किसी भी व्यक्ति द्वारा शादी गृहस्थी बसाने, भावी जीवन को सुखमय बनाने के लिए की जाती है, लेकिन राजस्थान के इतिहास में शादियों के ऐसे उदाहरण भी भरे पड़े है, जो गृहस्थ जीवन आरम्भ करने के लिए नहीं बल्कि युद्ध में अपने प्राणोत्सर्ग के बाद स्वर्ग में जाने यानी गति प्राप्त करने के लिए की शादियाँ की गई| दरअसल उस काल माना जाता था कि कुंवारे की गति नहीं होती, स्त्री ही स्वर्ग का मार्ग प्रशस्त करती है अत: ऐसे युद्धों में जहाँ मरना तय होता था, मरने से पहले योद्धाओं की शादियाँ की जाती थी| ऐसे अवसरों पर योद्धा के प्राणोत्सर्ग से पहले उसकी नव वधु जौहर की ज्वालाओं में कूद पड़ती थी|
राजस्थान के प्रथम इतिहासकार मुंहता नैणसी ने अपनी ख्यात में जैसलमेर के इतिहास की एक ऐसी ही शादी की घटना दर्ज की है, नैणसी के अनुसार -“सारे राजपूत मरने के लिए तैयार बैठे थे, उनमें धाऊ मेछला नाम का एक कुंवर राजपुत्र 15 वर्ष की अवस्था का था| वह रावल दूदा की पगतली सहला रहा था, उसने एक निसास छोड़ा, रावल ने कहा कि ऐसा क्यों, अपने तो स्वर्ग में पहुँचाने वाले हैं, फिर तुझे इस वक्त यह दिलगीरी कैसे आई? युवक कहने लगा कि मुझे और तो कोई चिंता नहीं, परन्तु शास्त्र पुराणों में ऐसा सुना है कि कुंवारे को गति नहीं, स्त्री स्वर्ग का मार्ग बताती है|
रावल ने विचारा कि मेरी कन्या भी कुंवारी है और यह अच्छा राजपूत है इसी को ब्याह दूँ| तत्काल दोनों का विवाह कर दिया| दूसरे दिन वह बाला जौहर की आग में कूद पड़ी और जब रावल दूदा शाका करने के निमित्त गढ़ के दरवाजे खोल युद्ध के मैदान में उतरे तो उनके साथ वह 15 वर्षीय युवक धाऊ मेछला भी युद्ध के मैदान में उतरा| अब वह निश्चिन्त था कि उसकी शादी हो चुकी है, उसकी नववधु जौहर की ज्वाला में कूद कर स्वर्ग पहुँच चुकी है अत: अपनी नववधु से मिलने की मन में हसरत पाले वह अपनी तलवार के जौहर दिखलाता हुआ, दुश्मनों के दांत खट्टे करता हुआ, अपनी मातृभूमि जैसलमेर की स्वतंत्रता के लिए मुस्लिम आततायियों से लड़ता हुआ, अपने प्राणों का उत्सर्ग कर अपनी मातृभूमि की गोद में चिर निंद्रा में सो गया|
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Very nice hukum
Goud vansh ke rajput goutre kadam Jargon mp
Kadubai kamla bai kuldevi mandir village acchoda tehsheel kukshi manawar dist dhar me hai is mandir ka koi prachar nahi hai iske bare me bataiye
Nice Post Ratan Singh Ji