देश में रियासती काल में पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले प्रदूषण की कोई समस्या ही नहीं थी| बावजूद रियासतों के राजा पर्यावरण को लेकर काफी गंभीर व जागरूक थे| हम राजस्थान की ही बात करें तो हर गांव, कस्बे, शहर के पास तत्कालीन शासकों, जागीरदारों, सामंतों द्वारा छोड़े गए ओरण उनकी पर्यावरण के प्रति जागरूकता के आज भी पुख्ता सबूत है| स्थानीय शासकों द्वारा पर्यावरण व पशुओं द्वारा चारागाह के लिए छोड़ी ये भूमि जिन्हें स्थानीय भाषा में ओरण कहा जा सकता है एक तरह से सामुदायिक वन थे| इनमें पेड़ काटने, शिकार करने आदि की सख्त मनाही होती थी और तत्कालीन प्रजा स्वयं इन नियमों का ईमानदारी से पालन करती थी| तत्कालीन शासकों द्वारा ओरण के लिए भूमि उपलब्ध कराने के अलावा भी ऐसे कई उदाहरण है जो उनके पर्यावरण प्रेम व जागरूकता को दर्शाते है| ऐसा ही एक उदाहरण है जयपुर के पास स्थिति नायला किला|
जयपुर के महाराजा सवाई रामसिंह के प्रधानमत्री ठाकुर फ़तेहसिंह जी जयपुर के नजदीक ही नायला गांव में किले का निर्माण कराना चाह रहे थे| फ़तेहसिंह जी जिस स्थान पर किला बनवाना चाह रहे थे उस जगह निर्माण करने पर चार हरे पेड़ काटने पड़ते| चूँकि उस काल में हरे पेड़ काटने से पहले राज्य से इजाजत लेना आवश्यक था, बिना राज्याज्ञा कोई भी हरा पेड़ नहीं काट सकता था, भले वह कितना ही महत्वपूर्ण व्यक्ति क्यों ना हो| अत: राज्य का प्रधानमंत्री होने के बावजूद ठाकुर फतेहसिंह जी को भी पेड़ों की कटाई हेतु राजा से अनुमति लेना आवश्यक था| उस वक्त महाराजा कलकत्ता प्रवास पर थे, अत: फतेहसिंह जी ने कलकत्ता में महाराजा को पत्र भेजकर इन चारों पेड़ों को काटने की अनुमति देना का अनुरोध किया| पत्र के जबाब में महाराजा सवाई रामसिंह जी का आदेश आया कि किले का नक्शा बदल दो पेड़ नहीं काटे जाये| और ठाकुर फतेहसिंह जी को पेड़ बचाने के लिए किला के निर्माण के नक़्शे में बदलाव करना पड़ा|
यह उदारहण तत्कालीन राजपूत राजाओं की पर्यावरण के प्रति प्रतिबद्धता जाहिर करता है कि राज्य के प्रधानमंत्री तक को सिर्फ चार हरे पेड़ काटने की इजाजत तक नहीं मिली| शायद इन्हीं बातों को मध्यनजर रखते हुए राजस्थान निर्माण की घोषणा के लिए जयपुर आये तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री बल्लभभाई पटेल ने अपने भाषण में राजस्थान निर्माण को महान उपलब्धी बताने के साथ ही कहा कि -“अब यहाँ पर लकड़ियाँ व जंगलों की रक्षा करने वाला कोई नहीं है|”
अफ़सोस पर्यावरण के प्रति इतने जागरूकता रखने वाले, प्रतिबद्ध राजाओं के खिलाफ खेजड़ली जैसे मनघडंत प्रकरण प्रचारित कर दुष्प्रचार किया गया कि जोधपुर राजा के प्रधान ने पेड़ काटने के लिए कई सौ हत्याएं कर दी थी| मजे की बात यह है कि यह दुष्प्रचार जो आज विश्व विख्यात कर दिया गया, उस राजा के खिलाफ है जिसने अपने राज्य में पेड़ काटने व शिकार करने पर प्रतिबन्ध लगाने का आदेश ताम्रपत्र पर लिखकर जारी किया था|
History of Naila Fort, Nayla Fort History in Hindi