पाँच ही दिन हुए उसे ब्याह कर ……
आज जा रही हे पगफेरे के लिए अपने पीहर …….
गहनों से लदी चुनरी में लिपटी ….
कितनी खुबसूरत लग रही है इसकी मुस्कुराहट होठों पर ….
चली जा रही है सिमटी सी …….
और मैं कर रहा हूं इसका पीछा ..अरे मैं ,,,,,मैं …
मैं इसके सुहाग सेज के कक्ष का सन्नाटा
मैं ही हूं जिसने सब देखा था …चुपके से
ये लो आ गया इसके बाबुल का आँगन ……
ये देखो ये जा लिपटी अपने बाबुल से
लिपट गई अपनी माँ से ..
और ये क्या
भाभियों ने भर लिया अपनी बाहों में ..
में पीछे रह गया सखियाँ पहले पहुच गई …
बाबुल डबडबाई आँखों से निहार रहे है …..
माँ दुलार रही है ,
भाभियाँ गहनों का भार संम्भाल रही है ….
उभरे वक्षो को देख कर सखिया चुटकियां ले रही है ….अब सब निपट गया ……
अब चली वो स्नानगृह की और ……..
में भी चला उसके साथ उसके पीछे …..
और ..और … और ….ये उतार दी उसने अपनी चोली दामन से ….
और ये देख लिया मैने …….सब कुछ ….
जो कोई नहीं देख पाया था …
ये नीली लकीरें उसके बदन पर ………
जिसे छुपा लिया था उसने अपनी मुस्कुराहट की एक लकीर के पीछे …………
केशर क्यारी उषा राठौड
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