जोधपुर जिले की भोपालगढ़ तहसील में पड़ता है रजलानी गांव और इसी गांव में बनी है एक ऐतिहासिक बावड़ी | इस बावड़ी का निर्माण जोधपुर के राजा मालदेव के सेनापति राव जैत्रसिंह ने करवाया था | राव जेत्र्सिंह को इतिहास में राव जेता के नाम से जाता है | इतिहासकार बताते हैं कि सुमेलगिरी युद्ध से पूर्व यहाँ जोधपुर की सेना ने पड़ाव डाला था | ग्रामीणों के अनुसार बाद में गांव के धनी वैश्यों के आग्रह पर क्षेत्र की सुरक्षा के लिए यहाँ सैनिक पड़ाव स्थाई किया गया |
राव जैत्रसिंह बगड़ी के जागीरदार थे और सैन्य पड़ाव व स्थानीय निवासियों की जल आपूर्ति के लिए उन्होंने इस बावड़ी का निर्माण कराया था | इस वापी यानी बावड़ी में क्रमशः तीन प्रतोलियां बनी हुई हैं। प्रतिपोलियाँ यानी ठहराव के मार्ग | प्रत्येक प्रतिपोली अलंकृत स्तम्भों से युक्त हैं। स्तम्भों के अलंकरण का कार्य अत्यन्त सुंदर है और इसका मूर्ति शिल्प इसके सौन्दर्य में चार चाँद लगाता है।
इस बावड़ी का निर्माण वि.सं. 1597, याने ई.सं. 1540 में बगड़ी के ठाकुर राव जैत्रसिंह द्वारा रजलानी गांव में किया गया था, उस वक्त रजलानी गांव हीरावाड़ी गांव के नाम से जाना जाता था | अत: इतिहास में यह हीरावाड़ी गाँव की वावली के नाम से दर्ज है | स्थानीय निवासियों के अनुसार क्षेत्र के लोग हीरावाड़ी गाँव की रज को पवित्र मानते थे अत: जब भी किसी दूसरे गांव का व्यक्ति हीरावाड़ी गाँव जाता तो उसके गांव वाले उसे हीरावाड़ी की रज लाने की कहता है, इसी वजह से आगे चलकर हीरावाड़ी गांव का नाम रजलानी पड़ गया|
बावड़ी पर एक शिलालेख भी लगा है, जिस अत्यधिक तेल चढाने के वजह से उसे पढ़ पाना कठिन हो गया है पर “राजस्थान के अभिलेख मारवाड़ के सन्दर्भ में” नामक पुस्तक के प्रथम भाग में लेखक गोविन्दलाल श्रीमाली ने उक्त अभिलेख का अनुवाद व मूल पाठ लिखा है | श्रीमाली जी अपनी पुस्तक में इस अभिलेख के बारे में लिखते हैं – “प्रस्तुत वापी अभिलेख राव मालदेव के समय में उनके सेनापति राव जैत्रसिंह (बगड़ी ठाकुर) द्वारा निर्मित रजलानी बावड़ी का अभिलेख है। इस अभिलेख की वंशावली में राव रणमल से लेकर राव जैता के भाइयों और पुत्रों तक के नाम दिये गये हैं। राव जैता के पिता पंचायण, पितामह अखैराज और प्रपितामह राव रणमल, थे। जैताजी की पत्नियाँ-मदन टाकणी, बीरा हुलणी, गवर सोलंकिणी, लीला चहुआणी और रमा भटियाणी थीं। उनके पुत्र – मनसिंह, पृथ्वीराज, ऊदा, रायसिंह, भाखरसिंह और देवीदास थे तथा जैताजी के भाइयों के नाम अचला, मदा, कन्हा, अर्जुन, झांझण, भोजा, राम, सांईदास और चचाओं के नाम सीधण, सूरा, रण, रावल, नगराज, देवा, रायमल, माला, नरवद तथा महराज थे। अभिलेख में महाराज के पुत्र का नाम कुम्पा दिया गया है। इस वापसी (बावड़ी – वावली) का निर्माण वि.सं. 1594 मार्गशीर्ष वदि 5 रविवार को प्रारम्भ होकर वि.सं. 1597 कार्तिक वदि 15 रविवार को समाप्त हुआ था। इसके निर्माण में 1,25,111 फदिये (15,000 रुपये ?) खर्च हुए थे। इस कार्य को सम्पन्न करने में 151 कारीगर, 171 पुरुष श्रमिक और 221 स्त्रियां श्रमिक लगे थे। इस कार्य में 521 मन लोहा, 121 मन पटसन, 25 मन घी, 221 मन पोस्त, अफीम डोडा, 721 मन नमक, पुनः 1121 मन घी, 2555 मन गेहूँ, 11121 मन अन्य अन्न और 5 मन अफीम व्यय हुए थे।“
इस ऐतिहासिक बावड़ी के पास ही एक छोटा सा गढ़ बना है जो रियासती काल में कुंपावत राठौड़ों की जागीर थी |
रजलानी गांव की पहाड़ियों में शिवनाथजी महाराज का पवित्र व प्रसिद्ध स्थान भी है जो क्षेत्र की जनता का आस्था का केंद्र है | शिवनाथजी महाराज ने आसोप के मृत ठाकुर नाहरखानजी को 12 वर्षों के लिए जिन्दा कर दिया था | ठाकुर नाहरसिंहजी का निधन जोधपुर में हुआ था, निधन से पूर्व ठाकुर साहब ने अपने सेवकों को आज्ञा दी थी कि उनका सर्वप्रथम शव शिवनाथजी महाराज के आश्रम में लेकर जाना है, उसके बाद जैसे वे कहें, वैसा करना है | शिवनाथजी महाराज ने मृत ठाकुर साहब को वापस जिन्दा कर दिया था | इस विषय पर पूरी जानकारी वाला लेख हमारी वेबसाइट पर पहले से उपलब्ध है |
रजलानी गांव की पहाड़ियों में शिवनाथजी महाराज के आश्रम से थोड़ी दूर गौरक्षक छोड़सिंहजी का भी मंदिर बना है | मंदिर के पास पूरा सम्पदा के तौर पर अनेकों देवलियां बिखरी पड़ी है, जिन्हें संरक्षण की आवश्यकता है | गांव वालों ने बताया कि छोड़सिंहजी गायों की रक्षा करते हुए शहीद हुए थे, जिन्हें आज स्थानीय निवासी लोकदेवता के रूप में पूजते हैं |