टांक राजपूतों को नागवंश की एक शाखा माना जाता है | ऐसा इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद जी ओझा ने अपनी पुस्तक “राजपूताने का इतिहास” में लिखा है | ओझा जी ने अपनी पुस्तक “राजपूताने का इतिहास” में लिखा है कि “नागवंश का अस्तित्व महाभारत युद्ध के पहले से पाया जाता है | महाभारत के समय अनेक नागवंशी राजा विद्यमान थे | तक्षक नाग के द्वारा परीक्षित को काटा जाना और जनमेजय के सर्पसत्र में हजारों नागों की आहुति देना, एक रूपक माना जाय तो आशय यही निकलेगा कि परीक्षित नागवंशी तक्षक के हाथ से मारा गया, जिससे उसके पुत्र ने अपने पिता के बैर में हजारों नागवंशियों को मारा |
नागों की अलौकिक शक्ति के उदाहरण बौद्ध ग्रंथों तथा राजतरंगिणी आदि में मिलते हैं | तक्षक, कर्कोटक, धनंजय, मणिनाग आदि इस वंश के प्रसिद्ध राजाओं के नाम है | तक्षक के वंशज तक्ख, ताक, टक्क, टाक, टांक आदि नामों से प्रसिद्ध हुए |”
“राव शेखा” पुस्तक में फूटनोट में लेखक सुरजनसिंह शेखावत, झाझड़ लिखते हैं कि प्राचीन काल में नागौर, मंडोवर और पुष्कर तक नागों का राज्य होने के प्रमाण मिलते हैं | मंडोर की नागाद्री नदी, जोधपुर का भोगिशैली पहाड़, पुष्कर का नाग पहाड़ और नागौर नगर इसी तथ्य की ओर इंगित करते हैं | नागौर पर राज्य करने वाली नागों की शाखा का नाम तक्षक था, जिसका बिगड़ा शब्द टांक है | चौहानों का प्रभाव स्थापित होने के बाद भी नागौर के आस-पास टांकों के कई ठिकाने थे| गुजरात पर शासन करने वाले (सं. 1455 वि. से 1592 वि. तक) मुस्लमान शासक डीडवाना के पास रहने वाले टांक राजपूत ही थे, जो उस काल मुसलमान बन चुके थे | गुजरात पर राज्य करने वाले उन टांक मुसलमान शासकों ने नागौर को सदैव अपना पैतृक स्थान माना और सं. 1592 वि. तक नागौर उन्हीं के भाई-भतीजों के अधिकार में बना रहा |
इसी प्रकार बैराठ के आस-पास भी पंद्रहवीं शताब्दी में टांकों के छोटे छोटे कई ठिकाने विद्यमान थे | ओझाजी का मत है कि चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दियों में टांकों का एक छोटा राज्य यमुना के तट पर काष्टा या काठानगर था | पर कहा नहीं जा सकता कि बैराठ के पास राज्य करने वाले टांक नगौर के टांकों के भाई-बंधू थे अथवा काठानगर वाले टांको के |
शेखावाटी राज्य के संस्थापक राव शेखाजी की एक रानी गंगा कुंवरी टांक थी, जो नगरगढ़ के ठाकुर किल्हण टांक की पुत्री थी | शेखाजी की इसी रानी से उनके पुत्र दुर्गाजी का जन्म हुआ था, दुर्गाजी घाटवा युद्ध में शहीद हो गए थे, अत: दुर्गाजी के पुत्र का इसी रानी ने पालन पोषण किया | किल्हण टांक के शायद कोई पुत्र नहीं था, इसलिए उनका ठिकाना शेखाजी के पुत्र दुर्गाजी के वंशजों की जागीर में रहा और दुर्गाजी के वंशज उनकी टांक माता के नाम से टकनेत कहे जाने लगे |
गिरधर वंश प्रकाश खंडेला का वृहद् इतिहास पुस्तक में इतिहासकार ठाकुर सौभाग्यसिंह शेखावत खूड़ ठिकाने के इतिहास में लिखते है कि –“उस काल में यहाँ के अधिकांश गांवों पर टांक राजपूतों का अधिकार था, जिनको निकालकर श्यामसिंह ने इन ग्रामों को अपनी जागीर में मिला लिया |” श्यामसिंह जी शेखावत खंडेला के राजा वरसिंहदेव के पुत्र थे और उन्हें आजीविका के रूप में वि.सं. 1709 में सूजावास की जागीर मिली थी | लेकिन तत्कालीन अव्यवस्था और अराजकता का फायदा उठाते हुए श्यामसिंह जी शेखावत ने खूड़, बानूड़ा आदि गांवों पर अपना अधिकार कर लिया और खूड़ में अपना ठिकाना कायम किया |
श्यामसिंह जी शेखावत द्वारा टांकों से खूड़ व आस-पास के गांव वि.सं. 1709 में या उसके बाद छीने जिससे पता चलता है कि इस क्षेत्र में टांक राजपूतों के छोटे छोटे ठिकाने मौजूद थे | पर आज इस क्षेत्र में टांक राजपूत नगण्य है | हाँ कायमखानी मुसलमानों में टांक सरनेम लगाने वाले आज भी डीडवाना के आस-पास के गांवों में मिल जायेंगे |
कृपया करके राव राजपूतो के इतिहास के बारे में जानकारी देवे।
मेरी जानकारी में तो राव राजपूत होते ही नहीं है | राव एक पदवी थी जैसे राजा, महाराजा, राणा, महाराणा, राव, महाराव, रावत, महाराज आदि | अब कोई अपने नाम के आगे राव लिखकर उसे जाति बताने लगे तो उसका इतिहास वही बता सकता है | हरियाणा में रेवाड़ी के अहीर शासक की पदवी राव थी अत: आज हरियाणा में राव साहब कहने का मतलब अहीर यानी यादव समझा जाता है किसी भी यादव को राव साहब कह दिया जाता है, सो वहां के लोग राव का मतलब यादव समझते हैं, जबकि राव सिर्फ रेवाड़ी के यादव शासकों की पदवी थी |
श्रीमंत शेखावत साहब को खमा-घणी सा हुकुम अर्ज है कि राजा महाराजाओ पड़ दयात या पासवान के बारे श्रीमन्त के पास जानकारी उपलब्ध मय साक्ष्यों या ऐतिहासिक हो तो प्रदान कराने की कृपया करावे सा।