बात जोधपुर की चल रही है तो यहाँ के अनेक राजाओं में एक और यशस्वी राजा जसवंत सिंह जी और उनकी हाड़ी रानी जसवंत दे की भी चर्चा करली जाए | महाराज जसवन्त सिंह जी ने दिल्ली की और से बादशाह शाहजहाँ और औरंगजेब की और से कई सफल सैनिक अभियानों का नेतृत्व किया था तथा जब तक वे जीवित रहे तब तक औरंगजेब को कभी हिन्दू धर्म विरोधी कार्य नही करने दिया चाहे वह मन्दिर तोड़ना हो या हिन्दुओं पर जजिया कर लगना हो , जसवंत सिंह जी के जीते जी औरंगजेब इन कार्यों में कभी सफल नही हो सका | २८ नवम्बर १६७८ को काबुल में जसवंत सिंह के निधन का समाचार जब औरंगजेब ने सुना तब उसने कहा “आज धर्म विरोध का द्वार टूट गया है|”
ये वही जसवंत सिंह थे जिन्होंने एक वीर व निडर बालक द्वारा जोधपुर सेना के ऊँटों की व उन्हें चराने वालों की गर्दन काटने पर सजा के बदले उस वीर बालक की स्पष्टवादिता,वीरता और निडरता देख उसे सम्मान के साथ अपना अंगरक्षक बनाया और बाद में अपना सेनापति भी| यह वीर बालक कोई और नही इतिहास में वीरता के साथ स्वामिभक्ति के रूप में प्रसिद्ध वीर शिरोमणि दुर्गादास राठौड़ था | महाराज जसवंत सिंह जिस तरह से वीर पुरूष थे ठीक उसी तरह उनकी हाड़ी रानी जो बूंदी के शासक शत्रुशाल हाड़ा की पुत्री थी भी अपनी आन-बाण की पक्की थी | १६५७ ई. में शाहजहाँ के बीमार पड़ने पर उसके पुत्रों ने दिल्ली की बादशाहत के लिए विद्रोह कर दिया अतः उनमे एक पुत्र औरंगजेब का विद्रोह दबाने हेतु शाजहाँ ने जसवंत सिंह को मुग़ल सेनापति कासिम खां सहित भेजा | उज्जेन से १५ मील दूर धनपत के मैदान में भयंकर युद्ध हुआ लेकिन धूर्त और कूटनीति में माहिर औरंगजेब की कूटनीति के चलते मुग़ल सेना के सेनापति कासिम खां सहित १५ अन्य मुग़ल अमीर भी औरंगजेब से मिल गए | अतः राजपूत सरदारों ने शाही सेना के मुस्लिम अफसरों के औरंगजेब से मिलने व मराठा सैनिको के भी भाग जाने के मध्य नजर युद्ध की भयंकरता व परिस्थितियों को देखकर ज्यादा घायल हो चुके महाराज जसवंत सिंह जी को न चाहते हुए भी जबरजस्ती घोडे पर बिठा ६०० राजपूत सैनिकों के साथ जोधपुर रवाना कर दिया और उनके स्थान पर रतलाम नरेश रतन सिंह को अपना नायक नियुक्त कर औरंगजेब के साथ युद्ध कर सभी ने वीर गति प्राप्त की |इस युद्ध में औरग्जेब की विजय हुयी |
महाराजा जसवंत सिंह जी के जोधपुर पहुँचने की ख़बर जब किलेदारों ने महारानी जसवंत दे को दे महाराज के स्वागत की तैयारियों का अनुरोध किया लेकिन महारानी ने किलेदारों को किले के दरवाजे बंद करने के आदेश दे जसवंत सिंह को कहला भेजा कि युद्ध से हारकर जीवित आए राजा के लिए किले में कोई जगह नही होती साथ अपनी सास राजमाता से कहा कि आपके पुत्र ने यदि युद्ध में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया होता तो मुझे गर्व होता और में अपने आप को धन्य समझती | लेकिन आपके पुत्र ने तो पुरे राठौड़ वंश के साथ-साथ मेरे हाड़ा वंश को भी कलंकित कर दिया | आख़िर महाराजा द्वारा रानी को विश्वास दिलाने के बाद कि मै युद्ध से कायर की तरह भाग कर नही आया बल्कि मै तो सेन्य-संसाधन जुटाने आया हूँ तब रानी ने किले के दरवाजे खुलवाये | लेकिन तब भी रानी ने महाराजा को चाँदी के बर्तनों की बजाय लकड़ी के बर्तनों में खाना परोसा और महाराजा द्वारा कारण पूछने पर बताया कि कही बर्तनों के टकराने की आवाज को आप तलवारों की खनखनाहट समझ डर न जाए इसलिए आपको लकड़ी के बर्तनों में खाना परोसा गया है | रानी के आन-बान युक्त व्यंग्य बाण रूपी शब्द सुनकर महाराज को अपनी रानी पर बड़ा गर्व हुआ |
ज्ञात रहे इसी हाड़ी रानी की भतीजी जो सलुम्बर के रावत चुण्डावत की रानी थी ने युद्ध में जाते अपने पति द्वारा निशानी मांगने पर अपना सिर काट कर निशानी के तौर पर भेज दिया था | इस रानी के कृतित्व पर विस्तार से चर्चा फ़िर कभी
मारवाड का गौरवशाली इतिहास.. बहुत अच्छा लगा आपके ब्लोग पर इसे पढ़.. रोगंटे खडे़ कर देने वाला..
राजपुताना के इतिहास के पन्नों से ऐसी घणी घटनाओं से रूबरू कराने के लिए आभार.
राजपूत इतिहास का एक और गौरवशाली पन्ना आपने पढवाया या युं कहूं स्मृति मे खोये अध्याय को पुन: स्मरंण करवाया.बहुत धन्यवाद.
रामराम.
इतिहास मेरे लिये बोरियत भरा विषय था जिसे आपने अब बहुत ही रोचक बना दिया है । आपने इसी कडी मे फिर एक रोचक जानकारी दी जिसके लिये धन्यवाद ।
राजस्थान तो ऐसी वीरगाथाओं की खान है जी !
बहुत अच्छी जानकारी !
Ratan ji ,
itihas ko ap itane saral aur rochak tareeke se likh rahe hain…badhai.
Poonam
बहुत बेहतरीन जानकारी दी आपने ! शुभकामनाएं !
Ratan singh sa hukam aap to aap ho sa
Girwar singh shekhawat
previously i was unaware abt this site but after reading this page from this site i wnt to be a regular user as m also raghuvanshi and interested to know some more facts like this thnks guyss updaterssss
मै सलुम्बर से ताल्लुक रखता हूँ आपकी जानकारी हमारे लिए बहुत ज्ञानवर्धक हें
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Thank you sir ye mahan gatha duniya ko batane ke liye mujhe garv he ke salumber mera native place he
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धन्य हैं एसी क्षत्राणीया धन्य है एसी माटी जो एसे पुत्र पुत्रियों को जनती है।
धन्यवाद इसे साझा करने के लिए।
हमने इसके पहल सिर्फ एक कविता सुनी थी।
शत शत नमन