कवि कृपाराम जी द्वारा लिखित नीति सम्बन्धी राजिया के दोहा भाग -6
नहचै रहौ निसंक,मत कीजै चळ विचळ मन |
ऐ विधना रा अंक,राई घटै न राजिया ||
निश्चय्पुर्वक नि:शंक रहो और मन को चल विचल मत करो,क्योकि विधाता ने भाग्य मे जो अंक लिख दिये है, हे राजिया ! वे राई भर भी नही घटेंगे |
सुधहिणा सिरदार,मतहीणा मांनै मिनख |
अस आंघौ असवार , रांम रुखाळौ राजिया ||
जो सरदार खुद तो सुध-बुध खोये रहता है और बुद्धिहिनो को अपना विश्वस्त बनाते है; अन्धे घोडे और अन्धे सवार की भांति ऐसे लोगो का भगवान ही रक्षक है|
भावै नहींज भात, विंजण लगै विडावणा |
रीरावे दिन रात, रोट्या बदळै राजिया ||
जिन लोगो को कभी भात अच्छा नही लगता और मीठे व्यंजन भी अरुचिकर लगते है, वे ही लोग समय के फ़ेर से रोटियों के लिये भी दिन-रात गिडगिडाने लगते है |
कूडा निजल कपूत, हियाफ़ूट ढांढा असल |
इसडा पूत अऊत, रांड जिणै क्यों राजिया ||
जो झूंठे होते है,निर्लज है, जिनकी ह्र्दय की आंखे फ़ूटी हुई है जो वस्तुत: पशु तुल्य है ऐसे कुपुत्र को स्त्री जन्म ही क्यों देती है |
चालै जठै चलंन, अण चलियां आवै नही |
दुनियां मे दरसंत, रीस सूं लोचन राजिया ||
जहां क्रोध चलता है,वहीं पर क्रोध आता है | जहां क्रोध का वश न चले, वहां आता ही नही | हे राजिया ! ऐसा लगता है मानो क्रोध के सूनेत्र है, जो वस्तु-स्थिति को सहज ही भांप लेते है |
सबळा संपट पाट, करता नह राखै कसर |
निबळां एक निराट , राज तणौ बळ राजिया ||
बलवान व्यक्ति लोगो मे उत्पात एवं उखाड-पछाड करने मे कोई कसर नहीं रखते,अतः निर्बलों के लिए तो एक मात्र राज्य सरकार का बल ( सरंक्षण ) ही होता है |
प्रभुता मेरु प्रमांण, आप रहै रजकण इसा |
जिके पुरुष धन जांण , रविमंडळ राजिया ||
जिनकी प्रभुता तो पर्वत-समान महान है,किन्तु जो स्वयं को रज-कण के समान तुच्छ समझते है, वे ही पुरुष संसार मे धन्य है |
लावां तीतर लार, हर कोई हाका करै |
सीहां तणी सिकार, रमणी मुसकल राजिया ||
लावा और तीतर जैसे पक्षियों के पीछे तो हर कोई व्यक्ति हो-हल्ला करता हुआ धावा बोल देता है, किन्तु हे राजिया सिहों का शिकार खेलना बहुत मुश्किल है | ( शक्तिशाली से टक्कर लेना बहुत मुश्किल होता है )
मतळब बिना री मनवार , नैंत जिमावै चूरमा |
बिन मतळ्ब मनवार , राब न पावै राजिया ||
अपना मतलब सिद्ध करने के लिये तो लोग न्योता देकर मनुहार के साथ चूरमा (मधुर व्यंजन) खिलाते है, किन्तु बिना मतलब के कोई राबडी भी नहीं पिलाता |
मूसा नै मंजार, हित कर बैठा हेकठा |
सह जाणै संसार ,रस न रह्सी राजिया ||
चुहा और बिल्ली प्रेम का दिखावा कर भले ही एक जगह बैठे हो, किन्तु सारी दुनिया जानती है कि इनका यह प्रेम स्थाई नही रह सकता | (ठीक हमारे यहां के राजनैतिक दलों के गठबंधन की तरह )
मन सूं झगडै मौर, पैला सूं झगडै पछै |
त्यांरा घटै न तौर , राज कचेडी राजिया ||
जो लोग तर्क-वितर्क द्वारा पहले अपने मन से झगड लेते है और बाद मे दुसरो से झगडा करते है, हे राजिया उनका रुतबा राज्य की कचहरी मे भी कम नही होता |
सांम धरम धर साच , चाकर जेही चालसी |
ऊनीं ज्यांनै आंच, रती न आवै राजिया ||
जो सेवक स्वामिभक्ति एवं सत्य को धारण किये रहेंगे , हे राजिया ! उनके ऊपर रत्ती भर भी कभी विपत्ति की आंच नही आयेगी |
सभी सोरठों में गंभीर सीख है। फिर भी जो सब से अच्छा लगा…
चालै जठै चलंन, अण चलियां आवै नही |
दुनियां मे दरसंत, रीस सूं लोचन राजिया ||
सचाई कह दी गई है।
सांम धरम धर साच , चाकर जेही चालसी |
ऊनीं ज्यांनै आंच, रती न आवै राजिया ||
sacchhi baat hai.
बहुत उत्तम.. अब तो ्काफी ्दोहे इंटरनेट पर आ गये.. आपकी मेहनत से..”राजिया रा दोहा” search करते ही gyandarpan आने लगा गुगल पर बधाई..
बहुत अच्छा संग्रह बन पडा है । आपकी इस मेहनत से राजस्थान को ही नही वरन विश्व को भी फ़ायदा पहूंचेगा । धन्यवाद ।
बहुत ही सुंदर लगे आप के यह सोरठों, ओर उस से सुंदर लगे इन के अर्थ, बहुत बहुत धन्यवाद
पुराने लोगों ने ‘सुराज’ की कल्पना कितनी सटीक की थी, यह आपके द्वारा प्रस्तुत इस सोरठे से सहज ही अनुभव होती है-
सबळा संपट पाट, करता नह राखै कसर |
निबळां एक निराट , राज तणौ बळ राजिया ||
आज तो ‘राज’ भी ‘सबळा’ का साथ देने लगा है ‘निबळों’ का रखवाला राम ही रह गया है।