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राजस्थान भाजपा से क्यों छिटक रहे है राजपूत युवा ?

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राजस्थान में विधानसभा चुनाव प्रचार शुरू हो चुका है, जिन्हें टिकट मिल गई वे अपने प्रचार में लगे तो जिन्हें नहीं मिली वे टिकट के जुगाड़ में लगे है|

राजनैतिक दलों द्वारा जातीय मतों की संख्या को आधार बनाकर टिकट देने के चलते विभिन्न जातीय सामाजिक संगठन अपने अपने चहेतों को टिकट दिलाने के लिए दलों पर दबाव बना रहे तो वहीँ राजनैतिक दल व उनके प्रत्याशी भी इन जातीय संगठनों द्वारा अपने अपने पक्ष में प्रचार करवा उनके द्वारा मतदाता की जातीय भावना का दोहन करते हुए उनके मत हासिल करने में जुटे है|

ऐसे में कई संगठन या उनके कर्ताधर्ता चुनावी फायदा उठाने को सक्रीय है, ऐसे लोगों ने आचार संहिता व चुनाव आयोग के डर के मारे एक नया तरीका “राजनैतिक जागरूकता सम्मलेन” के रूप में खोज निकाला है| हर जाति के लोग अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए बिना उसका नाम लिये ऐसे आयोजन करते है, और इशारों इशारों में सबको संदेश दे देते है कि आखिर वोट किसको देना है, वे किसके लिए यहाँ आये है|

पर कई बार इस तरह के संगठनों के कृत्य उन पार्टियों के लिए उल्टे साबित हो जाते है जो पार्टियाँ उन संगठनों को अपने पक्ष में मैनेज करती है| क्योंकि संचार माध्यमों व सोशियल मीडिया के आने के बाद ऐसे तत्वों की पोल बड़ी आसानी से खुलने लगी है लोग समझने लगे है कि- कौन सामाजिक संगठन हितैषी है और कौन समाज सेवा के नाम पर अपनी दूकान चला उनकी जातीय भावना का दोहन कर समाज का ठेकेदार बना घूम रहा है| ऐसे तत्वों के कुकृत्यों को बेनकाब करने में युवा वर्ग सोशियल मीडिया का भरपूर फायदा उठाते हुए इन तत्वों के बारे में सूचनाएं सांझा करते देखा जा सकता है|

राजस्थान के राजपूत समाज के भी एक अग्रणी सामाजिक संगठन के शीर्ष लोगों ने प्रताप फाउंडेशन के नाम से ऐसी ही जातीय भावनाओं का भाजपा के पक्ष में दोहन कर एक दुकान सजा रखी है| इसके संगठन के लोग भाजपा नेता वसुंधरा राजे की नजर में अपने आपको राजपूत समाज का सर्वमान्य संगठन साबित कर भरोसा दिला चुके है कि- राज्य का राजपूत मतदाता अपना मत उनके कहने पर ही देता है| इस कार्य में इस संगठन की भाजपा में स्थापित कुछ राजनेता सहायता में जुटे है, ये तथाकथित नेता इस संगठन के जरिये भाजपा में किसी राजपूत युवा को आगे नहीं बढ़ने देते ताकि पार्टी में जातीय आधार पर मिलने वाले कोटे पर वे अपना वर्चस्व कायम रख सके| इस संगठन के लोग राज्य की सभी 200 सीटों पर राजपूत समाज में “राजनैतिक जागरूकता” फ़ैलाने के नाम बैठकें ले रहे है शुरू में ये सीधा भाजपा की पैरवी करते थे, पर सोशियल मीडिया में अपने खिलाफ युवाओं का रोष देखकर आजकल ये शातिर लोग अपनी बैठकों में भाजपा का सीधा नाम लेने से बचने लगे है, और बातों ही बातों में साफ कर देते है कि- भाजपा को वोट देना ही समाज हित में है|

