भाजपा में मोदी-आडवाणी के बीच आजकल चल रहा प्र.म. पद के उम्मीदवार की रस्सा कस्सी वाला खेल देखते हुए मुझे यह कहावत मोदी पर सटीक बैठती दिखती है|
अब देखिये ना दो सीटों पर सिमटी भाजपा को आडवाणी ने अपनी मेहनत के बल पर सत्ता के शिखर तक पहुंचाकर एक कुशल संगठनकर्ता का परिचय दिया था, यही नहीं भाजपा को उस उंचाई पर पहुँचाने के चक्कर में आडवाणी ने अपने ऊपर घोर साम्प्रदायिक होने का ठप्पा भी लगवाया, जो वर्षों से उनके साथ चिपका हुआ है और बेचारे ने जब तब इस साम्प्रदायिक ठप्पे को हटाने की कोशिश की भी तो सबसे ज्यादा आलोचना भाजपा समर्थकों से ही झेलनी पड़ी| जब जिन्ना की मजार पर प्रोटोकॉल के तहत शीश नवाते हुए अनुभवी आडवाणी ने एक तीर से तीन शिकार करने की कोशिश की तो तब भी मंद बुद्धि भाजपा कार्यकर्ताओं ने बिना उनके बयान का भावार्थ व उनकी मंशा समझे कांग्रेस की चाल में फंस कर उनकी आलोचना शुरू कर दी थी|
जबकि कोई भी आसानी से समझ सकता था कि- आडवाणी ने जिन्ना की तारीफ़ कर एक तरह से पाकिस्तानी शासकों व नेताओं पर एक व्यंग्य बाण छोड़ा था कि- जिस जिन्ना ने धर्मनिरपेक्ष पाकिस्तान की परिकल्पना की थी वो आप लोगों ने हवा में उड़ा दी और पाक को एक साम्प्रदायिक देश बना दिया| साथ ही जिन्ना की तारीफ कर आडवाणी ने मुसलमानों को अपने विचारों में उनके प्रति बदलाव का सन्देश देने की कोशिश के साथ कांग्रेस को भी घेरने की कोशिश की कि देश के बंटवारे के वक्त ऐसा क्या हुआ था कि एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति को एक अलग देश की मांग करनी पड़ी? पर उनके भावार्थ किसी ने समझने की कोशिश ही नहीं की|
आज जब उनके वरिष्ठ वाजपेयी जी राजनीति से रिटायर हो चुके है और गठबंधन दलों में आडवाणी की स्वीकार्यता बन चुकी है तब अचानक जिस तरह पकी खिचड़ी को खाने टिल्ला मौके पर आ धमकता है ठीक उसी तरह आज जब कांग्रेस के खिलाफ जनता के रोष को देखते हुए दुबारा भाजपा की सत्ता के नजदीक पहुँचने की संभावनाएं बन रही है, राष्ट्रीय स्तर पर बिना किसी प्रदर्शन के सिर्फ गुजरात विकास के प्रदर्शन को लेकर प्र.मंत्री पद के लिए मोदी अपने कुछ भाड़े के सोशियल साइट्स वर्कर्स व कुछ कट्टरपंथी युवकों के साथ माहौल बनाकर टिल्ले की तरह आ धमके है|
जबकि हकीकत यह है कि गुजरात मुख्यमंत्री की कुर्सी भी जब मोदी को टिल्ले की तरह मिली थी तब भी गुजरात विकसित था, विकास के लिए जरुरी आधारभूत ढांचा वहां उपलब्ध था, हाँ इस विकास को मोदी ने गति दी उसके लिए वे प्रशंसा के पात्र है| मैं यह भी मानता हूँ कि इन वर्षों में यदि मोदी की जगह कांग्रेस सरकार होती तो अब तक गुजरात का विकास भी रसातल में पहुँच चूका होता|
गुजरात विकास का पूरा श्रेय भी यदि मोदी को दे दिया जाय तो भी इसका मतलब यह नहीं कि कुछ कट्टरपंथी व कुछ हजार भाड़े के सोसियल साइट्स वर्कर्स युवकों द्वारा मोदी के पक्ष में चलाये अभियान के चलते पार्टी के एक ऐसे वरिष्ठ नेता जिसनें पार्टी संगठन के लिए अपना जीवन लगा दिया हो और पार्टी को आज सत्ता की दावेदार बना दिया हो, को दरकिनार कर ऐसे व्यक्ति को पार्टी का नेतृत्व सौंप दिया जाये जिसकी राष्ट्रीय स्तर पर कोई राजनैतिक उपलब्धि ना हो|
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