रामा-रामा कैसा ये गजब हो गया,
आजकल का रंग -ढंग कैसा अजब हो गया|
जो वस्त्र होता था नीचा वो ऊँचा ,
और जो होना था ऊँचा वो नीचा हो गया|
…
जब तक “जोकी” लिखा न दिखे ,इनको आता चैन नहीं
अगर करे कोई टोका-टोकी होता इनको सहन नहीं
कन्यायें भी त्याग रही पहनावे के सरे संस्कार
टॉप हो रहा ऊँचा -ऊँचा,भूल गयी सूट-सलवार|
अब हम भी क्या कहें,कई माँ-बाप ही देते हैं उनका साथ,
फैशन करने में वो भी आगे हैं उनसे दो हाथ|
माँ ये सोचे,समझें सब उसको बेटी की बहन,
बाप को भी बेटी की सहेली का अंकल कहना नहीं सहन|
हे मेरे मालिक तुमने “अमित” के साथ ये क्या गजब किया
क्या मैं इसके लायक था, जो मुझे ये सब देखने भेज दिया|
मेरे भाइयो और बहनों न भूलो अपना सनातन इतिहास
आधुनिक बनो पर ऐसे कि कोई उड़ा न सके आपका उपहास||
”जय श्री राम”
AMIT KUMAR SINGH
बहुत बढ़िया प्रस्तुति!
बहुत अच्छी रचना। बधाई।
समाज करवट ले रहा है… डर है कहीं नींद मे चारपाई से गिर न जाय
समय की बलिहारी..
बेहतरीन तुकबंदी ,लाजबाब,…..
NEW POST…40,वीं वैवाहिक वर्षगाँठ-पर…
पढने-सुनने और कहने में ये बातें बहुत ही अच्छी लगती हैं। उपदेश सदैव दूसरों के लिए होते हैं। हममें से प्रत्येक यदि अपना-अपना घर सम्हाल ले तो यह दशा हो ही नहीं। कोई भी बात कहने से पहले हम यदि खुद को उसमें शरीक कर लें तो कहने से पहले सौ बार सोचना पड जाता है। हम सब उपदेश दे रहे हैं और आचरण से परहेज कर रहे हें। ऐसे में अभी तो कुछ भी नहीं हुआ है। इसका चरम तो आना बाकी है। खुद को तैयार रखिए और प्रतीक्षा कीजिए। उपदेश देने के लिए और अधिक तथा बेहतर स्थितियॉं मिलेंगी।
बहुत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति…
बहुत बढ़िया।
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/02/777.html
चर्चा मंच-777-:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
वाह, गजब हुई गवा..
bilkul sahi baat likhi hai vastra vo pahno jisme uphaas na bane feshion ki andhi daud me apne sanskar ko na bhoolen.bahut achchi prernadaai kavita.
wah ji rama kaisa ye gajab ho gaya. kahne ke bhav bahut satik h sa. keep it up………. sultan singh jasrasar
बहुत सुंदर और सटीक रचना…
सुंदर प्रस्तुति
धन्यवाद
धन्यवाद सर्वजनो का