आमेर के शासकों पर व्यंग्य के तौर पर प्रचलित बातें कि आमेर वालों ने मुगलों को बेटियां देकर राज किया, पर भरोसा कर इतिहासकारों ने अकबर, जहाँगीर आदि की शादी आमेर राजघराने से होने की बातें लिख दी। जबकि आमेर राजघराने ने मुगलों से कोई वैवाहिक रिश्ता नहीं किया। नायला के ठाकुर फतेहसिंह जी चाम्पावत जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह जी के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने जयपुर पर ‘‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ जयपुर’’ नाम से इतिहास की पुस्तक लिखी, जो सन 1899 में प्रकाशित हुई। ठाकुर फतेहसिंह जी ने मुगलों से आमेर के वैवाहिक रिश्तों को लेकर जयपुर राज्य का पूरा रिकार्ड खंगाला। चूँकि ठाकुर साहब राज्य के प्रधानमंत्री थे अतः राज्य का पूरा रिकार्ड उनकी पहुँच में था। पर उस रिकार्ड उन्हें इन वैवाहिक रिश्तों के कोई सबूत नहीं मिले। यह पुस्तक 1899 में प्रकाशित हुई, जाहिर है लिखी उससे पहले थी। उस काल में साम्प्रदायिक आधार पर भी आज जैसा माहौल नहीं था। यदि ठाकुर साहब को इस मामले में कोई सबूत मिलते तो वे बिना किसी सांप्रदायिक सोच के बेझिझक उन सबूतों को अपनी पुस्तक में समाहित करते। हम अपने पाठकों के लिए ठाकुर फतेहसिंह जी द्वारा अपनी पुस्तक में लिखा हुबहू प्रस्तुत कर रहे है ताकि इस सम्बन्ध में पाठकों के मन में बैठी भ्रान्ति दूर हो सके –
“कुछ लोग कहते है कि महाराजा भगवानदास ने अपनी पुत्री का विवाह अकबर के पुत्र सलीम (बादशाह जहाँगीर) से कराया। इस सम्बन्ध में शोध व जानकारी प्राप्त करने के भरसक प्रयास किये गए। इससे स्पष्ट हो गया कि यह जानकारी असत्य है जो निम्नलिखित विवरण से स्पष्ट होती है।
जयपुर राज्य के रेकॉर्ड में राज्य के निकट के अथवा दूर के राज्यों के साथ जो भी संबंध होते हैं, उनको दर्ज कर लिया जाता है। इस प्रकार के संबंध का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। बादशाह के पुत्र से इस प्रकार वैवाहिक संबंध होना और राज्य के रेकॉर्ड में इसका उल्लेख न होना असंभव है।
वर्तमान समय में भी हम देखते हैं कि भारत में लोग अपने धर्म के प्रति दृढ़ हैं, प्राचीन समय में तो धर्म के प्रति अधिक दृढ़ होंगे। यहाँ तक कि धर्म के लिए प्राण गंवाने में भी गौरव का अनुभव करते थे। इन परिस्थितियों में भगवानदास जैसे राजा द्वारा मुसलमान से अपनी पुत्री का विवाह कर बादशाह की प्रसन्न करने के लिए अपने मान-सम्मान व धर्म को बलिदान करना असंभव है। यदि कोई निर्धन व्यक्ति भी अपनी संतान का किसी अन्य जाति में विवाह कर देता है अथवा स्वयं अन्य जाति में विवाह कर लेता है, उसे तुरन्त बिरादरी से बाहर कर दिया जाता है। यदि महाराजा अपनी पुत्री का विवाह किसी मुसलमान से कर देते तो उसके वंशज अन्य राजपूत ठिकानेदारों से संबंध नहीं रख सकते थे। इस बात की सत्यता के विरुद्ध में हमने उपरोक्त कई कारण प्रस्तुत किये हैं किन्तु यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि इस प्रकार की असत्य घटना की चर्चा विदेश तक कैसे फैल गई? जैसा कि माना जाता है कि किसी भी असत्य घटना के प्रचार के पीछे कोई आधार अवश्य होता है। इस संबंध में हमने खूब जाँच पड़ताल व छानबीन की और इसके दो कारण समझ में आये हैं। प्रथम तो एक राज्य द्वारा दूसरे राज्य के संबंध में मजाक में कठोर शब्द कहना। उदाहरण स्वरूप जैसे किसी को नाऔलाद और वर्णशंकर कहना। उस समय के बादशाहों की करतूतों को अब नाटकीय तरीके से प्रस्तुत करना। इसमें आश्चर्य नहीं है कि ऐसे लोगों की संतुष्टि के लिए किसी दासी का उनसे विवाह कर दिया हो।”