पौष शुक्ला 11 वि. सं. 1600 में शेरशाह सूरी की विशाल सेना का सुमेलगिरी के मैदान में मारवाड़ की छोटी सी सेना ने राव कूंपा और जैता के नेतृत्व में मुकाबला किया| इस युद्ध में मारवाड़ के लगभग सभी सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए| राव जैता और राव कूंपा के साथ पाली के चौहान शासक अखैराज सोनगरा ने अपने 11 सोनगरा चौहान वीर साथियों के साथ इस युद्ध में प्राणोत्सर्ग किया| ऐसी लोकमान्यता है कि अखैराज सोनगरा के वीरगति प्राप्त होने के बाद उनकी दोनों ठकुरानियों में से एक भी उनके साथ सती नहीं हुई|
जैता तो कूंपे रे जीमै, पाळे है गोत पखो|
सायधण बिन दोरो, सोनिगरो हाथे रोटी करे अखो||
अर्थात् जैता जी तो कुंपा जी के यहां जीमते (भोजन करते) हैं दोनों एक ही गोत्र के हैं सो अपने गोत्र के पक्ष को पालते हैं। किन्तु ये सोनगरा अखैराज बिना पत्नी के (स्वर्ग में) अपने हाथों खाना बना कर खाता है।
भाट के इस दोहे का ठकुरानियों (पत्नियों) पर गहरा प्रभाव हुआ और उन्हें सत चढ़ गया और वे सती हो गई|
उस काल में भाटों, चारणों आदि के व्यंग्य दोहों, सौरठों, रचनाओं का समाज पर पड़ने वाले असर का यह जवलंत उदाहरण है|
सन्दर्भ : इस घटना के सभी तथ्य डा. हुकमसिंह भाटी द्वारा लिखित पुस्तक “सोनगरा- संचोरा चौहानों का वृहद् इतिहास” के पृष्ठ संख्या 146, 47 से लिए गए है|