39.3 C
Rajasthan
Tuesday, June 6, 2023

Buy now

spot_img

पेड़ की शूल

रामप्रसाद पिछले २ सालों से प्रदेश गए पुत्र की राह देख रहा था । क्या-क्या सपने संजोये थे उसने। गाँव के महाजन से विदेश भेजने के लिए उसने अपनी जमीं तक गिरवी रख दी थी। ताकि उसके बच्चे को तंगहाली के दिन न देखने पड़े। खुद रात दिन अपने खून को जलाकर महाजन के कर्ज का सूद हर महीने देता था। “लाला बस कुछ दिनों की ही बात है फिर मेरा लड़का तुम्हारी पाई-पाई चूका देगा, देखना ?
“वह बड़े इत्मिनान से कहता ।

एक दिन घर के सामने नीम के पेड़ की छाँव में बैठा चिलम पी रहा था कि दूर से डाकिया आता दिखाई दिया। मन ही मन उत्सुकता जगी। प्रदेश से बेटे का शायद मनीआर्डर आया होगा। वह आशान्वित दृष्टि को डाकिये पर गडाए हुए था। डाकिये ने नजदीक आकर कहा भाई रामप्रसाद पत्र आया है।

“भाई जरा पढ़ कर सुना दो” रामप्रसाद ने उत्सुकता वश डाकिये से कहा।
बापू – अम्मा को चरण स्पर्श,
में यहाँ कुशल -पूर्वक हूँ, मेरी तरफ से आप किसी प्रकार की चिंता नहीं करे। वो क्या है न बापू मुझे लिखने में संकोच हो रहा है मुझे यहाँ एक सस्ता घर मिल रहा था सो खरीद लिया। इसलिए आप को पैसे नहीं भेज पाया। इसलिए तुम इसे अन्यथा न लेकर समझने की कोशिश करोगे। तुम्हारी बहु ने कहा की नया घर खरीद लेते है, जिससे रोज-रोज का किराया का झन्झट भी नहीं रहेगा । उसके बाद बापू व् अम्मा को भी यहीं पर बुला लेंगे। इसलिए आप ८-१० महीने पैसों का इंतजाम और कर लेना। उसके बाद में महाजन के पैसे चूका कर आपको यहीं पर बुला लूँगा ।

अपना व् अम्मा का ख्याल रखना ।
आपका पुत्र
राजू

पत्र को सुनकर रामप्रसाद का शरीर शिथिल पड़ गया, वह शुन्य में टकटकी लगाये काफी देर तक देखता रहा। जैसे जलती हुई आग में किसी ने पानी के मटके उड़ेल दिए हो। डाकिये ने झकझोरा “अरे भाई कहाँ खो गए रामप्रसाद ?”

नहीं भाई कहीं नहीं बस यूँ ही बच्चे की जरा याद आ गयी। डाकिया जा चुका था। रामप्रसाद की पत्नी गले की असाध्य बीमारी से पीड़ित थी। रामप्रसाद छप्पर के नीचे खाट को डालते हुए सोच रहा था कि- पत्नी से क्या कहूँ जिसकी दवा भी ख़त्म होने को है।
“अजी सुनते हो! क्या लिखा है लल्ला ने ?, पैसे भेज रहा है न ?” अन्दर से पत्नी की आवाज ने उसकी तन्द्रा को तोड़ा।

रामप्रसाद गहरी साँस छोड़ते हुए खाट पर बैठ गया। और सोचने लगा “क्या बेटे का मकान खरीदना अपनी अम्मा की बीमारी के इलाज से ज्यादा जरुरी था ? क्या गाँव के महाजन का कर्ज चुकाना व् घर-खर्च भेजना से ज्यादा जरुरी शहर का मकान खरीदना था ?

अब वह कल महाजन को क्या जवाब देगा ?
कल पत्नी की दवा कहाँ से ल़ा पायेगा ?

आज उसे अपनी परवरिश में स्वार्थ की बू आ रही थी। अपने खून से सींच-सींच कर बड़े किये हुई पोधे की शूल उसके ह्रदय में रह रह क रचुभ रही थी।

उसने सामने से जा रहे स्कूल के मास्टर जी को आवाज लगाई और पुत्र के नाम पत्र लिखने को कहा।

“हम यंहा पर मजे में हैं बेटा, महाजन का कर्ज भी चुका दिया है। तुम आराम से रहना व् बहु का ख्याल रखना। मकान लेकर तुमने अच्छा किया तुम्हारी अम्मा का इलाज तो ८-१० महिना बाद करवा लेंगे। तब तक में कुछ व्यवस्था करता हूँ।

मास्टर जी किक्रत्व्यविमूढ़ व् हेरत से उसे देख रहे थे। उम्र से कहीं ज्यादा माथे पर गरीबी की रेखाओं के आस -पास पसीने की बुँदे चमकती हुई आत्मग्लानी को प्रदशित कर रही थी। हाथ में लाठी व् कंधे पर धोती डालकर निढाल सा वह महाजन से अपनी जमीं का सौदा करने चल पड़ा था।
ताकि कर्ज के साथ -साथ बचे हुए पैसे से अपनी औरत का इलाज करवा सके।

लेखक : गजेन्द्र सिंह शेखावत

Related Articles

4 COMMENTS

  1. अब इसे परवरिश की कमी कहें कि आज के युवा मष्तिषक का स्वार्थ? यह समस्या आम है. मुझे लगता है आज वो सामाजिक मर्यादाएं वक्त के साथ समाप्त हो चली हैं, और बचा रह गया है तो विशुद्ध स्वार्थ.

    आज का बेटा कल बाप बनेगा तब उसके साथ भी यही होगा, और जहां तक मुझे याद आ रहा है, मैं आस पडौस में इस तरह की घटनाएं बचपन से अभी तक देखता आ रहा हूं. शायद लाईलाज है यह.

    रामारम

    • सही कहा ताऊ आपने …..अब बचा है विशुद्ध स्वार्थ | जीवन की सांध्यबेला में पहुंचे लोगों की ऐसी उपेक्षा उनके अंतर्मन को तोड़ कर रख देती है ।…..शायद आने वाला कल इससे से भी भयावह हो ।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Stay Connected

0FansLike
3,802FollowersFollow
20,800SubscribersSubscribe
- Advertisement -spot_img

Latest Articles