कल भरतपुर जिले के डीग कस्बे के पास मौरौली गांव जाना हुआ | यह गांव टूटी हड्डियों के इलाज करने वाले पारम्परिक वैद्यों के लिए प्रसिद्ध है | जिन रोगियों को हड्डी के डाक्टर महंगा ओपरेशन करने की सलाह देते है उन्ही रोगियों को यहाँ के पारम्परिक हड्डी विशेषज्ञ कुछ सौ रूपये के खर्चे में ही ठीक कर देते है | इन पारम्परिक चिकित्सकों में सबसे जायदा भरोसेमंद व प्रसिद्ध श्री सुरेश चन्द्र फौजदार है | कल जैसे में उनके घर पहुंचा घर के बाहर गाड़ियों ही गाड़ियाँ खड़ी थी जिनमे दूर दूर के टूटी हड्डी के मरीज आये थे इन रोगियों की खासी भीड़ लगी हुई थी और पारम्परिक चिकित्सक सुरेश चन्द्र बड़ी मुस्तेदी से रोगियों की टूटी हड्डियाँ जोड़ने व्यस्त थे | बस मरीज को देखा टूटी हड्डी को जोड़ा और प्लास्टर की जगह गत्ता बांधा, साथ में कुछ खाने की केल्सियम युक्त गोलियां और कुछ अपनी बनाई गोलियां देकर वे मरीज को बता देते कि अपनी बनाई गोलियों को तेल में डालकर तब तक तेल गर्म करो जब तक कि गोलियां तेल में घुल न जाए , गोलियां तेल में घुल जाने पर तेल छानों और ठंडा कर जहाँ गत्ते का प्लास्टर बांधा है उसमे डाल दो , बस कुछ दिन में टूटी हड्डी जुड़ जाएगी और आपका इलाज हो जायेगा | इन पारम्परिक चिकित्सक सुरेश चन्द्र की प्रसिद्धि और कमाई देखकर गांव में कई हड्डियों के पारम्परिक चिकित्सक बन बैठे है पर उनकी दुकानों पर मुझे मरीजो की जगह सिर्फ उनके बड़े बड़े होर्डिंग बोर्ड ही नजर आये पर सुरेश चन्द्र के यहाँ तो एसा लग रहा था जैसे यहाँ कोई छोटा मेला लगा हो | गांव में पैदा हो गए नकली हड्डी रोग चिकित्सकों के चलते सुरेश कुमार ने अपने यहाँ आने वालों मरीज उनके चुंगल में ना फंसे इसलिए अपने विजिटिंग कार्ड में पहले ही चेतावनी छपवा रखी कि ” नकली वैद्यों से सावधान रहे ” |
इस गांव में पहुँचने के लिए सबसे पहले भरतपुर जिले डीग कस्बे में पहुंचना होता है डीग बस स्टैंड के बाहर मौरौली जाने वाली जीपे मिल जाती है | इन पारम्परिक हड्डी रोग विशेषज्ञ सुरेश चन्द्र से किसी भी सलाह के लिए फोन न. 09828879388 पर बातचीत की जा सकती |
पहले हड्डी जोड़ने का काम पहलवान करते थे। वे ताकत लगा कर हड्डी को ठीकाने में बांध के बांस की खपचियों से बांध देते थे और हड्डियां जुड़ जाती थी। लेकिन उसमें फ़िनिशिंग(टूटी हुई हड्डी का सही खांचे में बैठना) नहीं आती थी। इसलिए लोग एक्सरे लेकर आर्थोपैडिक सर्जन के पास जाने लगे। आज कर राड़ डालने का खर्चा ही 20,000 हजार है। शहर के लोग रिस्क नहीं लेते। हमारे यहां भी कई हड्डी जोड़ने वाले हैं जिनके यहां भीड़ लगी रहती है।
पाम्परिक वैधो के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन एक आयुर्वेदिक दवा आती है जिसे हटजोड़ के नाम से जाना जाता है इसको पानी के साथ पीस कर पिलाया जता है एक या दो खुराक में यह अपना काम कर देती है | बहुत अच्छा चमत्कार जैसा अनुभव होता है |
बहुत काम की पोस्ट, जो लोग आर्थिक रूप से संपन्न हैं उनकि बात छोडिये. आज भी जो डाक्टरी खर्चा नही ऊठा सकने वाले लोग इन्ही कुशल पारंपरिक लोगों के भरोसे हैं. अब कुछ नकली भी असली के साथ चलते ही हैं. बाकी हम भी बचपन में हाथ जुडवा चुके हैं तब आसपास कोई अलोपैथिक अस्पताल हुआ ही नही करता था.
