भारत के महान साम्राज्यों में प्रतिहारों का भी एक बड़ा साम्राज्य रहा है। इसकी एक विशेषता रही है कि जैसे मौर्य, नागवंश तथा गुप्तवंश आदि थे उनके विरोधी दुश्मन एक तरफ ही थे जिससे उपरोक्त वंशों के शासकों को अपने राज्यों तथा साम्राज्य के एक ही दिशा में शत्रु का सामना करना पड़ता था जिसमें वे सफल भी रहे। परन्तु प्रतिहारों के पश्चिम में खलीफा जैसी विश्वविजयी शक्ति से इनका मुकाबला चलता था। दक्षिण में राष्ट्रकूटों (राठौड़ों) से टक्कर थी जो कि किसी भी सूरत में इनसे कम शक्तिशाली नहीं थे। पूर्व में बंगाल के पाल भी इनके शत्रु थे, वे इन जितने शक्तिशाली नहीं थे, फिर भी प्रतिहारों को उनसे युद्धों में व्यस्त रहना पड़ता था। अरब जो कि इनके शत्रु थे उनके एक व्यापारी ने लिखा है कि प्रतिहारों को अपने साम्राज्य की समस्त दिशाओं में (चारों ओर) लाखों की संख्या में सैनिक रखने पड़ते है। इस प्रकार मौर्य, नागों और गुप्तों के मुकाबले में प्रतिहारों की शक्ति का आकलन किया जाये तो प्रतिहारों की शक्ति उनसे अधिक होना सिद्ध होता है।
आधुनिक इतिहासकारों ने इनको गुर्जर प्रतिहार लिखना शुरू कर दिया जबकि इन्होंने अपने आप को कभी गुर्जर प्रतिहार नहीं लिखा। इतिहासकार के एम मुन्शी ने अपने पुस्तक ‘ग्लोरीज देट गुर्जरदेश’ में इस विषय का विस्तृत रूप से विवेचन किया है और यह सिद्ध किया है कि प्रतिहार गुर्जर देश के स्वामी होने के कारण इनके विरोधियों ने इनको गुर्जर प्रतिहार परिभाषित कर दिया है। जब इनके शिलालेखों का हम अध्ययन करते है तो प्रतिहारों के शिलालेख तथा कन्नौज के प्रतिहार सम्राटों के शिलालेखों में यह स्पष्ट तौर पर बतलाया गया हैं कि अयोध्या के सम्राट राम के लघु भ्राता लक्ष्मण के वंशज प्रतिहार है। अभिलेखों में इनके वंश निकास का इतना साफ वर्णन आते हुए भी आजकल के कुछ विद्वान हठधर्मी से इन्हें गुर्जर प्रतिहार ही मानते है। यह इतिहास के साथ बहुत बड़ी द्वेषता है। प्रतिहारों का जितना बड़ा साम्राज्य था इनका इतिहास भी उतना ही महान है। भारत और भारत की संस्कृति इनकी बहुत बड़ी ऋणी है। अगर प्रतिहारों और चित्तौड़ के शासक गुहिलोतों ने मिलकर खलीफाओं की महान शक्ति को नहीं रोका होता तो आज भारत की छवि अलग होती तथा भारतीय संस्कृति और यहाँ का धर्म इरान और मिश्र की तरह समूल नष्ट हो गया होता एवं जैसे विद्वान लोग उन देशों की संस्कृति और धर्म का शोध कर रहे है, वैसा ही हाल भारत का होता। अत: भारत प्रतिहारों का बहुत ही आभारी है।
लेखक – देवीसिंह मंडवा
Pratihar Rajao ne Arab ki vishwvijayi sena ko parst kr Bharat ki sabhyta sanskriti ki raksha ki.
खंडवा जी नमस्कार,
मुंशी जी एवम अन्य इतिहासकारों ने कई किताबो में ये भी लिखा है कि सम्राट मिहिरभोज द्वारा युद्ध जीतने और अपना साम्राज्य अधिपत्तय करने के बाद ” सौराष्ट्र ” छेत्र का नाम ” गुर्जर राष्ट्र ” ( गुर्जर देश ) पडा।