सिंधु पार बल्लभी जो बल्ला क्षत्रियों की प्रथम राजधानी थी। पाकिस्तान स्थित मुल्तान जो कभी बल्ला क्षत्रियों की द्वितीय राजधानी रही, जिसे मूलजी नामक बल्ला शासक ने बसाया था, बलूचिस्तान जो कभी बल्ला क्षत्रियों का बल्ल क्षेत्र साम्राज्य कहलाता था, सौराष्ट्र स्थित ढाक पाटण जो आज 2200 वर्ष पूर्व सौराष्ट्र प्रान्त में बल्ला क्षत्रियों के आगमन पश्चात् प्रथम राजधानी बना, जहां तक से लगातार वर्तमान तक बल्ला क्षत्रियों का आधिपत्य व दरबारशाही है जो अपने आप मे एक रेकार्ड है। कारण है कि किसी एक स्थान पर 2200 वर्ष तक ताजशाही धारण करने का गौरव बल्ला क्षत्रियों के अतिरिक्त न तो विश्व में किसी राजवंश को प्राप्त है न भारतवर्ष में। उसी प्रकार बल्लभीपुर हर जो अपने समय में विश्व में मानित शहर था, जहां विश्वभर से शिक्षक, विद्वान शिक्षा हेतु आते थे, जहां की कला-संस्कृति संसार में मानित थी। विलम्बादित्य नामक बल्ला शासक ने सन् ईस्वी की प्रथम शताब्दी पूर्व वल्लभीपुर नामक शहर बसाया जो अपने समय की वैभवशाली राजधानी थी।
वल्लभीपुर राजधानी के उपर बल्ला क्षत्रियों का सन् ईस्वी पूर्व से नौवीं शताब्दी तक राज्य करना पाया गया है व सन् ईस्वी की नौवीं शताब्दी में अरबों द्वारा वल्लभीपुर का विनाश होने पर बल्ला क्षत्रिय थान, देवसर, वंथली, चोटिला आदि प्रांतों के साम्राज्यों पर अपना आधिपत्य बनाए हुए थे जहां से राजसेन बल्ला नामक शासक के पुत्र उदयपाल सिंहड़ धर्मराव, चाऊराव एवं गजनोत नामक पांच पुत्र पांच हजारी फौज के साथ मेवाड़ के रावल, खुमाण की सहायतार्थ मेवाड़ को आए तब से यह क्षत्रिय यही पर काबिज हो गए जो वर्तमान तक अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं। बल्ला क्षत्रिय वल्लभी पतन के पश्चात् अरबों मुसलमानों के विषेष विरोधी रहे और इसी कारण इनका मेवाड़ आगमन हुआ। कारण था मेवाड़ स्वामी रावल खुमाणसी के राज्य पर अरबी आक्रमण अतं प्रतिशोध की ज्वाला में जलते बल्ला क्षत्रियों ने चोटिला से आकर अरबों पर दो-दो हाथ किए। यथा रावल खुमाण को विजय दिलाई, बस यहीं से हुआ गहलोतों और बल्ला क्षत्रियों का संगम जो निरन्तर चलता रहा। चाहे पद्मिनी के मान-सम्मान का शाका हो, चाहे मेवाड से सोनगरों को भगाने का उद्योग। बहादुरशाहजफर कालीन मुगल आक्रमण हो चाहे हल्दीघाटी महासंग्राम सदा बल्ला क्षत्रिय गहलोतों व सिसोदियों के सहायक रह और मेवाड़ की आन बान शान के लिए कटते मरते रहे।
बल्ला राजवंष में राव संचाईजी, राव धर्मसी, राव लखमसी, राव सरदारसिंह, राव देवराज, राव दोलसिंह, राव करणसिंह, राव प्रतापसिंह, राव पिलपडर, राव अंगजी, राव कानसिंह, राव रणजीतसिंह, राव भोपतसिंह, राव कानसिंह द्वितीय, राव शल्यसिंह (सालूजी), महासिंह पृथ्वीराजसिंह, छत्र (छीतर)सिंह, जगतसिंह, देवसिंह, नारायणसिहं, नामक महाप्रतापी, शूरवीर एवं दानवीर शासक हुए हैं जिन्होने कला औार संस्कृति को पश्रय प्रदान किया और अपने वंष गौरव को बनाये रखा।
बल्ला राजपूतों की खांपें (शाखाएँ)
कानावत, कानसिंगोत, रतनावत, महंषावत, बीडावत, जगावत, पूजावत, लखमणोत, लखावत, शक्तावत, मथुरावत, किषनावत, झुझावत, अमरावत, अमरसिंहोत, कलुऔत, झुझारसिंहोत, मानसिंहोत, मोकमसिंहोत, बल्लुओत, बिड़दसिंहोत, सार्दुसिंहोत, देवराजोत, आषावत, उदयसिंहोत, खेमावत, उदावत, मोकावत, पगावत, घुणावत, पीपावत, पुरावत, परवा(भाभा), दडूलिया (ब्राह्मण), चांचड़ा (चारण), गजनोत (नगारची)।
लेखक : अनिरूध सिंह सोहनगढ़
जानकारी देती अच्छी प्रस्तुति,,,
recent post: बात न करो,
संघर्ष की परम्परा रही है, नहीं तो अन्य सभ्यताओं की तरह हमारी संस्कृति भी काल कवलित हो गयी होती।
एतिहासिक जानकारी प्राप्त हुई … आभार !
मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html
धन्यवाद..
महत्वपूर्ण जानकारी … धन्यवाद
आपका बहुत-बहुत आभार
hi
nice
is balla rathore rajput also sir ?
Balla rathoron me aate hai kya
Aapka dhanyvad
Jay mataji
Very nice information.
Thank you.
Sir kya Balla Rajput or Gujarat ke vala Rajput ek hi hai
Please reply me
राजस्थान के चित्तौड़ जिले की भदेसर तहसिल में राठौड़ों के १२ गांव हैं लेकिन हमे सब बल्ला कहके नीचा दिखाते हे क्या ये सत्य हें।।
Jay mahakali maa ka ashirwad
Tha or rahega
Balla Rajput pe