ऐसे वैद्यों के बारे में लोगों को गलत जानकारियां हैं .. आज ऐसे वैद्यों को सामने लाया जाना चाहिए .. अधिक से अधिक लोगों को इस प्रकार का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए .. ताकि आनेवाले समय में भी वो बीमारों को अपनी सेवाएं प्रदान कर सकें !!
नीम हकीम खतरेये जान इनके बिगड़े हुवे केस बड़ी देर तक रुलाते है मेरे शहर मे भी एक है उसने अपने दरवाजे पर MRI व XRAY लटका रखे है छोटी मोटी मास पेशी की दर्द पर मालिश ,मोच तक तो ये ठीक है जब ये फ्रेक्चर , कूल्हे की हड्डी को जोड़ना ,बैक बोन प्रोब्लम मे रीड की हड्डी से छेड छाड व अन्य बड़े बड़े दावे करते है तो ये गलत है इनको बढावा देना गुमराह करना माना जयेगा
राम राम रतन सिंग जी
पहले हड्डी जोड़ने का काम पहलवान करते थे।
वे ताकत लगा कर हड्डी को ठीकाने में बांध के
बांस की खपचियों से बांध देते थे और हड्डियां जुड़ जाती थी।
लेकिन उसमें फ़िनिशिंग(टूटी हुई हड्डी का सही खांचे में बैठना) नहीं आती थी। इसलिए लोग एक्सरे लेकर आर्थोपैडिक सर्जन के पास जाने लगे। आज कर राड़ डालने का खर्चा ही 20,000 हजार है।
शहर के लोग रिस्क नहीं लेते।
हमारे यहां भी कई हड्डी जोड़ने वाले हैं जिनके यहां भीड़ लगी रहती है।
अच्छी पोस्ट के लिए आभार
इन पारंपरिक विद्याओं का पुस्तकीकरण होना चाहिए और इन्हें आयुर्वेद के पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाना चाहिए।
अब जरूरत है इन विधाओं को मान्यता दिलाने की…!आशा है इस पोस्ट से बहुत सों को जानकारी मिलेगी….!इस तरह के जानकारों पर एक डाइरेक्टरी बनाने का विचार है..
जो काम ओर्थोपेडिक सर्जन नहीं कर सकते वह हमारे पारंपरिक वैद्य कर लेते हैं. बहुत अच्छी जानकारी. आभार.
पाम्परिक वैधो के बारे में मुझे ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन एक आयुर्वेदिक दवा आती है जिसे हटजोड़ के नाम से जाना जाता है इसको पानी के साथ पीस कर पिलाया जता है एक या दो खुराक में यह अपना काम कर देती है | बहुत अच्छा चमत्कार जैसा अनुभव होता है |
बहुत सुंदर जानकारी, बचपन मै मेरे हाथ की हड्डी निकल गई थी, तो किसी वेद्ध ने ही उसे सही स्थान पर लगा दिया था, धन्यवाद
मुझे भी चार पांच दिन पहले किसी ने बताया कि जड़ी बूटियां हैं जो बहुत तेजी से हड्डी जोड़ती हैं।
आज आपकी पोस्ट पढ़ी। जिज्ञासा जग गई है।
एक बार हाथ की हड्डी को ठीक से बैठा दिया था किन्ही जानकार ने ।
बहुत काम की पोस्ट, जो लोग आर्थिक रूप से संपन्न हैं उनकि बात छोडिये. आज भी जो डाक्टरी खर्चा नही ऊठा सकने वाले लोग इन्ही कुशल पारंपरिक लोगों के भरोसे हैं. अब कुछ नकली भी असली के साथ चलते ही हैं. बाकी हम भी बचपन में हाथ जुडवा चुके हैं तब आसपास कोई अलोपैथिक अस्पताल हुआ ही नही करता था.
रामराम.
बहुत अच्छी जानकारी. आभार.
jankaari dene ke liye aabhar!
ऐसे वैद्यों के बारे में लोगों को गलत जानकारियां हैं .. आज ऐसे वैद्यों को सामने लाया जाना चाहिए .. अधिक से अधिक लोगों को इस प्रकार का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए .. ताकि आनेवाले समय में भी वो बीमारों को अपनी सेवाएं प्रदान कर सकें !!
नीम हकीम खतरेये जान
इनके बिगड़े हुवे केस बड़ी देर तक रुलाते है
मेरे शहर मे भी एक है
उसने अपने दरवाजे पर MRI व XRAY लटका रखे है
छोटी मोटी मास पेशी की दर्द पर मालिश ,मोच तक तो ये ठीक है
जब ये फ्रेक्चर , कूल्हे की हड्डी को जोड़ना ,बैक बोन प्रोब्लम मे रीड की हड्डी से छेड छाड व अन्य बड़े बड़े दावे करते है तो ये गलत है
इनको बढावा देना गुमराह करना माना जयेगा
so nice