आप सब लोगों ने पढ़ी मेरी पहली कविता “क्यूँ यह दुनियां?” जो सिक्के का एक पहलु थी | जिसमे सिर्फ बुराइयाँ थी,दुनियां से शिकायतें थी | पर जब मैंने सिक्के का दूसरा पहलु देखा तो उसमे बुराइयाँ ही नहीं,कुछ और भी था | जानना चाहेंगे?“यह दुनियां”
आसान नहीं जीवन की डगर यहाँ …
फिर भी जीना सिखाती है यह दुनियां ,
हाँ यह दुनियां ……
रोते को मुस्कुराहट दिलाती है यह दुनियां ….
है मुशुकिलें पग-पग पर यहाँ …..
फिर भी मुश्किलों से लड़ना सिखाती है यह दुनियां…..
क्या हुआ अगर कोई नहीं है अपना यहाँ ……
फिर भी रिश्तों के बंधन मे बांधती है यह दुनियां…..
फूलों की तरह खिलखिलाते चहरे है यहाँ …….
बारिश की बूंदों जैसे ख़ुशी के आंसू है यहाँ ……..
हाँ कुदरत का करिश्मा है यह दुनियां ……..
है लोगों के दिलों मै नफरत यहाँ …….
फिर भी प्यार के दो मीठे बोल से नफरत मिटाती है यह दुनियां …….
आसान नहीं जीवन की डगर यहाँ …
फिर भी जीना सिखाती है यह दुनियां , हाँ यह दुनियां……
मुस्कुराकर जीने का नाम ही है यह दुनियां ……..!!
तो यह था सिक्के का दूसरा पहलु ,नहीं-नहीं माफ़ कीजिएगा ….सिक्के का नहीं दुनियां का दूसरा पहलू |
कु.राजुल शेखावत
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ताऊ डाट इन: ताऊ पहेली – 88
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