गांधार (अफगानिस्तान) और वाहीक (पंजाब) के निवासी अधिकांश कुलों में गणतंत्रीय शासन प्रणाली अस्तित्व में थी। तक्षशिला से काबुल तक का प्रदेश गांधार जनपद कहलाता था। सिन्धु नदी से पूर्व का पांच नदियों वाला भाग वाहीक कहलाता था, जिसे आज पंजाब के नाम से जानते हैं। महाभारत में भी पंजाब का प्राचीन नाम वाहीक ही माना गया है-  पंचानां सिन्धु षष्टानां, नदीनांयेंन्तराश्रिताः। वाहीकानाम् ते देशा, ……………………।। (कर्ण पर्व 44/7)

गांधार जनपद (अफगानिस्तान) में आश्वकायन, दरद, दार्व, आप्रीति, महमन्त, सूर, अस्मक आदि अनेक कुलों के संघराज्य थे, जिन्हें आचार्य पाणीनी और उसके पश्चात कालीन आचार्य कौटिल्य ने पर्वताश्रयी  आयुध जीवी संघों की संज्ञा दी थी। आचार्य कौटिल्य ने उन्हें उत्सेधजीवि ब्रात्य क्षत्रिय माना है, जो लूटपाट से जीवन निर्वाह करते थे एवं वैदिक विधि विधान से रहित थे 8। वाहीक (पंजाब) में केकय, मद्र, शिवि, उशीनर, त्रिगर्त, भोज, कुरु आदि अनेक जनपद विद्यमान थे। उनमें कतिपय एक राजशासन प्रणाली द्वारा शसित थे तो अन्य संघीय प्रणाली को अपनाए हुए थे।

 वाहीक के अन्तिम छोर पर स्थ्ति कुरु जनपद (दिल्ली मेरठ वाला भाग) के दक्षिण में मत्स्य जनपद था। मत्स्य जनपद की राजधानी तब विराटनगर थी जो वर्तमान में बैराठ के नाम से शखावाटी के पूर्वांचल में स्थित एक ऐतिहासिक कस्बा है। कुरु जनपद की पश्चिमी सीमा से संलग्न विशाल जांगल देश था जिसके अन्तर्गत हरियाणा के हांसी, सिरसा सहित वह सारा मरु प्रदेश आता था, जो भूतपूर्व बीकानेर राज्य और नागौर जिले के पूर्वाेतरी भाग को आत्मसात् किए हुए शेखावाटी के पूर्वोतरी अंचल तक फैला हुआ है। वैदिककाल से आचार्य पाणिनि के काल तक जनपदों की शासन सत्ता क्षत्रियों के हाथों में थी। चाहे वह एक राज प्रणाली वाला जनपद हो अथवा संघीय प्रणाली वाला – ‘जनपद स्वामिनः क्षत्रियाः’ (अष्टाध्यायी पर काशिका)। जनपद और उसके स्वामी जनपदिन क्षत्रियों का अभिन्न सम्बन्ध था 9।

उपर्युक्त  उल्लेखों से ज्ञात होता है कि कौरव पाण्डवों के समय यानी आज से लगभग पांच हजार वर्ष पूर्व एवं आचार्य पाणिनि के समय में भी शेखावाटी का पश्चिमोतरी भाग जांगल देश की परिधि में आता था। इसी प्रकार उसका पूर्वी एवं पूर्व- दक्षिणी भाग मत्स्य जनपद का एक भाग माना जाता था। साथ ही यह अनुमान लगाने के भी यथेष्ठ आधार विद्यमान हैं कि खण्डेलावाटी का क्षेत्र (खण्डेला से रैवासा तक) भी जांगल देश का ही एक भाग था, जहां पर साल्व क्षत्रियों की साल्वेय शाखा का शासन था । अतः उस भूभाग को साल्व जनपद के एक विभाग के रूप में मानना चाहिए।

इस प्रकार शेखावाटी नाम से प्रसिद्ध आज का यह विशाल प्रदेश जनपदीय युग में मत्स्य और साल्व नाम के दो जनपदों में विभाजित था। साल्व जनपद विशाल जांगल प्रदेश का ही एक भाग था। उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्री के आधार पर उपर्युक्त  दोनों जनपदों के सम्बन्ध में क्रमशः संक्षेप से प्रकाश डालने का यह एक प्रयास है। प्रथम मत्स्य जनपद और बाद में जांगल प्रदेश पर।

सन्दर्भ : 1. छापोली के श्री जीवराजसिंह – भूतपूर्व विधायक की सूचना के आधार पर- 2. चिराणा के श्री सवाईसिंह की जानकारी के अनुसार – 3. चैहान सम्राट पृथ्वीराज तृतीय और उसका समय पृ. 11 डाॅ. दशरथ शर्मा। 4. बबेरा इस प्रदेश का प्राचीन नगर था। यहीं से बबेरवाल ब्राह्मणों का निकास माना जाता है। सिंघाणा क ेपास उस नगर के ध्वंशावशेष विस्तृत क्षेत्र में बिखरे पड़े है। कहा जाता है कि भूकम्प जैसे किसी प्राकृतिक प्रकोप से वह नगर धराशायी हो गया था। उस उजड़े हुए कस्बे के पास ही सिंघाणा बसाया गया। प्रचलित लोकोक्ति के अनुसार ‘‘सिंघ मार बसा सिंघाणा, उजड़े शहर बबेर पर’’। श्री रावतजी सारस्वत का मत है कि संस्कृत भाषा में ताम्रकीट को सिंघाणा कहते हैं। यहां की ताम्र खानों से निकले हुए ताम्बे को गलाने से जो कीट (सिंघाणा) निकलता था-उसी के नाम पर सिंघाणा नाम प्रसिद्ध हुआ है। 5. क्यामखांरासा में निरबाणों पर की गई चढाइयों का वर्णन मिलता है| 6. शेखावाटी प्रकाश अ. 5 पृ. 12 7. वही पुस्तक अध्याय 9 पृ. 3 8. टाॅड का राजस्थान (हिन्दी अनुवाद) पृ. 672 अ. केशवकुमार ठाकुर 9. ठा. शार्दूलसिंह शेखावत पृ. 155 पर आइने अकबरी के उद्धारण।
उदयपुर सिंघाणा-दोनों को मिलाकर एक परगना बना दिया गया जो सरकार नारनोल सूबा आगरा के नीचे था। (आइने अकबरी भाग -2 पृ. 205 अंगे्रजी अनुवाद)

लेखक : सुरजनसिंह शेखावत, झाझड़ “शेखावाटी का प्राचीन इतिहास” पुस्तक में

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Stay Connected

0FansLike
3,869FollowersFollow
21,200SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles