राजस्थान का हर दुर्ग,किला,गढ़,गढ़ी,पहाड़,घाटी,दर्रे,व एक एक हथियार शौर्य व समृद्ध इतिहास से जुड़ा है | इतिहासकारों के अनुसार पुरे यूरोप में सिर्फ एक थर्मोपल्ली हुआ पर यहाँ के हर शहर,कस्बे,नदी घाटियाँ,खोह थर्मोपल्ली जैसे इतिहास से भरी पड़ी है | इतना वैभवशाली शौर्यपूर्ण इतिहास होने के बावजूद राजस्थान के इतिहास लेखन पर बहुत कण कार्य हुआ है | जो कुछ लिखा भी वह कर्नल टोड जैसे विद्वान विदेशियों व बाहर के अन्य लेखकों ने लिखा है | यहाँ का अधिकांश इतिहास चारण कवियों द्वारा डिंगल भाषा में रची रचनाओं में उपलब्ध था | राजस्थान के इतिहास को लिखने का महत्त्वपूर्ण कार्य सबसे पहले मुंहणोंत नैणसीं नी आज से कोई ३०० से अधिक वर्षों पहले किया था | आज भी इतिहासकार मुंहणोंत नैणसीं द्वारा लिखित ‘मुंहणोंत नैणसीं री ख्यात’ को ही सबसे प्राचीन व प्रमाणिक मानते है | इतिहासकारों का मानना है कि राजस्थान का इतिहास लिखते समय कर्नल टोड को यदि मुंहणोंत नैणसीं द्वारा लिखित ‘मुंहणोंत नैणसीं री ख्यात’ नामक पुस्तक मिल जाती तो आज राजस्थान का इतिहास कुछ और ही होता |
राजस्थान में मुंहता नैणसीं के नाम से प्रसिद्ध मुंहणोंत नैणसीं ने अपने व्यक्तिगत संसाधनों से अपनी इतिहास लिखने की रूचि के चलते अपनी व्यस्त जीवनचर्या के बावजूद प्रमाणिक एतिहासिक जानकरियां जुटाकर इतिहास की यह प्रसिद्ध पुस्तक लिखी | राजस्थान के इतिहास में रूचि रखने वाला हर व्यक्ति उनकी इस पुस्तक के बारे में तो जनता है पर मुंहणोंत नैणसीं के व्यक्तिगत जीवन पर बहुत कम लोग जानते है | तो आईये आज परिचय करते है राजस्थान के इस प्रसिद्ध इतिहासकार से –
नैणसीं का जन्म 9 नवम्बर 1610 ई. में जैन धर्म की मुंहणोंत ओसवाल शाखा में जयमल के घर हुआ था | उनकी माता का नाम सरुपदे था जो वैद मेहता लालचंद की पुत्री थी | जोधपुर के शासक राव रायपाल के एक पुत्र ने एक विवाह जैन धर्म की कन्या के साथ किया था इस कन्या से उत्पन्न उसकी संतान ने जैन धर्म को ही अंगीकार किया | मोहनसिंह राठौड़ के वंशज होने के नाते ही उन्हें मुंहणोंत (मोहनोत) कहा जाने लगा |इस तरह जैन धर्म में मुंहणोंत ओसवाल शाखा का प्रादुर्भाव हुआ | नैणसीं का पिता जयमल मारवाड़ के शासक महाराजा गजसिंहजी का दीवान था | नैणसीं ने अपने जीवनकाल में दो शादियाँ की थी जिसने उसे तीन पुत्र प्राप्त हुए | नैणसीं एक प्रसिद्ध इतिहासकार होने के साथ साथ एक योग्य सेनापति व कुशल प्रशासक भी था | जोधपुर राज्य की और से लड़े गए कई युद्धों का उसने सफलता पूर्वक नेतृत्व कर उसने अपनी वीरता,रणकुशलता व प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया |
अपनी व्यक्तिगत योग्यता के बूते नैणसीं मारवाड़ राज्य के कई परगनों का हाकिम रहा व आगे चलकर मारवाड़ राज्य का देश दीवान (प्रधान) जैसे महत्त्वपूर्ण पद पर पहुंचा | जोधपुर के महाराजा गजसिंहजी के समय उसने फलोदी परगने में लूटमार मचाने वाले बिलोचियों का दमन कर कानून व्यवस्था स्थापित की | मारवाड़ के पोकरण परगने के भाटी शासकों का विद्रोह को भी जोधपुर की सेना ने नैणसीं के नेतृत्व में ही दबाया | नैणसीं ने सिरोही के युद्ध में मुगलों से भी लोहा लिया था |
बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी नैणसीं आगे चलकर जोधपुर के महाराजा जसवंतसिंह जी का प्रिय पात्र बना | उनके राज्य में नैणसीं की ही चलती थी | महाराजा का सबसे प्रिय पात्र होने के बावजूद उसके जीवन का दुखदायी अंत भी महाराजा जसवंतसिंह के कोपभाजन के चलते ही हुआ | नैणसीं ने अपने प्रभाव के चलते मारवाड़ राज्य के अधिकांश महत्त्वपूर्ण ओहदों पर अपने परिजनों व सम्बन्धियों को नियुक्त कर दिया था जिनमे कई अयोग्य भी थे | उन पदों पर उससे पहले कायस्थ व ब्रह्मण जाति के लोग नियुक्त हुआ करते थे सो वे अब नैणसीं के इस कृत्य से नाराज हो गए | और उन्होंने महाराजा जसवंतसिंह जो उस समय सुदूर दक्षिण में बादशाह की तरफ से तैनात थे के पास उनके पीछे से नैणसीं के सम्बन्धियों व परिजनों द्वारा प्रजा पर किये अत्याचार व भ्रष्टाचार की ख़बरें भेजी | जिससे महाराजा जसवंतसिंह नैणसीं व उसके भाई से रुष्ट हो गए और पदच्युत कर अपने पास आने का आदेश दिया साथ ही प्रधान पद पर राठौड़ आसकरण को तैनात कर दिया | महाराजा उस समय लाहोर से दक्षिण जा रहे थे | नैणसीं जोधपुर में था व उसका भाई सुन्दरसीं महाराजा के साथ था | दक्षिण जाते समय औरंगाबाद में 29 नवम्बर 1667 ई.को दोनों भाइयों को बंदी बना लिया गया और उन पर एक लाख रूपये का आर्थिक दंड लगाया गया जिसे देने के लिए नैणसीं ने साफ मना कर दिया | फलस्वरूप हिरासत में उसे व उसके भाई को महाराजा के उन आदमियों ने जो उसके खिलाफ थे ने अनेक यातनाएं दी व उसे जलील व अपमानित किया जिसे वह स्वाभिमानी सहन नहीं कर सका और 3 अगस्त 1670 ई. के दिन नैणसीं व उसके भाई सुन्दरसीं दोनों ने आत्महत्या कर ली |
इस प्रकार राजस्थान के पहले इतिहासकार व जोधपुर राज्य के एक प्रशासक का दुखद अंत हो गया |
अंत दुखद रहा इन लोगों का…
bhtrin nyi jaankaari dene ke liyen dhnyvad . akhtar khan akela kota rajsthan
लाख लखारां निपजै,कै वड़ पीपळ री साख।
नटियो मुहतो नैणसी,तांबो दैण तलाक॥
एक और ग्रंथ है नैणसी का 'मारवाड़ रे परगने री विगत'
दुखद अन्त पर सफल जीवन।
बहुत सुंदर जीवन जीये यह
हमारे पुरखे थे… अपने देश से दूर अपनों के बारे में पढ़ अच्छा लगा…
एक महान इतिहासकर का दुखद अंत और भी ज्यादा दुखी कर गया |
ऐतिहासीक जानकारी मिली.
Bahut hi dukhd ant, jealousy ne to kai ghar barbad kiye hai.