वोह सुनहरी दोपहर, वोह छुक छुक चलती गाड़ी का रुक रुक कर चलना
तुम्हारी प्यारी सी उंगलियों से लिखे संदेशे का मेरे फ़ोन पर सवाल भेजना
तुम क्या सोचते हो मै तुम्हारी, उन बेताबियों की दोपहर को भूल चुकी हूँ
तुम क्या जाने मेरे हसीन साथी, तेरी खुबसूरत शाम को गीतों में ढाल चुकी हूँ
बज उठेंगे वीणा के तार तार महक जायेगा सारा आलम फिर कोई किसी के प्यार में
मेरी नज्मो में सुनेगा तेरा नाम सारा जहान खिल उठेंगे मुरझाये फूल भी वादियों में
मैं वो गीत हूँ जो आज तक कोई कवि अपनी रचना में ना रच सका
मैं वो अधखिला फुल हूँ जो कभी बहारों के आने पर भी ना खिल सका
आकर तुमसे दूर न खबर है तन बदन की, ना होश है मुझे अपने उड़ते दामन का
जुबान खामोश है, रात की स्याही से, ले कलम लिखती हूँ गीत कोई तेरे नाम का
लेखिका : कमलेश चौहान ( गौरी)
कापी राईट @ कमलेश चौहान ( गौरी)
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