भाजपा से सांठ-गांठ किये या तनखैया बने ये तत्व एक तरफ इस चुनाव में समाज हित की बात करते है, अपने जातीय उम्मदीवारों की संख्या बढाने की बात करते है, अपने आपको राजनैतिक निष्पक्ष दर्शाने के लिए समाज के दो तीन कांग्रेसी नेताओं के समर्थन भी बात भी करते है पर युवाओं की नजर में इनकी पोल तब खुली जब राजपूत समाज के वे युवा जो पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ निर्दलीय या बसपा जैसे छोटे दलों से चुनाव लड़ रहे थे और वे सीधी टक्कर में भी थे, के खिलाफ इन तत्वों ने भाजपा को फायदा पहुंचाया व इन स्वजातीय उम्मीदवारों को हराने के लिए हथकंडे अपनाये|

पिछले चुनावों में इन तत्वों की हरकतें व कृत्य से राजपूत समाज का जागरूक युवा इनकी दुकानदारी की सभी चालें समझ गए और इस चुनाव में वे सोशियल मीडिया के माध्यम में इनके खिलाफ जागरूकता अभियान चलाने में जुट गये| सोशियल साईट फेसबुक पर देखा है, कई युवा छद्म नाम धारण कर इनके खिलाफ भड़ास निकाल रहे है तो कोई निर्भीकता से खुले रूप में इनका खुल कर विरोध कर रहे है|

भाजपा सोच रही है ये संगठन उसके वोट बढ़ा रहा है पर उसे पता ही नहीं कि इन तत्वों की हकीकत समाज का युवा वर्ग समझ चुका है और भाजपा के पारम्परिक वोट बैंक रहे उस युवा को अब लगने लगा है कि – उपरोक्त कथित समाज के ठेकेदारों ने तो उसके वोट का भाजपा से पहले ही सौदा कर रखा है ऐसी हालत में उसका भाजपा से मोह भंग होता जा रहा है| यही कारण है कि फेसबुक पर राजपूत युवाओं में मध्य हो रही चुनावी बहसों में पढने को मिलता है कि- “मोदी को जितायेंगे, वसुंधरा को हरायेंगे|”

सोशियल साइट्स पर समाज के इन ठेकेदारों के खिलाफ युवाओं के रोष को सीधा सीधा भाजपा को नुकसान के रूप में भुगतना पड़ेगा और मजे की बात कि- यह पुरा नुकसान भाजपा के खुद के खर्चे पर हो रहा है क्योंकि 200 विधानसभा क्षेत्रों में ये संगठन जो बैठकें कर रहा है उसकी फंडिंग तो भाजपा को करनी ही पड़ रही होगी, साथ ही समाज के ये ठेकेदार भी मुफ्त में तो भाजपा के लिए काम करने से रहेंगे, क्योंकि वे भी यह दुकान कुछ पाने को ही चला रहे है|

काश भाजपा के जिम्मेदार नेता इन सामाजिक ठेकेदारों की वजह से होने वाले दुष्परिणामों के बारे में समझे और ऐसे तत्वों से दूर रहे| ये स्वस्थ लोकतंत्र के लिए भी आवश्यक है और भाजपा के हित में भी!!

6 COMMENTS

  1. कुछ जातीय संगठन उन पार्टियों के लिए फ्रेंचाईजी या एजेंसी की तरह होते हैं जो पार्टियों के लिए समाज से गद्दारी करके ग्राहक (वोटर) का जुगाड़ करते हैं।

  2. आपने सच कहा बीजेपी भी अब बीजेपी रही कहाँ है ये भी तो जाटों की हो गई है चाहे आप रामसिंह कस्वां को ले लें या फिर बिजय पूनिया को प्रमोशन में आरक्षण का समर्थन करते हुए बीजेपी ने तनिक भी नहीं सोचा कि उसको दलित नहीं सवर्ण वोट देते हैं
    http://sharwan-sidh.blogspot.in/

  3. अभी पिछले दस दिन राजस्थान में ही था सभी पार्टियां वहां जातिगत समीकरण में ही नजर आ राही हैं, सशक्त आलेख.

    रामराम.

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