द्रव्यवती नदी उर्फ़ अमानीशाह नाला जो कभी जयपुर के लिए पेयजल व खेतों की सुचारू सिंचाई व्यवस्था के लिए सबसे बड़ा स्त्रोत था, गंदे नाले में तब्दील हो चूका है| कभी 50 किलोमीटर तक बहने वाली इस जलधारा को वापस सँवारने के लिए जयपुर विकास प्राधिकरण ने लगभग 1700 करोड़ रूपये की योजना बनाई है| आपको बता दें कि आज से कोई पौने दो सौ वर्ष पहले महाराजा सवाई रामसिंह जी के कार्यकाल में भी जयपुर की समृद्धि के लिए इस नदी का प्रयोग करने के लिए चार लाख रूपये की योजना बनी थी| दुर्भाग्य से उस वर्ष वर्ष कम हुई और रही रही कसर टिड्डियों के दल ने फसलों को बर्बाद कर अकाल की स्थिति पैदा कर दी थी| एक तरफ सिंचाई के साधन उपलब्ध करा पैदावार बढ़ाने व दूसरी शहर के पीने की पानी की व्यवस्था के लिए सवाई रामसिंह जी ने अपने अधिनस्थों को द्रव्यवती नदी पर बाँध बनाकर जल वितरण व सिंचाई के लिए नहरों के निर्माण की योजना बनाने का आदेश दिया| इस योजना पर चार लाख रूपये खर्च का अनुमान लगाया गया| इस कार्य के लिए इंजीनियर लेफ्टिनेंट मार्टन का चयन किया गया|
बांध व नहरों पर खर्च होने वाली अमुमानित राशी का व्यय का एक भाग जयपुर के निवासियों ने दिया और शेष राशी राज्य द्वारा दी गई| इस राशि से बांध बा नहरों का निर्माण कार्य निर्धारित समय में पूरा हो गया और 1849 में इसे बनाने वाले इंजीनियर भी जयपुर से चले गए| बांध के पास ही बाग लगाया गया जिसमें एक भवन भी बनाया गया| इसी बाग में महाराजा अक्सर आराम करने आते और बांध में नौका विहार करते व मनोरम दृश्य का आनन्द लेते|
नहरों ने धीरे धीरे पानी छोड़ा जाता था ताकि वह आखिरी सिरे तक पहुँच सके| सन 1855 में अचानक एक दिन पक्का बांध टूट गया और बड़े तेज बहाव के साथ पानी बह निकला| पानी के इस बहाव से 6 मील दूर बसा श्योपुर गांव बह गया और नहरों के किनारे बसे लोगों को हानि उठानी पड़ी| 1855 के बाद 1981 में फिर भयंकर बाढ़ के कारण द्रव्यवती नदी सभी बाँधों को ध्वस्त करते हुए इस नदी को जो अब नाले का रूप चुकी थी को अस्त-व्यस्त कर दिया। तब से सरकार ने न टूटे हुए बाँधों की मरम्मत की और न अमानीशाह के संरक्षण की ही सुध ली| नाले बहाव क्षेत्रों को भूमाफिया द्वारा बेचे जाने के बाद अब सरकार चेती है और बचे हुए नाले के सौन्दर्यकरण के लिए अब बड़ी योजना बनाई है|
ज्ञात हो इस नदी के किनारे अमानीशाह नाम के फ़क़ीर मजार होने के चलते इसे अमानीशाह नाला कहा जाने लगा|