जो राजा महाराजा मुगलकाल में पद मनसब के लिए युद्धों में अपनी तलवार का जौहर दिखाते थे अब वे उन्ही पदों के लिए अंग्रेजों से कागजी लड़ाइयाँ लड़ने लगे- मेरा पद ये होना चाहिए,मेरी उपाधि वो होनी चाहिए,अपने राज दरबार में मेरा सिंहासन इस जगह होना चाहिए, अंग्रेज रेजिडेंट अफसर की कुर्सी मेरा सिंहासन के इधर होनी चाहिए ,हम यूँ बैठे,अंग्रेज अफसर यूँ बैठे | बस सभी राजाओं,महाराजाओं की अब लड़ाई ये ही रह गयी थी |
एक बार जोधपुर के महाराजा तख़्तसिंह के ऐसे ही किसी पत्र से अंग्रेज सरकार को बड़ी चिढ हुई और अंग्रेज सरकार ने महाराजा जोधपुर को एक पत्र लिखा |
” आप बार बार हमें ये पत्र भेजते है कि हमें ये उपाधि दो,ये सम्मान दो,वो सम्मान दो | फिजूल की तकरीरे करते हो | मुगलों के वक्त आपकी इज्जत कहाँ गयी थी,जब उन्हें आप अपनी बेटियां देते थे |”
“आप ठीक फरमा रहे है साहब बहादुर ! मुगलों के समय हमने बेटियां दी पर हमने अपनी बेटियां तख़्त को दी जो अभी भी देने के लिए मनाही नहीं है | तुम्हारे विलायत के तख़्त पर इस वक्त महारानी विक्टोरिया विराजमान है वही राजा है ,आप चाहे तो हम आपके तख़्त यानी महारानी विक्टोरिया के साथ शादी के लिए तैयार है | आप कहे तो मैं जैसा हूँ वैसा इसके लिए हाजिर हूँ नहीं तो मेरा जवान बेटा महारानी से शादी के लिए हाजिर है | मलिका महारानी जिसे चाहे पसंद कर शादी कर सकती है |”
अंग्रेज अफसर तो महाराजा तख़्तसिंह का पत्र पढ़कर खिसयाकर रह गए और फिर दुबारा उन्होंने कभी किसी मुद्दे पर मुग़लकाल की नजीर नहीं दी |
hahahahaha baht badhiya ….. angrej afsar ka muh dekhne layak hoga … 🙂
khamma ghani
हा हा! बहुत सटीक जबाब!!!
कमाल का प्रसंग बताया है आपने। बहुत सही जवाब दिया राजा ने।
झन्नाट जवाब।
धोबी पछाड़
बहुत बढिया .. आपके इस पोस्ट की चर्चा आज की ब्लॉग4वार्ता में की गयी है !!
ईंट का जवाब पत्थर से ,वाह क्या बात है |
बिलकुल ईँट का जवाब पत्थर से दिया राजा ने।
कमाल का प्रसंग बताया है आपने।
बहुत खूब
बहुत खूब