कवि कृपाराम जी द्वारा लिखित नीति सम्बन्धी राजिया के दोहे भाग- 7
चोर चुगल वाचाळ, ज्यांरी मांनीजे नही |
संपडावै घसकाळ , रीती नाड्यां राजिया ||
चोर चुगल और गप्पी व्यक्तियों की बातो पर कभी विश्वास नही करना चाहिए,क्योंकि ये लोग प्राय: तलाइयों मे ही नहला देते है अर्थात सिर्फ़ थोथी बातों से ही भ्रमा देते है |
जणही सूं जडियौह, मद गाढौ करि माढ्वा |
पारस खुल पडियौह, रोयां मिळै न राजिया ||
जिस मनुष्य के साथ घनिष्ठ प्रेम हो जाता है,तो निर्वाह मे सदैव सजग रहना चाहिय, अन्यथा जैसे बंधा हुआ पारस खुलने पडने पर रोने से फ़िर नही मिलता, वैसे ही खोई हुई अन्तरंग मैत्री पुन: प्राप्त नही होती |
खळ गुळ अण खूंताय, एक भाव कर आदरै |
ते नगरी हूंताय, रोही आछी राजिया ||
जहां खली और गुड दोनो का मूल्य एक ही हो अर्थात गुण-अवगुण के आधार पर निर्णय न होता हो,हे राजिया ! उस नगरी से तो निर्जन जंगल ही अच्छा है|
भिडियौ धर भाराथ,गढडी कर राखै गढां |
ज्यूं काळौ सिर जात ,रांक न छाई राजिया ||
जब धरती के लिये युद्ध होता है, तब शूरवीर अपनी छोटी सी गढी को भी एक बडे गढ के समान महत्व देकर उसकी रक्षा करता है, जैसे काले नाग के सिर पर जाने की कोई कोशिश करेगा तो वह कभी कमजोरी नही दिखायेगा बल्कि फ़न उठायेगा |
(अपने घर,ठिकाने व देश की रक्षा करना हर व्यक्ति का परम धर्म है) |
औगुणगारा और, दुखदाई सारी दुनी |
चोदू चाकर चोर , रांधै छाती राजिया ||
जो सेवक दब्बू और चोर हो और उसके अनुसार तो अन्य लोग भी बुरे है और सारी दुनियां दुख: देने वाली है | हे राजिया ! ऐसा सेवक तो सदैव अपने स्वामी का जी जलाता रहता है |
बांका पणौ बिसाळ, बस कीं सूं घण बेखनै |
बीज तणौ ससि बाळ, रसा प्रमाणौ राजिया ||
संसार मे बांकेपन की महानता मानी जाती है,क्योकि वह किसी के बस मे नही होता | जिस प्रकार द्वितीया के चंद्र्मा को देखकर सभी नमन करते है, यह उसके बांकेपन का ही प्रमाण है |
बंध बंध्या छुडवाय , कारज मनचिंत्या करै |
कहौ चीज है काय, रुपियो सरखी राजिया ||
जो काराग्रह के बंधन तक से मनुष्य को छुड्वा देता है और मनचाहे कार्य सम्पन्न करवा देता है, भला इस रुपये के समान अन्य कोनसी वस्तु हो सकती है |
राव रंक धन रोर , सूरवीर गुणवांन सठ |
जात तणौ नह जोर, रात तणौ गुण राजिया ||
राजा और रंक, धनी और गरीब, शूरवीर, गुणी एवं मूर्ख – इन बातो के लिये किसी जात का नही बल्कि उस रात का कारण होता है,जिस नक्षत्र या घडी मे उस व्यक्ति का जन्म होता है | अर्थात ये जन्मजात गुण किसी जाति की नही, अपितु प्रकृति की देन है |
वसुधा बळ ब्योपाय , जोयौ सह कर कर जुगत |
जात सभाव न जाय , रोक्यां धोक्यां राजिया ||
इस धरती पर बल-प्रयोग और अन्य सब युक्तियों के द्वारा परीक्षण करने पर भी यही निष्कर्ष निकला कि जाति विशेष का स्वभाव कभी मिटता नही, चाहे अवरोध किया जाये या अनुरोध किया जाये |
अरहट कूप तमांम, ऊमर लग न हुवै इती |
जळहर एको जाम, रेलै सब जग राजिया ||
कुएं का अरहट अपनी पुरी उम्र तक पानी निकाल कर भी उतनी भूमि को सिंचित नही कर सकता, जितनी बादल एक ही पहर मे जल-प्लावित कर देता है |
नां नारी नां नाह, अध बिचला दीसै अपत |
कारज सरै न काह, रांडोलां सूं राजिया ||
जो लोग न तो पुरुष दिखाई देते है और न ही नारी, बीच की श्रेणी के ऐसे अप्रतिष्ठित जनानिये लोगो से कोई भी काम पार नही पडता |
आहव नै आचार , वेळा मन आधौ बधै |
समझै कीरत सार , रंग छै ज्यांने राजिया ||
युद्ध और दानवीरता की वेला मे जिनका मन उत्साह से आगे बढता है और जो कीर्ति को ही जीवन सार समझते है, वे लोग वास्तव मे धन्य है और वन्दनीय है |
बहुत आभार रतन भाई.
आप इन दोहों को यहाँ पेश कर बहुत महत्वपूर्ण काम कर रहे हैं।
बहुत लाजवाब हैं जी. थोडे बहुत स्कूल मे पढे थे अब आप पढा रहे हैं. बहुत अच्छा काम कर रहे हैं.
रामराम.
bahut achche dohe…
बहुत अच्छे हैं दोहे.. पढ़ाने के लिए आभार…
बहुत ही सुन्दर और महत्वपूर्ण सोरठे उपलब्ध करा रहे हैं आप।
यहां प्रस्तुत पहले सोरठे की समार्नाथी एक कहावत मालवा में बडी लोकप्रिय है – ‘हथेली में हाथी डुबावे।’ अर्थात् चुल्लू भर पानी में हाथी के डूब जाने की कहानी कह देते हें।
बहुत अच्छा लगा सोरठे पढना, मैंने पहले बार पढ़े हैं.
बहुत अच्छा संकलन तैयार हो रहा है । इसे जारी रखें ।
बहुत ही सुंदर सुंदर बाते दोहओ के रुप मै पढने को मिली.
धन्यवाद
Bahut Khub..