रणथंभोर दुर्ग दिल्ली मुंबई रेल मार्ग के सवाई माधोपुर रेल्वे स्टेशन से १३ कि.मी. दूर रन और थंभ नाम की पहाडियों के बीच समुद्रतल से 481 मीटर ऊंचाई पर 12 कि.मी. की परिधि में बना है | रणथंभोर दुर्ग के तीनों और पहाडों में कुदरती खाई बनी है जो इस किले की सुरक्षा को मजबूत कर अजेय बनाती है | किले तक पहुँचने के लिए कई उतार-चढाव ,संकरे व फिसलन वाले रास्ते तय करने के साथ नौलखा, हाथीपोल, गणेशपोल और त्रिपोलिया द्वार पार करना पड़ता है इस किले में हम्मीर महल, सुपारी महल, हम्मीर कचहरी, बादल महल, जबरा-भंवरा, ३२ खम्बों की छतरी, महादेव की छतरी, गणेश मंदिर,चामुंडा मंदिर,ब्रह्मा मंदिर, शिव मंदिर, जैन मंदिर, पीर की दरगाह, सामंतो की हवेलियाँ तत्कालीन स्थापत्य कला के अनूठे प्रतीक है | राणा सांगा की रानी कर्मवती द्वारा शुरू की गई अधूरी छतरी भी दर्शनीय है | दुर्ग का मुख्य आकर्षण हम्मीर महल है जो देश के सबसे प्राचीन राजप्रसादों में से एक है स्थापत्य के नाम पर यह दुर्ग भी भग्न-समृधि की भग्न-स्थली है |
इस किले का निर्माण कब हुआ कहा नहीं जा सकता लेकिन ज्यादातर इतिहासकार इस दुर्ग का निर्माण चौहान राजा रणथंबन देव द्वारा ९४४ में निर्मित मानते है, इस किले का अधिकांश निर्माण कार्य चौहान राजाओं के शासन काल में ही हुआ है | दिल्ली के सम्राट पृथ्वीराज चौहान के समय भी यह किला मौजूद था और चौहानों के ही नियंत्रण में था |
1192 में तहराइन के युद्ध में मुहम्मद गौरी से हारने के बाद दिल्ली की सत्ता पर पृथ्वीराज चौहान का अंत हो गया और उनके पुत्र गोविन्द राज ने रणथंभोर दुर्ग को अपनी राजधानी बनाया | गोविन्द राज के अलावा वाल्हण देव, प्रहलादन, वीरनारायण, वाग्भट्ट, नाहर देव, जैमेत्र सिंह, हम्मीरदेव, महाराणा कुम्भा, राणा सांगा, शेरशाह सुरी, अल्लाऊदीन खिलजी, राव सुरजन हाड़ा और मुगलों के अलावा आमेर के राजाओं आदि का समय-समय पर नियंत्रण रहा लेकिन रणथंभोर दुर्ग की सबसे ज्यादा ख्याति हम्मीर देव(1282-1301) के शासन काल मे रही | हम्मीर देव का 19 वर्षो का शासन रणथंभोर दुर्ग का स्वर्णिम युग था | हम्मीरदेव ने 17 युद्ध किए जिनमे13 युद्धो मे उसे विजय श्री मिली | करीब एक शताब्दी तक ये दुर्ग चितौड़ के महराणाओ के अधिकार मे भी रहा | खानवा युद्ध मे घायल राणा सांगा को इलाज के लिए इसी दुर्ग मे लाया गया था |
रणथंभोर दुर्ग पर आक्रमणों की भी लम्बी दास्तान रही है जिसकी शुरुआत दिल्ली के कुतुबुद्दीन ऐबक से हुई और मुगल बादशाह अकबर तक चलती रही | मुहम्मद गौरी व चौहानो के मध्य इस दुर्ग की प्रभुसत्ता के लिये 1209 मे युद्ध हुआ | इसके बाद 1226 मे इल्तुतमीश ने, 1236 मे रजिया सुल्तान ने,1248-58 मे बलबन ने, 1290-1292 मे जलालुद्दीन खिल्जी ने, 1301 मे अलाऊद्दीन खिलजी ने, 1325 मे फ़िरोजशाह तुगलक ने, 1489 मे मालवा के मुहम्म्द खिलजी ने, 1429 मे महाराणा कुम्भा ने, 1530 मे गुजरात के बहादुर शाह ने, 1543 मे शेरशाह सुरी ने आक्रमण किये | 1569 मे रणथंभोर दुर्ग पर दिल्ली के बादशाह अकबर ने आक्रमण कर आमेर के राजाओ के माध्यम से तत्कालीन शासक राव सुरजन हाड़ा से सन्धि कर ली |
कई ऐतिहासिक घटनाओं व हम्मीरदेव चौहान के हठ और शौर्य के प्रतीक रणथंभोर दुर्ग का जीर्णोद्दार जयपुर के राजा प्रथ्वी सिंह और सवाई जगत सिंह ने कराया और महाराजा मान सिंह ने इस दुर्ग को शिकारगाह के रुप मे परिवर्तित कराया | आजादी के बाद यह दुर्ग सरकार के अधीन हो गया जो 1964 के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण मे है|
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