स्वतंत्रता सेनानी डूंगजी जवाहर जी को अंग्रेजों के विरुद्ध अभियान चलाने के लिए धन की आवश्यकता थी, उन्होंने रामगढ के सेठों से सहायता मांगी पर उन्होंने यह सोचते हुए उन्हें मना कर दिया कि – ये बरोठिया (विद्रोही) दो दिन कूद फांद कर बैठ जायेंगे | कम्पनी की तोपों के आगे ये गिनती के लोग कितने दिन टिकेंगे, इनके पीछे चलकर यानि इनको समर्थन देकर अपना व्यवसाय ख़राब करना होगा | कम्पनी का सूरज उदय हो रहा है और उगते सुरज को सलाम ठोकने में ही फायदा है |
तब लोठू निठारवाल (जाट) की सलाह पर डूंगजी ने अपने साथियों सहित रामगढ के सेठों द्वारा अंग्रेजों को भेजे जा रहे माल की कतार को लूट लिया | अपने ऊंट, घोड़ों व जरुरत का माल रखा और बाकी लूटी रकम पुष्कर के घाट पर गरीबों को बाँट दी | सेठों ने कम्पनी सरकार से शिकायत की कि हम आपके हिमायती है इसलिए डूंगजी ने हमें लूट लिया और अंग्रेज डूंगजी के पीछे लग गये |
लेकिन जब बाजी पलटी, अंग्रेज जाने लगे तो वे सभी सेठ कांग्रेस के साथ मिलकर देशभक्त कहलाये और डूंगजी, जवाहरजी, लोठूजी निठारवाल, सांवताजी मीणा आदि देशभक्त टोली के उन स्वतंत्रता सेनानियों का नाम आज भी डाकू के रूप में इतिहास में दर्ज है | पर स्थानीय जनता के दिल व राजस्थानी साहित्य में आज भी आजादी के दीवानों के रूप में व दुनिया पर राज करने वाली अंग्रेज सरकार से टक्कर लेने वाले योद्धाओं व स्वतंत्रता सेनानियों के रूप में जिन्दा है | स्थानीय जनता व लोक कलाकारों की जुबान से आज भी इनके लोक गीत सुने जा सकते है |
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