एक बेटी के मन की आवाज माँ के लिए
माँ थारी लाडी नै, तूं लागै घणी प्यारी |
सगळा रिश्तां में, माँ तूं है सै सूं न्यारी निरवाळी ||
नौ महीना गरभ मै राखी, सही घणी तूं पीड़ा |
ना आबा द्यूं अब, कोई दुखड़ा थारै नेड़ा ||
तूं ही माँ म्हनै हिंडायो, चौक तिबारा में पालणों |
माँ तूं ही सिखायो म्हनै, अंगणिया में चालणों ||
सोरी घणी आवै निंदड़ळी, माँ थारी गोदी मै |
इतराती चालूं मैं पकड़ नै, माँ थारी चुन्दड़ी का पल्ला नै ||
हुई अठरा बरस की लाडी, करयो थै म्हरो सिंणगार |
मथी भेजो म्हनै सासरिये, थां बिन कियां पड़ेली पार ||
मथी करज्यो थै कोई चिंता, संस्कारी ज्ञान दियो थै मोकळो |
म्हूं थारी ही परछाई हूँ, ना आबा द्यूं ला कोई थानै ओळमो ||
राजुल शेखावत
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