गहरी साँस का गड्डा खोदकर
जो ख्वाब दबा दिए थे मैने
बन्धनों की मिट्टी डालकर
सदी भर पड़ा अकाल उस ,
अहसास की जमीं पर हो गई बंजर.
पर एक घुमड़ता बादल भटक कर .
वहां से गुजरा हैरान परेशां ,
अनजाने मे ही उसके एक पसीने की बूंद ,
गिर गई उन ख्वाबो पर . एक कोपल फूटी है आज ,
एक दिन होगा वहां खुबसूरत रिश्ते का बरगद
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