मेवाड़ की विश्व प्रसिद्ध रानी पद्मिनी पर जायसी सहित कई लेखकों ने साहित्य लिखा | इस साहित्य ने जहाँ पद्मिनी को विश्व प्रसिद्धि दिलवाई, वहीं रानी के इतिहास में तरह तरह की भ्रांतियां फैला दी | इतिहासकारों ने रानी के रंग, रूप, गुणों व जौहर के बारे में तो खूब लिखा पर वह किस राज्य की राजकुमारी थी, उनके माता पिता का नाम क्या था, वह कहाँ जन्मीं थी, इन प्रश्नों का सही उत्तर कोई इतिहासकार नहीं खोज पाया | राजस्थान का इतिहास लिखने वाले कर्नल टॉड ने पद्मिनीं के पिता नाम हमीरसिंह लिखा तो गौरीशंकर हीराचंद ओझा जी ने चितौड़ से कुछ दूर सिंगोली को रानी का जन्म स्थान माना |
दरअसल गौरा बादल रानी पद्मिनी के भाई थे और वे चौहान वंश से थे, अत: रानी पद्मिनीं के जन्म स्थान को लेकर सभी इतिहासकारों की शोध चौहान वंश के आस-पास घूमती रही, उन्होंने यह नहीं सोचा कि बुआ व मामा के बेटे भी भाई ही माने जाते हैं और उनका वंश दूसरा होता है | इस तरह इतिहासकारों ने रानी के जन्म स्थान के तथ्य को और उलझा दिया |
राजस्थान में बीकानेर के पास एक जगह पूगल है | यह पूगल पद्मिनियों के लिए विख्यात है और “पूगल का इतिहास” नामक पुस्तक के लेखक हरिसिंह भाटी का दावा है कि चितौड़ की रानी पद्मिनी पूगल की थी | भाटी के अनुसार रानी पद्मिनी का जन्म जैसलमेर में हुआ था पर उसका बचपन पूगल के आस-पास के क्षेत्र में गुजरा | हरिसिंह भाटी ने अपनी पुस्तक में पद्मिनी के पिता का नाम रावल पूनपाल भाटी लिखा है | रावल पूनपाल भाटी सन 1288 में जैसलमेर की गद्दी पर बैठे थे | और उन्होंने दो वर्ष पांच माह राज्य किया | सन 1290 ई. में रावल पूनपाल भाटी को जैसलमेर राज्य की राजगद्दी से पदच्युत कर दिया गया था |
इतिहासकार भाटी के अनुसार पूनपाल भाटी जब जैसलमेर के राजकुमार थे, तभी सन 1285 ई. में पद्मिनी का जन्म हो गया था | जैसलमेर की राजगद्दी से पदच्युत होने के बाद रावल पूनपाल भाटी पूगल क्षेत्र में आ गए और पूगल व बीकमपुर पर अधिकार करने के लिए संघर्ष करने लगे | इसी संघर्ष में उनका परिवार भी उनके साथ रहा | रावल पूनपाल भाटी बीकमपुर व पूगल पाने के लिए संघर्ष कर रह रहे थे, उनकी पुत्री पद्मिनी इसी क्षेत्र में अस्थाई घरों ने खेलते हुए बड़ी हो रही थी | तो दूसरी ओर अल्लाउद्दीन खिलजी की सेनाओं ने जैसलमेर किले पर घेरा डाल रखा था | सन 1294 ई. के जैसलमेर साके के बाद किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी पद्मिनी के रूप, सौन्दर्य और गुणों की ख्याति सब ओर फ़ैल चुकी थी | सन 1299 में खिलजी द्वारा जैसलमेर पर आक्रमण के समय रावल पूनपाल को पद्मिनी को लेकर चिंता हुई कि कहीं मुस्लिम आक्रान्ता उनसे उनकी बेटी ना मांग ले | उस समय उनके पास न तो रहने के लिए कोई किला था, ना युद्ध करने के साधन |
आपको बता दें उस वक्त पूगल गढ़ में सिंध के शासकों की अनुमति से नायक रहते थे, यानि पूगल का गढ़ नायक जाति के लोगों के कब्जे में था और उन्हें वहां से निकालने के लिए रावल पूनपाल भाटी की तीन पीढियों को लगभग 90 वर्ष संघर्ष किया | पूगल पर अधिकार करने के लिए जो संघर्ष पूनपाल ने शुरू किया उसमें सफलता मिली उनके पौत्र रणकदेव को | रणकदेव ने सन 1380 ई. में नायकों को पूगल गढ़ से खदेड़ कर कब्ज़ा किया और राव की पदवी धारण कर पूगल के शासक बने |
ऐसी स्थिति में उन्हें अपनी बेटी की चिंता सताए जा रही थी | आखिर उन्होंने मेवाड़ के राणा रतनसिंह को पद्मिनी के लिए योग्य वर मानते हुये सगाई का नारियल भेजा | रतनसिंह ने पद्मिनी की ख्याति सुन रखी थी अत: रावल पूनपाल भाटी के पास कुछ भी ना होने के बावजूद उन्होंने पद्मिनी के साथ विवाह किया और चितौड़ ले गए | यह विवाह सन 1300 ई. में हुआ था, और तब पद्मिनी की उम्र महज 14-15 वर्ष थी |
पर जिस बात का रावल पूनपाल भाटी को डर था आखिर वही हुआ | खिलजी ने मेवाड़ के राणा रतनसिंह से पद्मिनी की मांग को लेकर आक्रमण किया और सन 1303 ई. में रानी पद्मिनी को जौहर की ज्वालाओं में कूदना पड़ा |
अब बात करते हैं गौरा बादल की | गौरा बादल पद्मिनी के भाई थे पर वे चौहान होकर भाटी वंश की पद्मिनी के भाई कैसे थे | उनका रानी के साथ क्या रिश्ता था | दरअसल रावल पूनपाल भाटी की एक रानी सिरोही के चौहान वंश की जामकंवर देवड़ी थी, इसी रानी के गर्भ से रानी पद्मिनी का जन्म हुआ था, इस तरह गोरा बादल रानी पद्मिनी के ननिहाल पक्ष से थे | इस तरह गोरा बादल का रानी पद्मिनी से भाई का रिश्ता था और रानी के पास चितौड़ रहते थे | रानी पद्मिनी का जन्म जैसलमेर में हुआ था और बचपन पूगल क्षेत्र के रेत के टीलों में बीता था |