मीरां का विवाह मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र राजकुमार भोज के साथ हुआ था | वह मेवाड़ की राजरानी बनी,फिर भी अपने अराध्य कृष्ण के प्रति उसकी भक्ति अटूट बनी रही | कृष्ण को ही उसने अपना पति मान रखा था और दिन रात उसी मुरली मनोहर को रिझाने में लगी रहती थी | भोज की मृत्यु के पश्चात मीरां पर उसके ससुराल वालों ने बहुत जुल्म ढाये | तरह तरह के दुःख देकर उसे परेशान किया | इतना ही नहीं उस पर कुल कलंकिनी इत्यादि आक्षेप लगाए और वे असह्य हो गए तो एक दिन मीरां ने राजमहलों का परित्याग कर दिया | उसके भजन कीर्तन से यदि मेवाड़ के राजवंश की अपकीर्ति होती है तो उसने अपने आपको उससे अलग कर दिया और श्याम के रंग में रंगी वह मीरां लोक-लाज,कुल-मर्यादा सबका परित्याग कर अपने गिरधर गोपाल के चरणों में समर्पित हो गयी |
मीरां राजपूत नारी के साहस का जाज्वल्यमान उदहारण है | जिस युग में राजपूत नारी पर्दे की पुतली के समान थी,उसने अपने आराध्य गिरधर गोपाल की भक्ति में,मग्न हो,जगह-जगह घूमकर गोविन्द के गुण गाये | समाज के बन्धनों को एक झटके में तोड़ने वाली उस साहसी महिला की उस समय बड़ी बदनामी हुई,पर मीरां ने तो “आ बदनामी लागै मीठी” कह के उसे भी सहजता से स्वीकार कर लिया | मध्य युग की राजपूत नारी का आदर्श -” सतीत्व की रक्षा हेतु जौहर करना या सती होना” सिर्फ रह गया था | उसने भिन्न दिशा में सोचने को मजबूर किया और भक्ति के अनुसरण से अपने जीवन के चरम लक्ष्य तक पहुँचने का मार्ग सुझाया |
मीरां ने जो मार्ग चुना वह सहज नहीं था,उसे कठिन अग्नि परीक्षाएं देनी पड़ी | मेवाड़ के महाराणा विक्रमादित्य,जो मीरां का देवर था,ने मीरां को भिन्न-भिन्न तरीके से कष्ट दिया,यहाँ तक कि वह नराधम माँ समान भाभी के प्राणों का ग्राहक बन गया | मीरां के प्राणों को हरने के लिए विष का प्याला और काला नाग भेजा गया पर उस कालजयी पर कुछ भी प्रभाव नहीं हुआ | मेवाड़ से प्रस्थान करते समय मीरां को उसने रोकने का प्रयास किया पर इसमें भी वह सफल नहीं हुआ | भक्ति के विरल पथ पर अग्रसर होने वाली मीरां कब तक रुक सकती थी | उसे संसार से विरक्ति हो गयी थी और कृष्णमयी मीरां का जब घर,परिवार,सारा जग दुश्मन हो गया तब,उसे अपने संवारिये का ही सहारा था,अपने प्रिय गोपाल का -“मेरे तो गिरधर गोपाला,दुसरो न कोई” |
तीर्थाटन को निकली मीरां विभिन्न स्थानों पर घूमती हुई ब्रज-भूमि के दर्शन करने गयी,जहाँ श्री कृष्ण ने अपनी अद्भुत लीलाएँ रचीं | ब्रज-भूमि में सत्संग करते हुए कई दिन बिताये | एक दिन मीरां प्रसिद्ध भक्त जीवगोस्वामी जी से मिलने गयी तो उन्होंने यह कह कर मिलने से इंकार कर दिया कि-“मैं स्त्रियों से नहीं मिलता |” मीरां ने कहलवाया-“मैं तो ब्रज में एक ही पुरुष कृष्ण को जानती हूँ,यह दूसरा पुरुष कहाँ से आ गया ” इतना सुनते ही जीवगोस्वामी जी स्वयं मीरां से मिलने नंगे पाँव दौड़ पड़े | ब्रजधाम से मीरां द्वारका आई और वहां रणछोड़ के सम्मुख नृत्य कीर्तन व भजन में मग्न रही | एक दिन इसी प्रकार नृत्य करते करते अपने अराध्य की मूर्ति में समा गई | मूर्ति में मीरां का चीर बगल में लटका हुआ है और यह मूर्ति गुजरात के प्रसिद्ध धाम डाकोर जी में आजकल विद्यमान है |
मीरां के पदों की सरसता,सहजता और अन्तर्निहित वेदना सर्वविदित है | मीरां द्वारा रचित एक एक पंक्ति उसकी भक्ति-भावना से ओतप्रोत है और सुहृदय पाठको को तरंगित किये बिना नहीं रहती | उसके पद आज हिंदुस्तान भर में गाये जाते है मरू-मन्दाकिनी मीरां की भक्तिमयी भावधारा से केवल मेवाड़ व मारवाड़ ही नहीं,पूरा भारतवर्ष आप्लावित हो धन्य हो गया |
लेखक : डा.विक्रमसिंह राठौड़
(लेखक प्रसिद्ध इतिहासकार व चोपासनी शोध संस्थान में निदेशक है)
धन्य हैं मीरा और उनकी भक्ति.
पद घुंघरू बांध……………
मीरां की भक्ति और प्रेम अतुलनीय है और सदा रहेगा
एक बेहद सुन्दर पोस्ट के लिये बधाई
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भक्तों के बीच में मीरा का स्थान सबसे ऊँचा है।
मीराबाई की प्रसिद्धि भारत के कोने कोने में है. ऐसा कदाचित कोई दूसरी नारी नहीं है. सुन्दर आलेख. आभार.
मीराबाई का आदर्श हमें अपनाना चाहिए। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
फ़ुरसत में … आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री जी के साथ (दूसरा भाग)
bahut hi achchha laga sir …!
सुदर आलेख.
महान भक्त मीरा को नमन …. सुंदर पोस्ट
अति सुंदर पोस्ट धन्यवाद
भाई जी अब की बात मीरां मंदिर जरुर देखेगें।
इस बार तो भुल आए।
मीरा धन्य थी और धन्य था उसका प्रभू-प्रेम। कभी अवसर मिला तो जरूर देखेंगे मंदिर।
मीरा की भक्ति एक बड़े सामाजिक परिवर्तन की परिचायक भी है।
प्रिय,
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कृष्ण श्याममयी मीरा
मीरा श्याममयो हरि
मीरा तो खुद एक अवतार ही थीं वो कब जुदा थीं………………उनकीभक्ति को कोटि कोटि नमन्।
हम जेसलमेर गए हे और मेड़ता भी आपने बहुत सही जानकारी दी है |बहुत अच्छी पोस्ट |बधाई
आशा
मीरां विलक्षण हैं! आम समझ के लिये लुभावनी और समझ में न आने वाली भीं!
और आपकी टेम्पलेट बढिया लग रही है। यह "रिप्लाई" वाला फंकशन कैसे काम करता है?
@ ज्ञान जी
ये "रिप्लाई" वाला फंकशन" इस टेम्पलेट में दिया तो गया है पर यह काम नहीं करता |