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Wednesday, September 27, 2023

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राजिया रा सौरठा -2

अपने सेवक राजिया को संबोधित करते कवि कृपाराम जी द्वारा लिखित नीति सम्बन्धी दोहे |

खळ धूंकळ कर खाय, हाथळ बळ मोताहळां |
जो नाहर मर जाय , रज त्रण भकै न राजिया ||

सिंह युद्ध में अपने पंजों से शत्रु हाथियों के मुक्ताफल-युक्त मस्तक विदीर्ण कर ही उन्हें खाता है | वह चाहे भूख से मर जाय,किंतु घास कभी नही खायेगा |

नभचर विहंग निरास, विन हिम्मत लाखां वहै |
बाज त्रपत कर वास , रजपूती सूं राजिया ||

आकाश में लाखों पक्षी हिम्मत के बिना (भूख के मारे) उड़ते रहते है,किंतु हे राजिया ! बाज अपने पराक्रम से ही पक्षियों का शिकार कर तृप्त जीवन जीता है |

घेर सबल गजराज , कहर पळ गजकां करै |
कोसठ करकम काज, रिगता ही रै राजिया ||

सिंह बलवान हाथी को घेर कर और मार कर उसके मांस का आहार करता है किंतु हे राजिया ! उसी वक्त गीदड़ हड्डियों के ढांचे के लिए ही ललचाते रहते है |

आछा जुध अणपार, धार खगां सनमुख धसै |
भोगे हुवे भरतार ,रसा जिके नर राजिया ||

जो लोग अनेक बड़े युद्धों में तलवारों की धारों के सन्मुख निर्भीक होकर बढ़ते है,वे ही वीर भरतार बनकर इस भूमि को भोगते है |

दांम न होय उदास, मतलब गुण गाहक मिनख |
ओखद रो कड़वास, रोगी गिणै न राजिया ||

गुणग्राहक मनुष्य अपनी लक्ष्य-सिद्धि के लिए किसी भी कठिनाई से निराश नही होता , ठीक उसी तरह, जिस तरह हे राजिया ! रोगी व्यक्ति औषध के कड़वेपन की परवाह नही करता |

गह भरियो गजराज, मह पर वह आपह मतै |
कुकरिया बेकाज, रुगड़ भुसै किम राजिया ||

मस्त गजराज तो अपनी मर्जी से प्रथ्वी पर हर जगह विचरण करता है किंतु हे राजिया ! ये मुर्ख कुत्ते व्यर्थ ही उसे देखकर क्यों भोंकते है |

असली री औलाद, खून करयां न करै खता |
वाहै वद वद वाद, रोढ़ दुलातां राजिया ||

शुद्ध कुल में जन्म लेना वाला तो अपराध करने पर भी झगडा नही करता,जबकि अकुलीन व्यक्ति अकारण ही झगडे करता रहता है ठीक उसी तरह जिस तरह हे राजिया ! खच्चर व्यर्थ ही बढ-बढ कर दुलत्तियाँ झाड़ता रहता है |

ईणही सूं अवदात, कहणी सोच विचार कर |
बे मौसर री बात, रूडी लगै न राजिया ||

सोच-समझकर कही जाने वाली बात ही हितकरणी होती है, हे राजिया ! बिना मौके कही गई बात किसी को अच्छी नही लगती है |

बिन मतलब बिन भेद, केई पटक्या रांम का |
खोटी कहै निखेद, रांमत करता राजिया ||

कई राम के मारे दुष्ट लोग ऐसे होते है, जो बिना मतलब और बिना विचार किए हँसी-ठिठोली में ही किसी अप्रिय एवं अनुचित बाते कह देते है |

पल-पल में कर प्यार,पल-पल में पलटे परा |
ऐ मतलब रा यार, रहै न छाना राजिया ||

जो लोग पल-पल में प्यार का प्रदर्शन करते है और पल-पल में बदल भी जाते है, हे राजिया ! ऐसे मतलबी यार दोस्त छिपे नही रह सकते वे तुंरत ही पहचाने जाते है |

सार तथा अण सार, थेटू गळ बंधियों थकौ |
बड़ा सरम चौ भार, राळयं सरै न राजिया ||

परम्परा के रूप में जो भी सारयुक्त अथवा सारहीन तत्व हमारे गले बंध गया है, पूर्वजों की लाज-मर्यादा के उस भार को फेंकने से काम नही चलता उसे तो निभाना ही पड़ता है |

पहली कियां उपाव, दव दुस्मण आमय दटे |
प्रचंड हुआ विस वाव , रोभा घालै राजिया ||

अग्नि,दुश्मन और रोग तो आरंभ में ही दबाने से दब जाते है ,लेकिन हे राजिया ! विष (शत्रुता एवं रोग) और वायु प्रचंड हो जाने पर सदा कष्ट देते है |

एक जतन सत एह , कुकर कुगंध कुमांणसां |
छेड़ न लीजे छेह, रैवण दीजे राजिया ||

कुत्ता,दुर्गन्ध और दुष्टजन से बचने का एक मात्र उपाय यही है कि उन्हें छेड़ा न जाय और ज्यों का त्यों पड़ा रहने दिया जाय |

नरां नखत परवाण, ज्याँ उंभा संके जगत |
भोजन तपै न भांण, रावण मरता राजिया ||

मनुष्य की महिमा उसके नक्षत्र से होती है, इसलिय उसके जीते जी संसार उससे भय खाता है | रावण जैसे प्रतापी की मृत्यु होते ही सूर्य ने उसके रसोई घर में तपना (भोजन बनाना) बंद कर दिया था |

हीमत कीमत होय, विन हीमत कीमत नही |
करै न आदर कोय, रद कागद ज्यूँ राजिया ||

हिम्मत से ही मनुष्य का मूल्यांकन होता है,अतः पुरुषार्थहीन व्यक्ति का कोई महत्व नही होता | हे राजिया ! साहस रहित व्यक्ति रद्दी कागज की भांति होता है जिसका कोई भी आदर नही करता |
डा. शक्तिदान कविया द्वारा लिखित पुस्तक “राजिया रा सौरठा” से साभार |
Cont…..

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7 COMMENTS

  1. पल-पल में कर प्यार,पल-पल में पलटे परा |
    ऐ मतलब रा यार, रहै न छाना राजिया ||..

    कम शब्दों में गुढ़ बार कह जाते है.. जैसे कबीर, रहीम..

  2. िनश्‍ख्‍य ही आप उत्‍कृष्‍ट और प्रशंसनीय काम कर रहे हैं। मुझे तो लग रहा है कि आपने खजाने का मुह खोल दिया है। मेरे लिए आज की प्राप्ति यह सारेठा है -‍

    हीमत कीमत होय, विन हीमत कीमत नही |
    करै न आदर कोय, रद कागद ज्यूँ राजिया ||

    बहत-बहुत धन्‍यवाद।

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