कई इतिहासकार बाबर को हिंदुस्तान में राणा सांगा द्वारा बुलाया जाना लिखते है, लेकिन यह असत्य है| जैसा कि ऊपर लिखा जा चूका है बाबर दिल्ली सल्तनत पर तैमूरवंशियों का शासन स्थापित करना चाहता था| अपनी इस योजना को क्रियान्वित करने के लिए उसने कलंदर का वेश धारण कर हिंदुस्तान की थाह ली| हालाँकि इस बारे में देश के इतिहासकार मौन है, पर “कायमखां रासा” के अनुसार बाबर कलंदर के वेश में हिंदुस्तान की थाह लेकर गया था| डा. रतनलाल मिश्र के अनुसार “कायमखां रासा के लेखक नियामत खां जो फतेहपुर के कायमखानी शासक नबाब अलफखां का पुत्र था, जिसने “जान” उपनाम से कायमखाखां रासो सहित कई काव्य रचनाएँ लिखी| इस कवि का रचनाकाल सत्रहवीं सदी का उत्तरार्द्ध तथा अठारवीं सदी का पूर्वाद्ध था|” “कायमखां रासो” के रचियता कवि जान (न्यामतखां) के पिता नबाब अलफखां का जन्म संवत 1621 में और निधन 1683 में हुआ था| कायमखां रासो एक ऐतिहासिक काव्य है जिसमें कायमखानी नबाबों का इतिहास वर्णित है| ज्ञात हो करमचंद चौहान द्वारा मुस्लिम धर्म अपनाने के बाद उसके वंशज कायमखानी (क्यामखानी) मुसलमान कहलाये| फ़तेहपुर, झुंझुनू, केड़, बड़वासी, झाड़ोद पट्टी आदि कई जगह कायमखानी नबाबों की नबाबियां रही है|
रासो के अनुसार बाबर फतेहपुर के नबाब दौलतखां के समय फतेहपुर आया था| नबाब दौलतखां का काल सन 1489 से 1512 तक था| प्रस्तुत है बाबर के छद्मवेश में हिंदुस्तान की थाह लेने आने का “कायमखां रासो” में वर्णित वर्णन, जिस पर शोध की आवश्यकता है-
भेख कलंदर को कर्यौ एक बाघ संग ताहि||
बाबर काबुल से चलकर दिल्ली देखने आया| उसने कलंदर का वेश धारण किया और साथ में एक बाघ लिया|
आवत आवत फतिहपुर, इस दिन निक्सयौ आइ|
मिलि दीवानसौ यों कहयो, येक मंगावहु गाइ||
आते आते वह फतेहपुर में आ गया| उसने दौलतखां से मिलकर यह कहा कि बाघ के लिए एक गाय मंगावो|
भूखौ है तीन कौ, बाघ हमारौ आज|
दीजै गाइ मंगाकै, ज्यौं पूरै मन काज||
आज हमारा बाघ तीन दिनों से भूखा है| इसके खाने को गाय मंगवा दीजिये ताकि हमारी इच्छा पूर्ण हो|
दौलतखां दीवाननें, दीनी गाइ मंगाइ|
देखौ मेरे देखतै, बछुवा कैसे खाइ||
दौलतखां दीवान ने गाय मंगाई पर यह कहा कि मैं देखता हूँ मेरे देखते बाघ गाय को कैसे खाता है|
मारन को बछुवा उठयौ, निकट तकी जब गाइ|
हाक दई दीवान नै, सिंघ सक्यौ नहिं जाइ|
जब बाघ गाय को मारने उठा| उसने गाय को निकट से देखा| दीवान दौलतखां ने तब हांक लगायी| सिंह इससे गाय को नहीं खा सका|
बाघ चलै उठि गाइकै, फिर हटकै दीवान|
उहि ठौर ठाढो रहै, गऊ न पावै खांन||
बाघ गाय की ओर फिर उठकर चला| दीवान ने उसे फिर हटक दिया| इस पर बाघ वहीं का वहीं खड़ा रह गया और गाय को नहीं खाने पाया|
तब बाबर नै यौ कह्यो, खां देखह जु गाइ|
जौ तुम यासौं यों करी, तौ रि जाइ||
तब बाबर ने कहा कि दौलतखां तुमने गाय की रक्षा कर ली| तुमने सिंह के साथ ऐसा किया को वचन सिद्ध सत्पुरुष ही कर सकता है|
डिस्ट करेरी सापुरस, सिंघ न सकै सकार|
मद कुंजरकौ सुकि है, सुनिकै सुभट हकार||
सत्पुरुषों की कड़ी दृष्टि को सिंह भी नहीं सह सकता| सुभटों की हंकार, सुनकर हाथियों का मद भी सूख जाता है|
बाबर जब इतते गयो, देख्यो अलवर जाइ|
हसनखानकैं कटककैं, देखि रह्यो भरमाइ||
बाबर यहाँ से चलकर अलवर आया| उसने भ्रमित होकर हसनखां मेवाती के कटक को देखा|
उतते ढीलीको गयो, तक्यों सिकंदर साह|
पाछे काबिलकौ गयो, सकल हिन्द अवगाह||
वहां से वह दिल्ली को गया और सिकन्दरशाह को देखा| इस प्रकार सारे हिंदुस्तान की थाह लेकर वह काबुल पहुंचा|
संदर्भ : “कायम खां रासो” रचियता – कविजान उर्फ़ नियामतखान कायमखानी, हिंदी अनुवाद : डा. रतनलाल मिश्र
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन – अलविदा ~ रज्जाक खान में शामिल किया गया है। सादर … अभिनन्दन।।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-06-2016) को "दो जून की रोटी" (चर्चा अंक-2362) (चर्चा अंक-2356) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर…!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Interesting.