लादड्या में रहणों है तो जै ठाकुर जी की कैणी पड्सी = दबंग की ही चलेगी|
संदर्भ कहानी:-
लादड्या नामक गांव में एक ताऊ रहता था उसके परिवार में उसके अलावा कोई नहीं था और न ही वह जीविका के लिए कभी कोई काम करता था| उसी गांव में एक अंधा फकीर भी रहता था| जो रोज सुबह झोली लेकर घर घर फैरी लगाकर मांगता,वह जिस घर में जाता वहां ऊँची आवाज में बोलता “जय ठाकुर जी की”| गांव में इस तरह फैरी लगाकर मांगने वाले को ज्यादातर लोग आटा देते है| सो अंधे फकीर की झोली भी आटे से रोज भर जाती थी|
अंधा फकीर ताऊ के झोपड़े पर जाकर भी “जय ठाकुर जी” बोलता, पर ताऊ उसकी झोली में आटा डालने के बहाने एक कटोरा भर कर आटा निकाल लेता| इस तरह ताऊ भी अपना खाने का जुगाड़ कर लेता पर कुछ दिन बाद अंधे फकीर को ताऊ की कारिस्तानी का पता चल गया और उसने ताऊ के झोपड़े पर जाकर “जय ठाकुर जी” कहना बंद कर दिया|
अंधे फकीर के न आने पर ताऊ को बड़ा गुस्सा आया और उसने गांव की चौपाल पर ही अंधे फकीर को जा पकड़ा और उसके यहाँ न आने का कारण पूछा| फकीर ने भी बहाना बनाया कि- उसे सभी घरों में जाने की जरुरत नहीं है कुछ घरों से मांगने पर ही उसका काम चल जाता है|
पर ताऊ ठहरा आखिर ताऊ! उसने अंधे फकीर को धमकाते हुए कहा- “लादड्या में रहणों है तो जै ठाकुर जी की कैणी पड्सी” अर्थात इस गांव में रहना है तो मेरे झोपड़े पर भी आकर “जय ठाकुर जी की” कहना पड़ेगा|
बेचारा अंधा फकीर क्या करता? उसने सोचा इस दबंग ताऊ से पंगा लेना बेकार है और वह हर रोज पहले की तरह ताऊ के झोपड़े पर झोली लेकर जाने लगा|
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