आमेर के राजा भारमल द्वारा अकबर के साथ संधि करने के समय उनके पौत्र कुंवर मानसिंह की आयु महज 12 वर्ष थी| इसी आयु में मानसिंह का अकबर की सेना में प्रवेश हो गया था| देखा जाय तो मानसिंह अकबर के दरबार व सैन्य माहौल में ही बड़े हुए| बावजूद उन्हें अपने स्वधर्म में पूर्ण आस्था रही और वे अपने स्वधर्म पालन में पूर्णत: कट्टर रहे| उन्होंने अकबर की सेना में रहते हुए भी स्वधर्म से डिगना तो दूर उल्टा अपने धर्म के प्रसार के लिए बहुत कुछ किया| ऐसे में सवाल उठता है कि वे एक ऐसे दूसरे धर्म वाले बादशाह के साथ कैसे रह पाए जिसके धर्म वाले धार्मिक रूप से अहिष्णु थे|
सबसे पहले आपको बता दें, अकबर के साथ संधि राजा मानसिंह ने नहीं की थी| वह संधि उनके दादा राजा भारमल ने की थी, मानसिंह तो स्वयं उस संधि की छाया में ही बड़े हुए थे| ज्यादातर इतिहासकार मानते है कि राजा मानसिंह अकबर के प्रति पूर्ण वफादार थे और अकबर भी मानसिंह पर पूर्ण विश्वास करता था| लेकिन सच्चाई इसके विपरीत थी| इतिहासकारों की इस धारणा को देवीसिंह महार पूरी तह से भ्रामक मानते हुए राजीव नयन प्रसाद द्वारा लिखित “राजा मानसिंह आमेर” नामक पुस्तक की भूमिका में लिखते है- “वास्तविकता यह थी कि अकबर व मानसिंह दोनों ही अपनी अपनी मजबूरियों के कारण एक दूसरे के साथ रहने व एक दूसरे के प्रति पूर्ण विश्वास प्रकट करने के लिए बाध्य थे|”
देवीसिंह महार आगे लिखते हैं- “अकबर ठीक प्रकार से जानता था कि बिना राजपूतों व मानसिंह जैसे सुयोग्य सेनापति के सहयोग के वह पठानों का दमन कर अपने शासन को सुरक्षित करने में समर्थ नहीं है| दूसरी तरफ मानसिंह भी इस बात को ठीक प्रकार से जानता था कि अगर पठान व मुग़ल, परिस्थितों के दबाव में एक हो जाते हैं तो सम्पूर्ण राजपूत शक्ति एकजुट होकर भी उनके परास्त करने में समर्थ नहीं थी| ऐसी स्थिति में उनको मिलने देने का परिणाम होता सम्पूर्ण भारत का इस्लामीकरण| इसलिए विभिन्न अवसरों पर खट्टे-मीठे घूंट पीकर भी मानसिंह अकबर व जहाँगीर के साथ बना रहा|”
तो ये थी दोनों की एक दूसरे पर विश्वास प्रकट करने व साथ रहने की मज़बूरी| अकबर मानसिंह को मुग़ल सल्तनत के लिए सबसे बड़ा खतरा भी समझता था और शहजादे सलीम के साथ राजा की अनबन के चलते, उन्हें रास्ते से हटाने के लिए मिठाई में जहर मिलाकर खिलाने का प्रयास किया पर गलती से उस जहरीली मिठाई को अकबर खुद खा गया और परिणामस्वरूप रुग्ण होकर मृत्यु को प्राप्त हो गया| आपको बता दें राजा मानसिंह ही पहले व्यक्ति थे जिन्होंने अफगानिस्तान स्थिति पांच मुस्लिम राज्यों को तहस-नहस कर पठान शक्ति को कमजोर किया और खैबर के दर्रे से आने वाले मुस्लिम आक्रमणकारियों का रास्ता सदा के लिए रोक दिया| अफगानिस्तान के ये पांच राज्य हथियार बनाते थे और भारत पर आक्रमण करने वालों को इस शर्त पर मुहैया कराते थे कि भारत से लुटी गई संपदा में उन्हें वापसी पर वे हिस्सा देंगे| लेकिन मानसिंह ने हथियारों के उन कारखानों को ठस-नहस कर दिया और वहां से कारीगर लाकर आमेर में तोपें बनाने का कारखाना स्थापित किया साथ अन्य राजाओं को तोप बनाने की तकनीक उपलब्ध कराई|
लेकिन अफ़सोस जिस व्यक्ति की रणनीति से भारत इस्लामीकरण से बचा, यहाँ का हिन्दू धर्म सुरक्षित रहा, जिस धर्म के प्रचार प्रसार के लिए मानसिंह ने देशभर में मंदिर बनवाये, उनकी देखभाल व व्यवस्था के लिए भूमि दान की, पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया, उसी धर्म के साम्प्रदायिक कट्टर लोग अपनी साम्प्रदायिक सोच के चलते आज राजा मानसिंह को अकबर का साथ देने को लेकर निशाना बनाते है| अकबर की आमेर के साथ संधि शुद्ध रूप से राजनैतिक थी साम्प्रदायिक नहीं, पर आज उस संधि के इतिहास की व्याख्या साम्प्रदायिक विचारधारा के वशीभूत किया जा रहा है| यह उस व्यक्ति के प्रति कृतध्नता है जिसने सनातन यानी हिन्दू धर्म को भारत से लुप्त होने से बचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई|